“योगसाधक एवं यज्ञनिष्ठ ऋषिभक्त विद्वान स्वामी चित्तेश्वरानन्द जी”
ओ३म्
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स्वामी चित्तेश्वरानन्द सरस्वती जी ईश्वर एवं वेद भक्त, ऋषिभक्त, आदर्श साधक, यज्ञ एवं सद्धर्म प्रचार के लिए समर्पित, निष्ठावान व प्रेरणादायक व्यक्तित्व के धनी पावन जीवन के धनी विद्वान संन्यासी हैं। आपका जीवन सतत् साधना एवं तप का जीवन्त उदाहरण है। आप तन, मन व धन से वैदिक धर्म एवं आर्यसमाज के लिए सर्वात्मना समर्पित महात्मा है। सन्मार्ग के पथिक मनुष्यों के लिए आपका जीवन संगति एवं सान्निध्य ग्रहण करने योग्य है। स्वामी चित्तेश्वरानन्द सरस्वती जी शतायु हों जिससे उनके द्वारा किया जा रहा वेदों का प्रचार एवं इतर कार्य जारी रहें और आर्यसमाज का यश एवं गौरव बढ़ता रहे।
स्वामी चित्तेश्वरानन्द सरस्वती जी ने सन् 2005 में गुरुकुल प्रभात आश्रम, मेरठ के प्राचार्य स्वामी विवेकानन्द सरस्वती जी से संन्यास की दीक्षा ली थी। इससे पूर्व आप वानप्रस्थ आश्रम में चैतन्य मुनि वनप्रस्थ के नाम से जाने जाते थे। आपने वानप्रस्थ आश्रम की दीक्षा आर्यसमाज के यशस्वी संन्यासी एवं गुरुकुल झज्जर के आचार्य स्वामी ओमानन्द सरस्वती जी से सन् 1994 में ली थी। गृहस्थाश्रम में स्वामी जी श्री चतरसिंह वर्मा जी के नाम से जाने जाते थे। आपका जन्म दिनांक 14 अप्रैल सन् 1938 को दक्षिणी दिल्ली में फरीदाबाद के निकट एक गांव मोल्लड-बन्द में पिता चैधरी किशन सिंह जी तथा माता श्रीमती हंसो देवी जी के यहां हुआ था। माता-पिता से तीन भाई एवं एक बहिन ने जन्म प्राप्त किया। तीन भाई क्रमशः चैधरी भरतसिंह, श्री चरतसिंह एवं श्री भागमल जी तथा बहिन भागवती जी थी। स्वामी जी की चार सन्तानें क्रमशः श्रीकान्तजी, शशिकान्तजी, उमाकान्तजी एवं बहिन मंजुजी हैं। स्वामी जी ने जामिया मिलिया विश्वविद्यालय, दिल्ली से सिविल इंजीनियरिंग में बी.टैक. की उपाधि प्राप्त की है। स्वामी जी ने अर्जित अपनी शिक्षा एवं अनुभवों का प्रयोग अपनी सरकारी सेवा में किया।
स्वामी जी को आर्यसमाज का परिचय अपने विद्यार्थी जीवन के आचार्य पं. शिवलाल शास्त्री जी से हुआ जो संस्कृत पाठशाला, बदरपुर चलाते थे। शास्त्री जी आर्यसमाज के निष्ठावान अनुयायी एवं प्रचारक थे। उनकी प्रेरणा से ही आपको सन्ध्या एवं गायत्री जप आदि साधनायें करने की प्रेरणा मिली। इस पृष्ठभूमि से ही आप आर्यसमाज संगठन में सम्मिलित एवं समर्पित हुए। अग्निहोत्र यज्ञों के प्रति स्वामी जी में अगाध प्रेम, श्रद्धा तथा भक्ति की भावना है। इसका विस्तार स्वामी जी में माता शान्तिदेवी अग्निहोत्री, दिल्ली व उनके परिवार के सम्पर्क में आने पर हुआ। स्वामी जी माता शान्तिदेवी जी के निवास पर एक यज्ञ में सम्मिलित हुए थे जिसके ब्रह्मा आर्यसमाज के प्रसिद्ध यज्ञाचार्य स्वामी दीक्षानन्द सरस्वती जी थे। इस यज्ञ में भाग लेने पर स्वामी जी वैदिक रीत्यानुसार सम्पन्न यज्ञ के प्रति अत्यन्त आकर्षित एवं प्रभावित हुए थे और भविष्य में यही उनके जीवन का मुख्य कार्य व प्रयोजन बन गया।
स्वामी चित्तेश्वरानन्द सरस्वती जी सन् 1980 में गुरुकुल गौतमनगर दिल्ली के आचार्य हरिदेव जी, वर्तमान में स्वामी प्रणवानन्द सरस्वती, के सम्पर्क में आये थे। इन दोनों विभूतियों ने परस्पर सहयोग करते हुए यज्ञों की परम्परा को आगे बढ़ाया। सन् 1980 में स्वामी जी और आचार्य हरिदेव जी ने गुरुकुल गौतमनगर दिल्ली में यजुर्वेद एवं सामवेद पारायण कराया व किया था। इसके बाद इस गुरुकुल में प्रत्येक वर्ष चतुर्वेद ब्रह्म पारायण यज्ञ की परम्परा पड़ी जो अद्यावधि जारी है। इन्हीं दिनों स्वामी जी, पूर्वनाम श्री चतरसिंह वर्मा, गुरुकुल मंझावली में रहकर योग साधना एवं वृहद वेद पारायण यज्ञ आदि करने लगे। गुरुकुल गौतमनगर दिल्ली में सन् 1980 में वृहद यज्ञों के अन्तर्गत वेद पारायण यज्ञ एवं चर्तुवेद पारायणों की जो परम्परा आरम्भ हुई उससे सम्बन्धित अधिकांश व्यय स्वामी चित्तेश्वरानन्द सरस्वती जी वहन करते थे। स्वामी चित्तेश्वरानन्द जी सहित आर्यसमाज के संन्यासी स्वामी निर्भयानन्द जी ने भी इन वृहद यज्ञों में सहयोग किया था। वृहद यज्ञों के अतिरिक्त स्वामी जी ने गायत्री पुरश्चरण के अनेक बार वृहद यज्ञों का आयोजन एवं निर्देशन किया है।
स्वामी जी को साधना के प्रति गहरी श्रद्धा है। आपने देहरादून में अपने धौलास स्थित आश्रम में सन् 2002-2005 के मध्य तीन वर्ष का काष्ठ अदर्शन मौन तप किया। उनकी एक तपस्विनी शिष्या साध्वी प्रज्ञा जी ने भी एक वर्ष पूर्व तीन वर्ष का काष्ठ अदर्शन मौन व्रत सफलतापूर्वक पूर्ण किया था। हमें भी इन माताजी के दर्शन एवं विचार सुनने का अवसर वैदिक साधन आश्रम के एक वृहद यज्ञ के समापन के अवसर पर एक वर्ष पूर्व प्राप्त हुआ था।
स्वामी चित्तेश्वरानन्द जी वैदिक साधन आश्रम सोसायटी के सदस्य हैं। सभी सदस्यों में वह एकमात्र संन्यासी हैं। उनके मार्गदर्शन का सभी सदस्य विनम्रतापूर्वक सम्मान करते हैं। स्वामी जी आश्रम की उन्नति में सर्वात्मा संलग्न हैं। समय समय पर स्वामी जी ने आश्रम में अनेक महत्वपूर्ण कार्य करायें हैं। वैदिक साधन आश्रम की दो इकाईयां हैं। प्रथम इकाई देहरादून से 6 किमी. दूरी पर नालापानी ग्राम में है। दूसरी इकाई मुख्य आश्रम से 3.0 किमी. दूरी पर ऊंचे पर्वत पर हैं। आश्रम का अपना यह निजी स्थान विस्तृत स्थान हैं जो वनो से आच्छादित है। यह स्थान पूर्णतय शान्त एवं साधना के लिये सर्वोत्तम है। इस स्थान पर अनेक वर्षों तक महात्मा आनन्द स्वामी जी आते रहे और साधना करते रहे। वैदिक साधन आश्रम तपोवन की स्थापना का मुख्य श्रेय भी उन्हीं को है। आश्रम की स्थापना उन्की की प्रेरणा से उनके मित्र, सहयोगी एवं शिष्य बावा गुरमुखसिंह, अमृतसर ने की थी। 