कश्मीर की प्राचीनता
आधुनिक अनुसंधानों से यह स्पष्ट होता जा रहा है कि जिस समय महर्षि मनु ने धरती पर पहली बार राज्य स्थापित कर मनुस्मृति के आधार पर सामाजिक व राजनीतिक व्यवस्था प्रदान की थी उस समय भी कश्मीर उस समय के आर्यावर्त का एक भाग था। उस समय जंबूद्वीप आज के जम्मू क्षेत्र तक सीमित नहीं था, अपितु उसमें संपूर्ण यूरोप और एशिया सम्मिलित हुआ करते थे। आज के जम्मू कश्मीर के क्षेत्र पर उस समय राजा अग्नीन्ध्र का राज्य स्थापित था। रामचंद्र जी के त्रेतायुग को बीते लाखों वर्ष हो चुके हैं । उससे भी पहले सतयुग में यहां कश्यप ऋषि का राज हुआ करता था। उस समय ईसाइयत और इस्लाम जैसे मजहब उनका दूर-दूर तक अता पता नहीं था। संपूर्ण भूमंडल पर आर्यों का साम्राज्य था । सर्वे भवंतु सुखिनः सर्वे संतु निरामया …. की पवित्र वाणी सर्वत्र गूँजती थी और सब सबके अधिकारों का सम्मान करते हुए कर्तव्य पालन पर अधिक ध्यान दिया करते थे । आज की तथाकथित गंगा जमुनी संस्कृति से भी अत्यंत उत्कृष्ट श्रेणी की वैदिक संस्कृति के झंडे तले रहकर सब आनंद की अनुभूति करते थे। उस वैदिक संस्कृति में पत्थर मारो या कश्मीर छोड़कर भाग जाओ – के नारे लगाने वाले लोगों की कल्पना तक नहीं की जा सकती थी। यदि इतिहास को इस दृष्टिकोण से लिखा पढ़ा जाएगा तो पता चलेगा कि आज की तथाकथित गंगा जमुनी संस्कृति ने कश्मीर का कितना अहित किया है ?
भारतवर्ष का नाम भारत कैसे पड़ा ? – इसके बारे में वायु पुराण में एक कहानी आती है। उस कहानी के अनुसार त्रेता युग के प्रारंभ में अर्थात अब से लगभग 22 लाख वर्ष पूर्व स्वायम्भुव मनु के पौत्र और प्रियव्रत के पुत्र ने इस भरत खंड को बसाया था। प्रियव्रत का अपना कोई पुत्र नही था इसलिए उन्होंने अपनी पुत्री के पुत्र अग्नीन्ध्र को गोद लिया था। जिसका लड़का नाभि था, नाभि की एक पत्नी मेरू देवी से जो पुत्र पैदा हुआ उसका नाम ऋषभ था। इस ऋषभ का पुत्र भरत था। इसी भरत के नाम पर भारतवर्ष इस देश का नाम पड़ा। उस समय के राजा प्रियव्रत ने अपनी कन्या के दस पुत्रों में से सात पुत्रों को संपूर्ण पृथ्वी के सातों महाद्वीपों के अलग-अलग राजा नियुक्त किया था। राजा का अर्थ इस समय धर्म, और न्यायाशील राज्य के संस्थापक से लिया जाता था। राजा प्रियव्रत ने जम्बू द्वीप का शासक अग्नीन्ध्र को बनाया था। बाद में भरत ने जो अपना राज्य अपने पुत्र को दिया वह भारतवर्ष कहलाया। भारतवर्ष का अर्थ है भरत का क्षेत्र। भरत के पुत्र का नाम सुमति था। इस विषय में वायु पुराण के निम्न श्लोक पठनीय हैं—
सप्तद्वीपपरिक्रान्तं जम्बूदीपं निबोधत।
अग्नीध्रं ज्येष्ठदायादं कन्यापुत्रं महाबलम।।
प्रियव्रतोअभ्यषिञ्चतं जम्बूद्वीपेश्वरं नृपम्।।
तस्य पुत्रा बभूवुर्हि प्रजापतिसमौजस:।
ज्येष्ठो नाभिरिति ख्यातस्तस्य किम्पुरूषोअनुज:।।
