डॉ अर्पण जैन
सत्ता और संघर्ष का चोली दामन का साथ है। इस समय जब देश के सबसे पुराने राजनैतिक दल को बीते माह हुए पांच राज्यों के चुनावों में करारी शिकस्त मिली हो, तब आत्ममंथन अत्यावश्यक हो जाता है। कांग्रेस इस समय ऐसे बुरे दौर से गुज़र रही है कि उसके नेता ही नहीं वरन् कार्यकर्ता भी टूट कर बिखरने लगे हैं। केंद्रीय नेतृत्व का संवेदनशील न होना, राज्यों में आपसी समन्वय न होना, गुटबाज़ी और व्यक्तिगत अहम का परवान पर चढ़कर पार्टी के लिए एकजुट न होकर खड़े रहने जैसे सैंकड़ो मुद्दों पर कांग्रेस अपने ही घर में घिर कर टूटने की कगार पर आ गई। आगामी वर्ष मध्यप्रदेश सहित पाँच राज्यों में विधानसभा चुनाव है और इसके पहले यानी 2018 के चुनाव में मध्यप्रदेश में कांग्रेस ने वापसी की भी थी किन्तु ज्योतिरादित्य सिंधिया को न संभाल पाने के चलते बगावती तेवर ने दलबदल स्वीकार कर लिया और कांग्रेस फिर जहाँ के तहाँ आ गई।
बीते दिनों कमलनाथ के आवास पर मध्यप्रदेश के कांग्रेस नेताओं की बैठक हुई, जिसमें अहम फ़ैसला लिया गया है कि आगामी विधानसभा चुनाव कमलनाथ के नेतृत्व में लड़ा जाएगा । जिस पर कांग्रेस के सभी दिग्गज नेताओं ने अपनी सहमति जताई है। इस बैठक के थोड़ा पीछे जाकर कांग्रेस को देखा जाए तो यह कहना उचित होगा कि कांग्रेस के बिखराव को देखकर कांग्रेस के ताबूत की अंतिम कील भी कांग्रेस नेताओं द्वारा ही लगाई जा रही थी। उधेड़बुन में उलझी मध्यप्रदेश कांग्रेस, गर्मी के मौसम में भोपाल का बढ़ता तापमान, अपनी ही पार्टी के वरिष्ठ के ख़िलाफ़ मंत्री के ऊँचे स्वर, आबकारी अधिकारी की सौदेबाज़ी, विधायकों को हिस्सा दिलवाना, अपनी ही सरकार के मंत्री का पुतला जलना, राजा-महाराजा का बगावत पर उतर आना, प्रदेश कांग्रेस की कमान के लिए छटपटाना, पूर्व अध्यक्ष का दुःख ज़ाहिर करना, बंटाधार का चिट्ठी-पत्री का खेल खेलना आदि बहुत-सी घटनाएँ और इस पर कमलनाथ की चुप्पी कांग्रेस का दुर्भाग्य लिख रही थी।
बेइन्तहां राजनैतिक नाटकों के बावजूद कांग्रेस आलाकमान का कमलनाथ पर ही भरोसा जताना और प्रदेश के सभी गुटों का एक सूत्र में ‘जय कमलनाथ’ कहना निश्चित तौर पर कांग्रेस की बची हुई आबरू को बचाने की जुस्तजू ही है। बैठक में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता सुरेश पचौरी, अरुण यादव, अजय सिंह, कांतिलाल भूरिया और दिग्विजय सिंह सहित पूर्व मंत्री तरुण भनोत, प्रियव्रत सिंह, कमलेश्वर पटेल, विजयलक्ष्मी साधौ, लाखन सिंह, जीतू पटवारी, सज्जन सिंह वर्मा, एनपी प्रजापति और हिना कावरे समेत कई नेता शामिल हुए। इस बैठक में सभी ने एक स्वर में कमलनाथ को अपना नेता चुनते हुए यही कहा कि अबकी बार कमलनाथ के नेतृत्व में ही कांग्रेस चुनाव लड़ेगी।
मध्यप्रदेश में अगले विधानसभा चुनाव के लिए कांग्रेस ने एक बार फिर पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ पर भरोसा जताया है और पार्टी के सभी दिग्गज नेता भी इस बात पर सहमत हैं कि उनके नेतृत्व में ही अगला चुनाव लड़ा जाए। इसीलिए यह जानना भी बहुत ज़रूरी है कि आखिर क्या कारण है कि मध्यप्रदेश के सभी नेता ‘कमलनाथ शरणम गच्छामि’ क्यों कर गए ?
इस समय मध्यप्रदेश कांग्रेस में निश्चित तौर पर कमलनाथ जैसा अनुभवी, धनसम्पन्न और दूरगामी सोच वाला नेतृत्व अन्य कोई नहीं है। कमलनाथ के पास सत्ता और प्रशासकीय गलियारों का अच्छा ख़ासा अनुभव है, जाति के आधार पर कमलनाथ न्यूट्रल हैं। सबसे महत्त्वपूर्ण बात तो यह भी है कि चुनावों में प्रदेश कांग्रेस के लिए संसाधन, धन जुटाने की क्षमता और नाथ का आर्थिक मैनेजमेंट भी पार्टी के अन्य नेताओं की तुलना में बहुत मज़बूत है। इसके अलावा उन्हें पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह का भी रणनीतिक तौर पर समर्थन हासिल है, और इस समय कमलनाथ मध्यप्रदेश कांग्रेस में सबसे वरिष्ठ नेता हैं। और राजनीतिक विश्लेषकों का भी मानना है कि प्रदेश में भाजपा को सबसे कठिन चुनौती कमलनाथ ही दे सकते हैं। कमलनाथ को चुनने के सैंकड़ो कारण ऐसे हैं जिन पर खरा उतरना वर्तमान में प्रदेश कांग्रेस के किसी भी नेता के लिए सहज सम्भव नहीं है। कमलनाथ चुनावों में होने वाले ख़र्च और पार्टी के आर्थिक आधार की रीढ़ की हड्डी हैं, उनका आर्थिक मैनेजमेंट किसी उद्योग, कंपनी के सीईओ से कम नहीं है। और इस समय कांग्रेस को नेता से अधिक सीईओ की ज़रूरत है। क्योंकि लस्तपस्त कांग्रेस को चुनाव में किसी भी सूरत में जीतना अनिवार्य है अन्यथा कांग्रेस का नामोनिशान मिट जाएगा।
पन्द्रह माह की कमलनाथ सरकार ने मध्यप्रदेश को यह तो दिखा ही दिया था कि विकास के कार्य कैसे होते हैं, बस तबादला नीति ने इस सरकार को घेरे भी रखा। किन्तु इस समय कांग्रेस के पास अन्य कोई विकल्प है भी नहीं जो इस सक्षमता के साथ विधानसभा चुनाव लड़ सके। पंद्रह माह के कार्यकाल के बाद जिस ज़िम्मेदारी से कमलनाथ ने प्रदेश को समय दिया, उससे यह तो यकीन होता है कि जनता को केवल कमलनाथ ही प्रभावित कर सकते हैं।
कमलनाथ चाहें तो प्रदेश भ्रमण कर, यात्रा इत्यादि माध्यम से जननेता की छवि भी बना सकते हैं और कांग्रेस की नैय्या भी पार लगा सकते हैं। इस समय कमलनाथ के पास कांग्रेस के सर्वाधिक विधायक हैं और ऐसे विधायक जो हमेशा कमलनाथ के साथ बने रहेंगे। पार्टी यह भी जानती है कि यदि कमलनाथ दमखम लगा दें तो निश्चित तौर पर कांग्रेस के लिए स्वर्णिम अवसर बन सकता है। अन्यथा ढाक के तीन पात…