मधुमास मधुमक्खी और मधु*
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मधुमक्खी गजब का परिश्रमी सामाजिक बुद्धिमान कीट है । मधुमक्खी अपना जीवन अप्रैल से लेकर सितंबर इन 6-7 महीनों में जी लेती है…. सितंबर के पश्चात सर्दियों का मौसम मधुमक्खियों के लिए बहुत बेरहम विध्वंसक होता है…. इस मौसम में मधुमक्खियां भुख ठंड से मरती हैं। छत्ते में शहद लगभग खत्म हो जाता है जो कुछ भी शहद शेष होता है वह रानी मक्खी के लिए बचाया जाता है…। आखिर रानी के लिए ही शहद क्यों बचाया जाता है यह आगे स्पष्ट हो जाएगा। जैसे ही सर्दियों की विदाई होती है बसंत का महीना आता है विशेषकर चैत्र के महीने में अंग्रेजी कैलेंडर में जिसे अप्रैल माह कहते हैं और चैत्र के महीने का दूसरा नाम मधुमास भी है शायद इसी कारण इस महीने का मधु मास रखा गया कि इस महीने में मधुमक्खियां नवीन ऊर्जा से संगठित होकर फूलों के रस अवशोषण शहद निर्माण छत्ते की मरम्मत देखरेख में जुट जाती हैं। अधिकांश नवीन उपनिवेश छत्त्ता बना कर बसाती है । अप्रैल अर्थात मधुमास में जहां तहां जलीय स्रोतों नलकूपों के आसपास मधुमक्खियां मंडराती दिख जाती है रस से भरे फूलों की तो बात छोड़ीये । मधुमक्खी के किसी एक छत्ते में 20 हजार से लेकर 10 लाख तक मधुमक्खियां हो सकती है ।उन समस्त मक्खियों को तीन श्रेणी में विभाजित किया जा सकता है । एक रानी मक्खी, हजारों नपुसंक बांझ श्रमिक मक्खीया , कुछ सैकड़ों नर मख्खे । रानी मक्खी जिसकी उम्र 3 वर्ष होती है जो अपने जीवन काल में सामान्यतः छत्ते को केवल दो ही बार छोड़ती है एक बार जब उसकी कोई दूसरी उत्तराधिकारी रानी मक्खी तैयार हो जाती है अर्थात उसका तख्तापलट होता है ,दूसरी बार नर मख्खे के साथ खुले आकाश में संसर्ग करने के लिए रानी मक्खी छत्ते को छोड़ती है ।नर मक्खा रानी मख्खी के साथ संसर्ग के पश्चात तुरंत मर जाता है रानी मक्खी एक बार के संसर्ग के पश्चात 3 वर्ष तक निरंतर अंडे देती रहती है मरते दम तक 1 दिन में रानी मक्खी 10000 तक अंडे दे देती है रानी मुखिया जो अंडे देती है उनमें से जो अंडे उसके आस पास ही रहते हैं जिन को अधिक शहद की खुराक मिलती है उन अंडों से प्रजनन क्षमता से युक्त मादा मक्खियां ही उत्पन्न होती है और जिन अंडों की दूरी रानी मख्खी के कोश से दूर होती है उनको कम खुराख मिलती है और अंडों से श्रमिक बांझ मक्खियां उत्पन्न होती है, कुपोषण यहां भी अपना दुष्प्रभाव दिखा रहा है। मधुमक्खि सामाजिक कीट है इनका अपना अकेला व्यक्तिगत जीवन कुछ भी नहीं होता इनका जीवन समूह के लिए समर्पित होता है ‘जमात में ही, करामात है’ यह इस कहावत को भलीभांति चरितार्थ करती हैं और इसमें महत्वपूर्ण भूमिका होती है श्रमिक मक्खियों की श्रमिक मक्खियों की उम्र रानी मक्खी से कम होती है अर्थात 7 महीना होती है ये दिन-रात परिश्रम करती हैं । श्रमिक मुखिया ही फूलों का रस चूस कर शहद बनाती हैं मोम बनाती है छत्ते का निर्माण करती है कहां-कहां शहद मिल सकता है उन स्थानों की टोह लेती है ।अनुशासन के साथ एक सूत्र में काम करती है खतरा महसूस होने पर फार्मिक एसिड में डूबा हुआ डकं भी यही मारती है । सर्व सहमति से लोकतांत्रिक रीति से नवीन रानी मक्खी का चयन भी यही करती है। छत्ते में नर मखों की संख्या कितनी होनी चाहिए? उसका भी नियंत्रण यही करती है कभी-कभी नई रानी मक्खी को ही डंक मार कर मार देती है पुरानी रानी मक्खी को ही पुनः चुन लेती है। शहद सरेस मोम बनाती हैं छत्ते का निर्माण करती है ।रानी मक्खी को खुराक देती है मॉम और छत्ते की मरम्मत छत्ते में तापमान का नियंत्रण किसी परजीवी को छत्ते से दूर रखना छत्ते की सुरक्षा शहद में मिले हुए पानी को पंखों की हवा कर पानी को सुखाने का काम भी यही करती है। छत्ते के हजारों छोटे-छोटे कोश शहद भंडार ग्रह जब शहद से भर जाता है उसे मॉम से लीप कर बंद करने का काम भी यही करती है ।रानी मक्खी के बच्चों का पालन पोषण भी यही करती है। इनका पूरा जीवन जिम्मेदारियों के बोझ तले दबा रहता है यही कारण है इनकी उम्र रानी मक्खी से कम होती है। अब बात नर मख्खो की करते हैं जो फूलों के रस को चूसने में अक्षम होते हैं। उनकी जिह्वा बहुत छोटी होती है कह सकते हैं ।ना ही उनके पास डंक होता है ना ही वह शहद का निर्माण कर सकते हैं तेज आवाज में भिन्न-भिननाते जरूर है श्रमिक मक्खियां कभी शोर नहीं करती। छत्ते में मौजूद सैकड़ों नर मख्खे में केवल एक मख्खा का ही अपने जीवन काल में रानी के साथ मिलन करता है शेष छत्ते पर भार स्वरूप मुफ्त का खाने वाले होते हैं । सर्दियों के प्रतिकूल मौसम में सबसे पहले इन्हे ताडकर बाहर किया जाता है मार मार कर अर्थात छत्ते में जब खुराक में कटौती होती है तो पहले नरम मख्खे की कटौती की जाती है सबसे पहले नर ही भूख से मरते हैं क्योंकि इनके मरने से छत्ते की वंशबेल प्रभावित नहीं होती उल्लेखनीय होगा कि एक रानी मक्खी बगेर नर मख्खे के संसर्ग के भी नर मख्खे उत्पन्न कर सकती है उसे नर से ससंर्ग की आवश्यकता केवल मादा प्रजनन क्षमता से युक्त उत्तराधिकारी रानी मक्खि पैदा करने के लिए ही पड़ती है और इसके बाद भी यदि भोजन का संकट बरकरार रहता है तो छोटे श्रमिक बच्चों के भोजन में कटौती की जाती है लेकिन रानी मक्खी के उत्तराधिकारी मादा मक्खियों के भोजन में कोई कटौती नहीं की जाती फिर भी बेरहम मौसम से उत्पन्न प्रतिकूल हालात समस्या का समाधान नहीं होता तो केवल रानी मक्खी के जीवन को बचाने के लिए ही वरियता दी जाती है। यह तथ्य आज भी रहस्य बना हुआ है कि हजारों लाखों की संख्या में मधुमक्खियां एक साथ सर्व सहमति से निर्णय कैसे लेती है। हजारों की बात छोड़िए दो इंसान भी कभी-कभी उचित निर्णय नहीं ले पाते। 1 छत्ते को त्याग कर दूसरी जगह अनुकूल स्थान पर छत्ते बनाने का निर्णय समस्त मक्खियों का होता है या रानी मक्खी का यह भी अनुसंधान का विषय है । जब हजारों मधुमक्खियां अपने छत्ते को छोड़कर जाती है तो अपने पेट को मुंह को शहद से भर लेती हैं यही कारण है किसी छत्ते को छोड़कर जाती हुई हजारों मक्खियां किसी इंसान या अन्य जीव को नहीं काटती क्योंकि उन्हें अब शहद के लूटने के छत्ते के नष्ट होने का कोई भय नहीं रहता । मधुमक्खियों के ऐसे उड़न दस्ते में सैकड़ों टोही मक्खियां होती है जो उचित स्थान का पता लगाती है ,छत्ते के पुनर्निर्माण के लिए मधुमक्खियां ।इस कार्य में कोई भी चूक नहीं करती सर्दियों के गुजरते ही फरवरी महीने से ही श्रमिक मक्खियां रणनीति बनाने वर्ष भर की कार्य योजना में जुट जाती है पूरी इमानदारी समर्पण भाव से। बेहद अनोखा अनुशासन प्रिय कीट है मधुमक्खी। कभी भी इनके बनाए हुए शहद का प्रयोग करें तो इनके साथ साथ मधुमक्खी को बनाने वाले परमात्मा का आभार जरूर व्यक्त करना। जगत में कुछ भी यूं ही नहीं मिलता बहुत महान परिश्रम कार्य योजना कौशल उनके पीछे छुपा होता है। मधुमक्खियां जंगल की 70 फ़ीसदी वनस्पतियों व मानव की 80 फ़ीसदी से अधिक कृषि उपज बागवानी फलों के परागण के लिए जिम्मेदार है अर्थात यह ना हो तो वृक्ष आपस में फले फूले नहीं वनस्पतियों फल सब्जियों की वंशवेल ही नष्ट हो जाए। यही कारण है महान वैज्ञानिक अल्बर्ट आइंस्टाइन ने कहा था” यदि पृथ्वी से मधुमक्खियां लुप्त हो गई तो मानव सभ्यता को लुप्त होने में 3 महीने लगेंगे केवल”।
आर्य सागर खारी✍✍✍