60-70 वर्ष पूर्व आश्रम की पर्वतीय इकाई वाले स्थान पर पैदल चलकर ही पहुंचा जा सकता था। हम वर्ष 1980-1990 के दशक में इस स्थान पर पैदल ही आते जाते थे। पहले इस स्थान की बाउण्ड्री वाल नहीं थी। सन् 2006 में स्वामी जी अपनी ओर से 25 लाख रुपये से अधिक व्यय कर इसकी चारदीवारी की है। इसी आश्रम में अनेक वर्षों से स्वामी चित्तेश्वरानन्द जी वर्ष में एक बार चतुर्वेद पारायण यज्ञ कराया करते थे परन्तु यहां समुचित यज्ञशाला की व्यवस्था नहीं थी। स्वामी जी ने लोगों को प्रेरणा कर यहां 50 फीट की एक वर्गाकार भव्य एवं विशाल यज्ञशाला का निर्माण कराया है।
वैदिक साधन आश्रम तपोवन की पर्वतीय इकाई इस आश्रम में स्वामी जी ने वर्षों पहले एक साधना सत्संग हाल का निर्माण कराया था। वर्तमान समय में इस स्थान पर जब जब कोई शिविर आदि लगता है, तब उस उस शिविर के शिविरार्थी इस सत्संग हाल का सदुपयोग करते हैं। आश्रम में लगभग प्रत्येक माह स्वामी योगेश्वरानन्द सरस्वती, देहरादून के निर्देशन में प्राकृतिक चिकित्सा शिविर लगता है। यह सत्संग हाल शिविर के सभी सहभागियों द्वारा उपयोग में लाया जाता है। आरम्भ से ही इस आश्रम स्थान में जल उपलब्धता की सुविधा का अभाव था। स्वामी जी ने अपनी ओर से हैदराबाद से ट्यूबवैल के सर्वेयरों को बुलाया और जल की उपलब्धता के बारे में पता किया। सर्वेयरों ने तीन स्थानों पर जल होने की सम्भावना सूचित की थी। स्वामी जी ने तीन में से एक स्थान पर बोरिंग कराई। इसके परिणामस्वरूप लगभग 400 फीट नीचे जल प्राप्त हुआ। वर्तमान में यहां प्रचुर मात्रा में जल प्राप्त है। विद्युत यहां पहले से ही उपलब्ध है। मोबाईल के भी सिग्नल यहां आते हैं और कुछ मोबाइल नैटवर्कों पर बातें हो जाती हैं। अतः सब सुविधाओं से युक्त यह स्थान साधकों के लिये उत्तम साधना स्थली के रूप में सुलभ है जिसमें आश्रम के संस्थापकों व अधिकारियों सहित स्वामी चित्तेश्वरानन्द जी का सहयोग भी उल्लेखनीय है।
स्वामी चित्तेश्वरानन्द जी तपोवन की इस पर्वतीय इकाई में विगत लगभग 20 वर्षों से वर्ष में एक बार फरवरी-मार्च महीने में चतुर्वेद पारायण एवं गायत्री यज्ञों का अनुष्ठान करा रहे हैं। इस वृहद यज्ञ में देश के अनेक भागों से याज्ञिक एवं साधक आते हैं। यहां रहने वाले शिविरार्थियों को अनेक कठोर नियमों का पालन करना पड़ता है। वह शिविर की अवधि के मध्य में आश्रम से बाहर नहीं जा सकते। भोजन भी कुछ दिनों तक फीका ही खाना पड़ता है। अन्य कुछ और कठोर नियम हैं जिनका सभी शिविरार्थी पालन करते हैं और पूर्णाहुति पर अपने अनुभव सुनाते हुए यहां बिताये अपने समय को महत्वपूर्ण एवं उपयोगी बताते हैं।
