– इंजीनियर श्याम सुन्दर पोद्दार, महामन्त्री वीर सावरकर फ़ाउंडेशन ——————————————— गांधी समकालीन इतिहास का एक कौतूहल हैं। इसे उनके प्रारब्ध का ही कोई खेल समझा जाएगा कि देश के लिए उन्होंने जितना ही कुछ नकारात्मक किया उतना ही उन्हें सकारात्मक समझकर इतिहास में स्थान दिया गया । उनके जीवन की ऐसी बहुत कम उपलब्धियां हैं जिनसे इतिहास गौरवान्वित हो सकता हो, परंतु दिखाया कुछ इस प्रकार गया है कि जैसे उन्होंने जो कुछ भी किया सब ऐतिहासिक ही था ।
दक्षिण अफ़्रीका से भारत की राजनीति में १९१५ में प्रवेश कर गाँधी ने चंपारन सत्याग्रह, अहमदाबाद श्रमिक आंदोलन आदि किया।गाँधी के कहने पर अंग्रेज़ी सरकार ने मुस्लिम लीग के नेता मोहम्मद अली, सौकत अली को छोड़ दिया, जिन्हें अंग्रेजों ने मुस्लिम लीग के झण्डे तले ख़िलाफ़त आंदोलन किया था। अब राष्ट्रीय स्तर पर गांधी को कुछ करना था इसलिए उन्होंने टाँय टाँय फिस्स हुए मुस्लिम लीग के खिलाफत आंदोलन को कॉन्ग्रेस के झंडे तले करने का कार्यक्रम बनाया। अपने इस कार्यक्रम में उन्होंने मुस्लिम लीग के नेता मोहम्मद अली, सौकत अली, मौलाना आज़ाद आदि के साथ मिलकर कार्यक्रम बनाया। मोहम्मद अली, सौकत अली,मौलाना आज़ाद ने गाँधी के इस प्रकार ख़िलाफ़त आंदोलन को समर्थन देने पर भारत में पुनः मुस्लिम राज स्थापित करने की योजना बना ली।
अपनी योजना को सिरे चढ़ाने के लिए इन मुस्लिम लीगी नेताओं ने यह निर्णय लिया कि एक तरफ तो हिंदू मुस्लिम अंग्रेजों के विरुद्ध राष्ट्रव्यापी आंदोलन करके अशांति उत्पन्न करेंगे
दूसरी तरफ़ अफगनिस्तान भारत पर आक्रमण करेगा व दिल्ली पर उसका शासन होने से अफगनिस्तान का राज हो जाएगा। अपने मौलिक चरित्र से गांधी जी पूरे मुस्लिम परस्त थे। वह मुस्लिमों के शासन को विदेशी नहीं मानते थे। यही कारण था कि वह मुस्लिम लीग के नेताओं के इस कार्यक्रम से पूर्णतया सहमत हो गए थे। गांधी जी का कहना था कि इस प्रकार मिलकर विदेशियों के खिलाफ लड़ने का मौका किसी देश को हजार साल में भी नहीं मिलता है। कहने का मतलब यह था कि यदि इस प्रकार लड़ते हुए अफगानिस्तान के मुस्लिम शासक का हिंदुस्तान पर राज हो जाता है तो इसे गांधी जी की भाषा में स्वदेशी राज ही माना जा रहा था।
इसलिये अपने अख़बार यंग इंडिया में १.६.१९२१ को लिखा “the Afgan if successful were sure to establish their Kingdom in India”इस से पहले ४.५.१९२१ को यंग इंडिया में गाँधी लिखते है,”I would in a sense certainly assist Amir of Afaganistan if he wage war against the British Government.”
किंतु अंग्रेजों ने मुस्लिम लीग के नेताओं की इस योजना को अफगानिस्तान के अमीर को गद्दी से हटाकर बच्चा साकू को बैठाकर असफल कर दिया।
मुस्लिम लीग के नेता दो रंग की चाल खेल रहे थे। वे मुस्लिम लीग की राजनीति भी करते रहे और मुस्लिम लीगी होते हुए भी कांग्रेस के नेता बनने में सफल हो गए।
१९२४ में मोहम्मद अली को गाँधी ने कांग्रेस का अध्यक्ष बना दिया। १९२७ में मुस्लिम लीग के कलकत्ता सम्मेलन की अध्यक्षता करते हुए मौलाना आज़ाद ने मुस्लिम प्रभुत्व वाले ५ राज्यों के निर्माण का लाभ बताया। उन्होंने कहा यह योजना मुस्लिम हितों की रक्षा के लिये अच्छा अस्त्र है। यदि हिन्दु प्रभुत्व वाले राज्यों में मुसलमानो के साथ कोई अप्रिय घटना घटती है तो मुसलमानो को मुस्लिम प्रभुत्व वाले राज्यों में हिन्दुओं से बदला लेने का अवसर मिलेगा।….अब हम मुस्लिमों के पास हिन्दुओं के नौ राज्यों की तुलना में ५ राज्य होंगे। मुस्लिम इन पाँच राज्यों में tit for tat नीति अपना सकते है।(बुक-Dr.Ambedkar on minorities- by Sri Prakash Singh,page-६९)
मौलाना आज़ाद की बात को २९ दिसम्बर १९३० में इलाहाबाद में अनुष्ठित मुस्लिम लीग के सम्मेलन की अध्यक्षता करते हुए मोहम्मद इक़बाल ने प्रस्ताव पारित करवाया,”पश्चिम दिशा में पंजाब,सिन्ध, फ़्रण्टियर प्रॉविन्स व बलूचिस्तान को मिलाकर एक मुस्लिम राज्य ब्रिटिश सत्ता के अन्तर्गत या स्वतंत्र बनाया जाय”।
मुस्लिम लीग के सम्मेलन की समाप्ति के अगले दिन,कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष व वर्तमान में कार्यकारिणी सदस्य मोहम्मद अली ने १ जनवरी १९३१ ब्रिटेन के प्रधान मंत्री को धमकी भरा टेलीग्राम भेजा,”The real problem before us is to give full power to Muslims in such provinces in those in which they are in majority are established by new constitution. I submit not as a threat but as a very humble and friendly warning there will be Civil war.”
१९३५ में जब भारत सरकार एक्ट १९३५ के तहत जब बम्बई प्रेज़िडेन्सी से अलग कर सिंध प्रान्त का गठन किया गया। तब अपने समाचार पत्र “अल हिलाल” के सम्पादकीय में मौलाना आज़ाद ने लिखा,”यह दिन भारतीय मुसलमानो के लिये स्वर्णिम दिन है। इसने पश्चिम में मुस्लिम मेजोरिटी राज्य की स्ट्रेच खड़ी कर दीं है,जिसे किसी दिन मुसलमान अपने होमलैंड के रूप में माँग सकते हैं।”
१९३७ में प्रान्तीय एसेंबलीज के चुनावों में मुस्लिम लीग को मुँह की खानी पड़ी थी। बंगाल बिधानसभा की ११६ मुस्लिम सीटों में उसे मात्र ४० सीटें मिली थी। राष्ट्रवादी मुस्लिम पार्टी को ४१,फ़ज़लुल हक़ की कृषक मज़दूर पार्टी को ३५ सीटें मिली। पंजाब में तो मुस्लिम लीग का सूपड़ा साफ़ हो गया। उसे मात्र १ सीट मिली। इसी तरह सारे भारत में मुस्लिम लीग को मुस्लिम समाज ने अस्वीकार कर दिया।
बंगाल कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष सुभाष चन्द्र बोस ने कांग्रेस के साथ फ़ज़लुल हक़ की कृषक मज़दूर प्रजा पार्टी गठबंधन बना सरकार बनाने का प्रयास किया तथा गाँधी ने भी सुभाष चन्द्र बोस की योजना को स्वीकृति प्रदान कर दी। इस बीच मौलाना आज़ाद ने सुभाष बाबु की योजना को गाँधी को यह समझा कर कि कांग्रेस को किसी मुस्लिम पार्टी के साथ मिल कर सरकार नही बनानी चाहिये। सिर्फ़ मुस्लिम दलो को आपस में मिल कर सरकार बनानी चाहिये। नही तो मुस्लिम समाज कांग्रेस के इस प्रयास को अच्छे से नही लेगा।
इस तरह १९३८ में मुस्लिम लीग को मौलाना आज़ाद ने बंगाल में सत्ता में बैठा दिया। तथा १९४५ में मौलाना आज़ाद के इसी सिद्धांत के चलते मुस्लिम लीग ने केंद्रीय धारा सभा की सभी ३० मुस्लिम सीट ९३ प्रतिशत मत पाकर जीत ली। व पाकिस्तान बना दिया।अब गाँधी को अपनी मूर्खता का आभाष हुआ। इन मुस्लिम लीग नेताओं को १९२० से महत्व नही देते तो पाकिस्तान नही बनता। अब अपनी भूल को सुधारने के लिये गाँधी ने मौलाना आज़ाद को अगस्त १९४७ में केंद्रीय मंत्रिमंडल से त्याग पत्र देने का आदेश दिया (Book -The Transfer of Power,42-7,vol.XII page-601) परन्तु गाँधी को नेहरू ने इस समय तक इतना कमजोर व लाचार कर दिया था कि मौलाना आज़ाद ने गाँधी के आदेश की परवाह ही नही की। गाँधी की आँखो के नीचे मुस्लिम लीग के नेता गाँधी की मूर्ख बनाते रहे व पाकिस्तान बना दिया। जो व्यक्ति अपने साथ रहने वाले लोगों के धोखे को नहीं समझ पाया और देश को बहुत बड़ा धोखा दे गया, उसके विषय में बहुत अधिक गुणगान करना इतिहास की आत्मा का मजाक उड़ाने के समान है।
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