नाभेर्हि सर्गं वक्ष्यामि हिमाह्व तन्निबोधत। (वायु 31-37, 38)
यहां पर भारत के संदर्भ में दिए गए इन श्लोकों को उद्धृत करने का हमारा उद्देश्य केवल एक है कि जहां भारत है वहीं कश्मीर भी है। यदि त्रेतायुग से भी इतनी लंबी अवधि पूर्व भारतवर्ष का अस्तित्व था तो भारतवर्ष के एक जनपद के रूप में उस समय भी कश्मीर का होना निश्चित है। महर्षि मनु और उनकी आगे वाले आने वाली पीढ़ियों ने जहां – जहां तक भारतवर्ष के आर्यों का चक्रवर्ती राज्य स्थापित किया वहां – वहां तक कश्मीर की शांति और सुंदरता की चर्चा होती थी। तब कश्मीर के खेतों की केसर सारे संसार के लोगों का ध्यान आकर्षित करती थी। उस समय के चक्रवर्ती सम्राटों के अधीन काम करके कश्मीर अपने आपको गौरवान्वित अनुभव करता था। क्योंकि उस समय के कश्मीर में अलगाववाद नहीं था, बल्कि मुख्यधारा की मुख्य चेतना के साथ चेतनित होकर एक सुर निकालने में कश्मीर और कश्मीर के लोग विश्वास रखते थे।
कश्यप ऋषि और कैस्पियन सागर
पौराणिक साक्ष्यों व प्रमाणों से यह स्पष्ट है कि कश्यप ऋषि के मर्ग अर्थात घर के होने के कारण प्राचीन काल में कश्मीर को कश्यप मर्ग कहा जाता था । जो कालांतर में कश्मीर के रूप में रूढ़ हो गया। कश्यप ऋषि की महानता और विद्वता का उस समय का सारा संसार लोहा मानता था । उनके नाम का यश सारे संसार में फैला हुआ था। जब विदेशी आक्रमणकारियों ने भारत की संस्कृति का विनाश करना आरंभ किया तो उन्होंने धीरे-धीरे हमें अपनी जड़ों से काट दिया । जिसका परिणाम यह हुआ कि आज हम अपने कश्यप ऋषि जैसे महापुरुष के विषय में बहुत कम जानते हैं। इसी के चलते भारतवर्ष में ही बहुत कम लोग जानते हैं कि जिसे आज कैस्पियन सागर कहते हैं । यह कभी कश्यप सागर हुआ करता था। इसका अभिप्राय है कि कश्मीर और कश्यप की सुगंध कभी संसार के बहुत बड़े क्षेत्र में फैली हुई थी। इस विस्तृत भू-भाग पर कश्यप ऋषि के वंश का शासन चलता था।
राजा शिव का शासन भी कभी यहां रहा है। जिन्होंने लोक कल्याण की भावना से प्रेरित होकर शासन किया। उनकी महानता और कर्तव्यपरायणता के कारण ही लोग उन्हें आज तक भगवान के रूप में पूजते हैं। शिव का शाब्दिक अर्थ ही कल्याणकारी है । इससे ही स्पष्ट हो जाता है कि जिस शिव नाम के राजा को हम भगवान के रूप में पूजते हैं उसका शासन शिव अर्थात कल्याणकारी था। आज के राजनीतिक मनीषी जिस लोक कल्याणकारी शासन की बात करते हैं वह भारत के मूल में समाविष्ट है। जिस कश्मीर में एक संप्रदाय को लक्ष्य बनाकर सारी नीतियां बनाई जाती हों और एक वर्ग या संप्रदाय के विरुद्ध अन्यायपरक नीतियां बनाई जाती रही हों, उसके शासन को अन्यायपरक राजतंत्रात्मक लोकतंत्र कहना उचित होगा, लोक कल्याणकारी राज्य कहना कभी भी उचित नहीं हो सकता।
डॉ राकेश कुमार आर्य
संपादक : उगता भारत