*डॉ. वेदप्रताप वैदिक*
न्यूयाॅर्क के ब्रूकलिन नामक इलाके में हुए गोलीबारी ने पूरे अमेरिका को थर्रा दिया है। लगभग तीन दर्जन लोग घायल हुए हैं लेकिन गनीमत है कि अभी तक किसी के मरने की खबर नहीं है। इस इलाके में हमारे दक्षिण एशियाई लोग काफी संख्या में रहते हैं। यह हमला ब्रूकलिन के रेल्वे स्टेशन पर सुबह-सुबह हुआ है। अभी तक यह पता नहीं चला है कि यह हमला आतंकवादियों ने किया है या यह किसी सिरफिरे अपराधी की करतूत है। हमलावर ने पहले गैस के गोले छोड़े ताकि सारे वातावरण में धुंधलका फैल जाए और फिर उसने गोलियां चला दीं। जब बहुत शोर मचा तो वह हमलावर भाग निकला लेकिन उसका सामान और वाहन पुलिस के हाथ लग चुका है। उसके क्रेडिट कार्ड से उसका नाम भी मालूम पड़ गया है। उसका फोटो भी पुलिस ने जारी कर दिया है। उसकी गिरफ्तारी पर 50 हजार डाॅलर का इनाम भी घोषित हो गया है। अंदाज है कि वह जल्दी ही पकड़ा जाएगा।
अगर वह पकड़ा भी गया और उसने अपना जुर्म भी कुबूल कर लिया तो भी क्या होगा? उसे फांसी पर लटका दिया गया तो भी क्या होगा? क्या इस तरह के जानलेवा अपराधों की संख्या अमेरिका में कभी घटेगी? कभी नहीं। अमेरिका में जितनी हत्याएं हर साल होती हैं, भारत में उससे आधी भी नहीं होतीं। दुनिया का वह सबसे मालदार और सुशिक्षित नागरिकों का राष्ट्र है लेकिन वहां हत्या समेत अन्य अपराधों की संख्या एशिया और अफ्रीका के कई गरीब राष्ट्रों से ज्यादा है। जब तक अमेरिका के शासक और विश्लेषक इस प्रपंच के मूल कारणों को नहीं खोजेंगे, अमेरिका की दशा बिगड़ती ही चली जाएगी। ब्रूकलिन हमले के बाद न्यूयार्क टाइम्स को दर्जनों लोगों ने कहा कि न्यूयाॅर्क शहर हमारे रहने लायक नहीं है। अब से 50-55 साल पहले जब मैं न्यूयार्क में रहा करता था, मेरी अमेरिकी मामी मुझे घर से निकलते वक्त हमेशा मुजरिमों से सावधान रहने के लिए कहती थीं। अमेरिका के बड़े शहरों में आज भी वही स्थिति है। 200 साल पहले अमेरिका में जो नागरिक असुरक्षा की हालत थी, वह आज भी बनी हुई है। यूरोप के गोरे लोग अमेरिकी धरती पर हथियारबंद हुए बिना पांव ही नहीं रखते थे। आज भी अमेरिका के हर घर में बंदूक और तमंचे रखे होते हैं। अब मांग की जा रही है कि जैसे हवाई जहाज में यात्री लोग बंदूक वगैरह नहीं ले जा सकते हैं, वैसे ही प्रतिबंध रेल और बसों में भी लगा दिए जाएं और स्टेशनों पर सुरक्षा बढ़ा दी जाए। ये सब सुझाव अच्छे हैं लेकिन इनसे हिंसाप्रेमी अमेरिकी समाज का स्वभाव नहीं बदला जा सकता। अमेरिका के उपभोक्तावादी समाज में जब तक गहरी आर्थिक विषमता और रंगभेद का वर्चस्व बना रहेगा, इस तरह की हिंसक घटनाएं होती ही रहेंगी। इस तरह की घटनाओं के लिए मानसिक बीमारियां भी जिम्मेदार होती है, जो पूंजीवादी और उपभोक्तावादी समाजों में आसानी से पैदा हो जाती हैं।