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कविता

गीता मेरे गीतों में : किस पर तू व्यर्थ गुमान करे

गीता मेरे गीतों में
गीत संख्या – 7

किस पर तू व्यर्थ गुमान करे ?

टेक : – जीवन पाकर क्यों इतराता,
किस पर तू व्यर्थ गुमान करे ?

यहाँ आना सही, फिर जाना सही
यहाँ हंसना सही और गाना  सही
यदि   प्रेम   किया  ना  ईश्वर   से
फिर किस  पर  तू अभिमान करे ?
जीवन पाकर क्यों इतराता, किस पर तू व्यर्थ गुमान करे ?।। 1।।

जो कुछ भी मिला तुझे रब से मिला
संसार   से   छोड़   तू   सारे   गिला
ईश्वर    तेरे   भाव     समझता   है
संसार से   क्यों  तू   बखान   करे।
जीवन पाकर क्यों इतराता, किस पर तू व्यर्थ गुमान करे ?।।2।।

कर निष्काम कर्म , यही तेरा धर्म
गीता  से  मिटते   मन  के  भरम
वैदिक    आदर्श   को  अपना  ले
कृपा  तुझ   पर    भगवान   करे।
जीवन पाकर क्यों इतराता, किस पर तू व्यर्थ गुमान करे ?।।3।।

है  जीवन  थोड़ा  और  काम  बड़ा
चौराहे   पर  क्यों   तू   व्यर्थ  खड़ा
प्रभु अपने से  निज  मन  को  लगा
फिर  देखना   जग   सम्मान   करे।
जीवन पाकर क्यों इतराता, किस पर तू व्यर्थ गुमान करे ?।।4।।

( ‘गीता मेरे गीतों में’ नमक मेरी नई पुस्तक से)
डॉ राकेश कुमार आर्य
संपादक : उगता भारत

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