मुजफ्फर हुसैन
गतांक से आगे…….
मुंबई आज भी वह दिन भूली नही है जब इसका विरोध करते हुए तीस साल के एक युवक ने अपनी जान दे दी। सहसा ही मुंबई वासियों के बाबू गेनू की याद आ गयी, जो 25 साल का जवान था, जिसने विदेशी कपड़ों से भरे ट्रक को अपनी छाती से रोकने का प्रयास किया था। बाबू गेनू को विदेशी माल के सौदागरों ने ट्रक
अलकबीर एक्सपोट्र्स लि. ने 6 फरवरी 1998 को कहा था कि अलकबीर समूह द्वारा इस इकाई को प्रारंभ करते समय खुशी महसूस कर रहा है। हम 1976 से जाने माने निर्यातक हैं। हमारा मुख्य लक्ष्य मध्य पूर्व में भारतीय पशुओं का मांस पहुंचाना है। कंपनी ने अपनी रपट में कहा था कि भारत में सात करोड़ पचास लाख भैंसें और पाड़े हैं, जिनमें से कत्ल के लिए तीन करोड़ तीस लाख भैंस पाड़ों को चुना जाएगा। इतने अधिक पशुओं की हत्या से कितनी हानि हुई और उसके क्या दूरगामी परिणाम सामने आए, यह तो एक लंबी बहस है, लेकिन जिस कंपनी ने कहा था कि इस कारखाने से एक लाख 25 हजार लोगों को काम मिलेगा, अब तक केवल 456 लोगों का काम मिला है। भारतीय जनता और अहिंसा प्रेमियों के लगातार आंदोलन करने से अलकबीर का नाम तो जाना माना है, लेकिन इस प्रकार की 36 अन्य इकाईयां भारतीय पशुओं का कत्लेआम करके प्रतिवर्ष करोड़ों की कमाई कर रही हैं। इनमें चंडीगढ़ के निकट पटियाला जिले के डेराबक्सी गांव में ऑस्टे्रलियन कंपनी के सहयोग से ऐसा कत्लखाना स्थापित हुआ है जिसमें 8 घंटों के भीतर बीस हजार पषुओं की हत्या की जाती है। क्रमश: