हमारे और तुम्हारे तालिबान
डॉ0 वेद प्रताप वैदिक
पाकिस्तान की फौज ने आतंकवाद के खिलाफ जबरदस्त अभियान चला रखा है। अब तक लगभग पांच लाख लोग अपना घर-बार छोड़ कर उत्तरी वजीरिस्तान से बाहर निकल चुके हैं। हर शरणार्थी को सरकार हजारों रुपए दे रही है और उसका पंजीकरण भी किया जा रहा है। अब एक-दो दिन में फौज जमीनी सफाया शुरू करेगी। जाहिर है कि जगह-जगह घिरे हुए तालिबान अब बड़ी संख्या में मारे जाएंगे। वे ही बच पाएंगे, जो किसी तरह लुक-छिपकर भाग निकले हैं।
अफगान सरकार का कहना है कि उनकी सीमा में करीब एक लाख लोग घुस गए हैं। इसका अंदाज दोनों सरकारों को पहले से था। इसलिए पाकिस्तान ने अपने पठान सांसद महमूद अचकजई को हामिद करजई से बात करने के लिए काबुल भेजा था। अचकजई के साथ काबुल से लौटते ही मेरा शाकाहारी भोजन और संवाद हुआ था। तालिबान के खिलाफ छेड़े गए इस युद्ध की पेचीदगियों को समझने में अचकजईजी ने मेरी काफी मदद की। अफगानिस्तान भी पाकिस्तान की मदद करना चाहता है लेकिन वह ‘अफगान तालिबान’ को पहले छुड़ाना चाहता है। पाकिस्तान ने अफगानिस्तान के कई तालिबान नेताओं को गिरफ्तार कर रखा है। करजई सरकार का कहना है कि हमारे तालिबान शांति चाहते हैं और अफगान सरकार उनसे बात कर रही है जबकि पाकिस्तान मानता है कि ये तालिबान अफगान सरकार के गुर्गे हैं। ये उसके इशारे पर पाकिस्तान में हमले करते हैं। खासतौर पर मौलाना फजलुल्लाह गिरोह के तालिबान।
इसी तरह अफगान सरकार का इल्जाम है कि पाकिस्तानी सरकार अपने कुछ तालिबान का इस्तेमाल अफगानिस्तान में गड़बड़ी फैलाने के लिए करती है। इसलिए हामिद करजई ने जो अचकजईजी से कहा और जो चिट्ठी पाकिस्तानी विदेश सचिव को दी, उसमें साफ-साफ कह दिया है कि हम इस अभियान में पाकिस्तान का समर्थन करेंगे लेकिन हमारी कुछ शर्तें हैं।
राष्ट्रपति करजई का कहना है कि आतंकवादी और आतंकवादी में भेद करना गलत है। यह अभियान हर रंग के आतंकवादी के खिलाफ होना चाहिए। न कोई नरम है और न कोई गरम! माना यह जाता है कि पाकिस्तानी फौज सिर्फ उन आतंकवादियों के खिलाफ है, जो सिर्फ पाकिस्तान को तंग करते हैं। जो आतंकवादी भारत और अफगानिस्तान के खिलाफ हैं, पाकिस्तान उनकी पीठ ठोकता है। करजई ने कहा है कि जो चीन के खिलाफ सक्रिय है, उन आतंकवादियों पर भी कार्रवाई की जाए। करजई ने इस अभियान को क्षेत्रीय संदर्भ देने की मांग की है, जो बहुत ही सही और व्यावहारिक है।
मुझे विश्वास है कि पाकिस्तान की फौज और नेता अपने जिम्मेदारी को अच्छी तरह समझ गए हैं। उन्होंने देख लिया है कि उन्होंने जिन मुजाहिदीन और तालिबान को हिंसा के रास्ते पर चलने में शुरू में मदद की, उन्होंने ही सफल होने पर पाकिस्तान को ही अपना निशाना बनाया। पाकिस्तान ने भी यह अमेरिका के इशारे पर उसके लाभ के लिए किया था। कुल मिलाकार नुकसान पाकिस्तान का ही हुआ। अब पाकिस्तान इस हिंसा की राजनीति को अपने देश से विदा करने का संकल्प ले, तभी यह हिंसक अभियान सफल होगा। तालिबान के बचे-खुचे लोगों से भी बातचीत का रास्ता निकाले। यदि तालिबान आत्मसमर्पण कर दें तो उन्हें क्षमादान देकर मुख्यधारा में लाने की कोशिश की जाए। यह तभी होगा जबकि पाकिस्तान हमारे और तुम्हारे तालिबान में फर्क करना बंद करेगा।