स्वामी चित्तेश्वरानन्द सरस्वती जी स्कूलों के ग्रीष्मकालीन अवकाश के दिनों में अपने धौलास स्थित आश्रम में छोटी आयु की युवकों के लिए वैदिक धर्म एवं संस्कृति के प्रचार के लिए शिविर भी लगाते हैं। इस आश्रम में दैनिक यज्ञ नियमित होते हैं। वृहद वेद पारायण एवं गायत्री यज्ञों का आयोजन भी यहां पर हुआ करता है। हम भी यहां कई बार वृहद यज्ञों के आयोजनों में सम्मिलित हुए हैं। नगर से यह आश्रम लगभग 20 किमी. दूरी पर स्थित है। यह स्थान ग्रामीण स्थान है। हमारा धौलास आश्रम ग्राम से कुछ दूरी पर एक निर्जन से स्थान पर है जहां बहुत कम लोग निवास करते हैं।
स्वामी चित्तेश्वरानन्द जी ने धौलास के साधना आश्रम में साधना करने के लिए 20 फीट लम्बा व चौड़ा लकड़ी का एक पिरामिड बनवाया है। ऐसा बताते हैं कि इस पिरामिड में बैठकर ध्यान करने से शीघ्र सफलता मिलती है। इस पिरामिड में विद्युतीय प्रकाश आदि की व्यवस्था नहीं की गई है। हमें यह भी बताया गया है कि इस पिरामिड में फल आदि रखने पर वह अधिक समय तक ताजे रहते हैं।
स्वामी चित्तेश्वरानन्द सरस्वती जी ने आर्यसमाज में अनेक विद्वानों को संन्यास की दीक्षा भी दी है। कुछ प्रमुख नाम हैं स्वामी प्रणवानन्द सरस्वती, स्वामी धर्मेश्वरानन्द सरस्वती तथा स्वामी योगेश्वरानन्द सरस्वती, तपोवन आश्रम, देहरादून आदि। स्वामी धर्मेश्वरानन्द जी दिवंगत हो चुके हैं। अन्य दो संन्यासी वेद प्रचार का प्रशंसनीय रीति से कार्य कर रहे हैं। हमें स्वामी चित्तेश्वरानन्द सरस्वती जी का वैदिक साधन आश्रम तपोवन के अनेक कार्यक्रमों सहित गुरुकुल पौंधा-देहरादून तथा गुरुकुल मंझावली एवं गुरुकुल गौतमनगर आदि स्थानों पर दर्शन करने व उनके उपदेशों को श्रवण करने का अवसर मिला है। वह जो भी बोलते हैं उसमें ईश्वर का स्तुतिगान व प्रार्थना होने सहित ईश्वर के उपकारों का व्याख्यान तथा उनके लिए धन्यवाद का भाव मुख्यतः होता है। वह अपने उपदेशों में सबको स्वाध्याय एवं साधना की प्रेरणा मुख्यतः करते हैं।
स्वामी चित्तेश्वरानन्द जी ने अपने जीवन में दीर्घकालीन वृहद वेदापारायण व गायत्री यज्ञ करायें हैं जिसमें लाखों व करोड़ों आहुतियां दी गई हैं। कुछ वर्ष पूर्व स्वामी जी ने गुरुकुल मंझावली-हरयाणा में भी 6 माह की अवधि का एक वृहद यज्ञ कराया था जिसमें लाखों आहुतियां दी गई थी। हमारा अनुमान है कि विगत कई दशकों में यह महायज्ञ एक वृहदतम यज्ञीय आयोजन रहा है। स्वामी जी वेद, योग एवं यज्ञ को पूर्णतया समर्पित हैं। उनका जीवन वेदमय, योगमय एवं यज्ञमय हैं। हम उनको प्रणाम करते हैं और उनके स्वस्थ एवं दीर्धजीवन की कामना करते हैं।
हमने इस लेख की सामग्री वैदिक साधन आश्रम तपोवन, देहरादून के सचिव श्री प्रेमप्रकाश शर्मा जी तथा श्रीमद्दयानन्द आर्ष ज्योतिर्मठ गुरुकुल पौंधा, देहरादून के आचार्य डा. धनंजय जी से प्राप्त की है। उनका हृदय से धन्यवाद है। ओ३म् शम्।
-मनमोहन कुमार आर्य