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इस बार मार्च के महीने में ही मई जैसी गर्मी पड़ी ।अप्रैल महीना भी गर्मी के पुराने रिकॉर्ड तोड़ने को तैयार है । मार्च अप्रैल का महीना बसंत ऋतु का महीना आता है लेकिन इस ऋतु में ग्रीष्म ऋतु के लक्षण पहले से ही दिखाई देने लग गए… अर्थात समय से पहले गर्मियां आ गई जबकि भारत में गर्मियों की ऋतु मई-जून मानी गई है। यह कोई पहली बार घटित नही हुआ है आयुर्वेद में ऐसी अवस्था को व्यापन्न ऋतु कहा गया है,जब किसी एक ऋतु में दूसरी ऋतु के लक्षण प्रकट होने लगते हैं इसे तीन भागों में बाटा गया ऋतु का अतियोग , विपरित योग , विषम योग। जब गर्मी में अधिक गर्मी पड़े तो अतियोग जब कम गर्मी पड़े विपरित योग गर्मी ना ही पड़े विषम योग माना जाता है। ऋतु के नियमित व्यवस्थित चक्र में वृक्षों की बहुत महत्वपूर्ण भूमिका है। वृक्ष ना केवल फल दवाई भोजन छाया प्राणवायु ऑक्सीजन देते हैं अपितु वातावरण को भी ठंडा निरंतर करते रहते हैं सुबह सूर्य उदय से लेकर सूर्य अस्त तक विशेषकर गर्मी की ऋतु में । पर्यावरण वैज्ञानिक, वनस्पति विज्ञानी सैद्धांतिक तौर पर तो इस तथ्य से सहमत थे कि वृक्ष वातावरण को ठंडा रखते हैं लेकिन इस विषय में बहुत कम प्रयोग शोध उपलब्ध थे । वृक्षों की खूबी को लेकर मलेशिया की टेक्निकल यूनिवर्सिटी ने बेहद अनूठा शोध किया जिसने वृक्ष कैसे वातावरण को ठंडा करते हैं इस विषय को पूरी सरलता से स्पष्ट कर दिया इस विषय को निर्विवाद बना दिया। उस शोध पर चर्चा करने से पूर्व उल्लेखनीय होगा कि भारतीय वैदिक मनीषा इस तथ्य से भलीभांति परिचित थी की वृक्ष जीव तंत्र के लिए कितने उपयोगी हैं। यही कारण रहा हमारी संस्कृति में वृक्षों को काटना महापाप माना जाता था एक वृक्ष को 10 पुत्रों के समान माना गया है । वृक्ष वनस्पतियों की सुख शांति के लिए भी कामना की जाती रही यज्ञ में आहुतियां भी दी जाती है। वैदिक शांति पाठ में ‘वनस्पते शांति’ यह पद इसी लिये है ।इतना ही नहीं पंच महायज्ञ में अंतिम यज्ञ बलिवेश्वदेव यज्ञ में इस वनस्पतियों के लिए भी भोजन का भाग रखने का विधान प्रत्येक ग्रहस्थ के द्वारा किया गया है अर्थात हवन के द्वारा शुद्ध की गई वायु से वृक्षों को भोजन मिलता है । अब चर्चा मलेशिया की यूनिवर्सिटी के शोध की करते हैं ।यह शोध 2 महीने तक चला एक विशेष इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस छायादार विशाल वृक्ष के नीचे स्थापित कर दी गई जो वृक्ष के आसपास वातावरण के ताप आद्रता की नाप लेती थी। शोध का अंतिम निष्कर्ष यह निकला किसी भी घने छायादार वृक्ष के नीचे वातावरण का ताप 9 डिग्री सेल्सियस तक कम हो जाता है साथ ही आर्द्रता 65 फ़ीसदी तक हो जाती है शुष्क वायु में। रिसर्चगेट.नेट पर यह शोध आज भी उपलब्ध है अब हम चर्चा करते हैं आखिर वृक्ष वातावरण को ठंडा कैसे रखते हैं? वृक्ष दोहरे स्तर से वातावरण को ठंडा रखते हैं किसी घने बरगद पीपल गूलर जैसे छायादार वृक्ष को जब हम किसी अन्य उँची संरचना इमारत आसमान से निहारते हैं तो एक हरी छतरी की भांति वह नजर आता है इसे कैनोपी बोला जाता है जितनी बड़ी कनोपी उतना ही अधिक शेडिंग इफेक्ट अर्थात छाया का प्रभाव वृक्ष का होता है…. जितना अधिक छाया का प्रभाव होता है उतना ही कुलिंग
इफेक्ट (शीतलन प्रभाव )किसी वृक्ष का होता है । सूर्य की किरणें जब किसी वृक्ष पर पड़ती है तो वृक्ष सूर्य के अधिकांश सौर विकरण में से अधिकांश ऊष्मा ऊर्जा को अपने भोजन निर्माण के लिए ग्रहण कर लेता है तथा शेष अधिकांश ऊर्जा को परावर्तित कर देता है अर्थात धरती के आंचल को गर्म होने नहीं देते वृक्ष यह खूबी केवल वृक्षों में ही है मानव निर्मित कोई भी सरचना मकान भवन सड़क खेल का पक्का मैदान ऐसा नहीं होता कंक्रीट की इमारते सड़क दिनभर सूर्य की उष्मा को ग्रहण करती हैं उसे परावर्तित नहीं करती धरती का आंचल गर्म होता है और कंक्रीट की इमारत आसपास के तापमान को बढ़ाती है जबकि वृक्ष ऐसा नहीं करते। वातावरण को ठंडा करने की दूसरी व्यवस्था बेहद अनूठी है वृक्षों में ,जो हमारे शरीर की भांति कार्य करती है हमारे शरीर में गर्मी से बचने के लिए हमारी त्वचा में असंख्य स्वेद छिद्र होते हैं जो पसीने के रूप में पानी छोड़ते हैं जिससे हमारी त्वचा नम बनी रहे गर्मी का एहसास नही होता ठीक ऐसा ही अनोखा मैकेनिज्म वृक्षों में भी कार्य करता है अंतर केवल इतना है मनुष्य केवल अपने शरीर को ठंडा रखता है वृक्ष अपने साथ-साथ वातावरण को भी ठंडा करते रहते हैं गर्मी वृक्षों को भी सताती है गर्मी वृक्षों के लिए भी जानलेवा होती है अधिक गर्मी के प्रभाव से वृक्षों के तने कोशिका तापमान से नष्ट होते हैं एक बड़े वृक्ष की जड़ जमीन में केई फीट नीचे चली जाती है। वृक्ष अपनी जड़ों से जमीन से पानी ‘कैपिलरी फोर्स’ के माध्यम से गुरुत्वाकर्षण बल के प्रभाव के विपरीत खेचते रहते है वृक्षों के तने से होते हुए वृक्षों की पत्तियों तक पानी पहुंच जाता है और वृक्ष अपने आप को ठंडा रखने के लिए वातावरण में पानी की नन्ही नन्ही बूंदों की बौछार निरंतर करते रहते हैं आंखों से दिखाई ना देने वाली पानी की यह बौछार पत्तियों में स्थित विशेष छिद्रों से होती है जिनसे वृक्ष सास भी लेता है ऑक्सीजन कार्बन डाइऑक्साइड का एक्सचेंज करता रहता है । इन्हें स्टोमेटा बोला जाता है एक गूलर पीपल जैसे विशाल वृक्ष प्रतिदिन अपनी आदर्श अवस्था में वातावरण में 60 से लेकर 70 लीटर पानी छोड़ता है वृक्ष द्वारा छोड़ा गया पानी अपने आसपास वायु की आद्रता में वृद्धि करता है वायु ठंडी होती रहती है…. बहुत से वृक्षों का मिलाजुला प्रभाव वातावरण को बेहद ठंडा रखता है आज गुरुग्राम न्यू फरीदाबाद ग्रेटर नोएडा वेस्ट जैसे बसते हुए शहरों में वृक्षों का अभाव है ऊंचे ऊंचे अपार्टमेंट है यह शहर ‘हीट आइसलैंड’ है अर्थात ऊष्मा के टापू है जो दिन भर गर्मी उर्जा को अपने अंदर स्टोर करते हैं शाम को वातावरण में छोड़ देते हैं हमारे अधिकांश शहर ऐसे ही हिट आइसलैंड बन गए हैं नगरों के नियोजन में विकास में हरियाली वृक्षों को बढ़ावा देना चाहिए ग्रेटर नोएडा में पर्याप्त हरियाली है नोएडा भी संतोषजनक स्थिति से हरा भरा है यह सुखद तथ्य है हमें प्रत्येक वर्ष बड गूलर पीपल पिलखन जैसे वृक्ष रोपने चाहिए यदि अधिक तापमान के दुष्प्रभाव से बचना है वृक्ष बगैर विद्युत ऊर्जा के चलने वाला एयर कंडीशनर है एयर फिल्टर है एयर क्वालिटी का कंट्रोलर है वृक्षो की असंख्य खूबियां है जितना जितना शोध हो रहा है उतनी इतनी वृक्षों की खूबियां अब सामने आ रही है। हमें हरियाली को बढ़ावा देना चाहिए।
*आर्य सागर खारी*✍✍✍