राष्ट्र विरोध और मुस्लिम सांप्रदायिकता की लड़ाई लड़ना वामपंथियों का सर्वहारावाद

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——— इंजीनियर श्याम सुन्दर पोद्दार, महामन्त्री,वीर सावरकर फ़ाउंडेशन                                        ——————————————— भारत विरोध करना भारत के वामपंथियों की पहली पसंद है। कांग्रेस और इनके ठगबंधन ने देश को जितनी हानि पहुंचाई है उतनी किसी अन्य ने नहीं । कहने के लिए यह दोनों अलग अलग राजनीतिक विचारधाराओं का प्रतिनिधित्व करते हैं, परंतु सच्चाई यह है कि भारत विरोध के नाम पर दोनों की आम सहमति बनी रहती है।
भारतवर्ष में वामपंथियों ने आजादी से पहले भी मुसलमानों और अंग्रेजों को लाभ पहुंचाने के लिए काम किया। इनके जन संघर्षों का इतिहास हमें बताता है कि वामपंथी राजनैतिक आंदोलन का लक्ष्य सर्वहारा की लड़ाई ना करके ब्रिटिश सत्ता के हित में देश प्रेमी लोगों को जेल भिजवाना था। १९४२ में जब कांग्रेस भारत छोड़ो आंदोलन कर रही थी या दूसरे हिंदूवादी राजनीतिक संगठन अपने-अपने ढंग से आजादी की लड़ाई लड़ रहे थे तब भी कम्युनिस्ट विचारधारा के लोग किसी न किसी प्रकार से अंग्रेजों को लाभ पहुंचा रहे थे और भारत में मुस्लिम सांप्रदायिकता को हवा दे रहे थे। तो १९४५ में घोर मुस्लिम साम्प्रदायिक को चरम तक पहुंचाने में वामपंथियों का योगदान बहुत ही घृणास्पद रहा है।
  ये बामपंथी कम्युनिस्ट हैं। जिन्होंने पाकिस्तान निर्माण की लड़ाई लड़ी। मुस्लिम लीग के साथ कंधा से कंधा लगाकर “पाकिस्तान मानना होगा तभी देश स्वाधीन होगा” नारा लगाते हुवे सड़कों पर जुलूस निकालते थे। एक कम्युनिस्ट लेखक ख़्वाजा अहमद अब्बास ने अपनी पुस्तक “Who killed India”में  लिखा “ India was killed by the Communist Party of India provided Muslim Seperatists with an ideological basis for the irrational and anti-national demand for Pakistan. Phrases like ‘homeland’,’nationalities’,’self determination’etc were all the ammunitions supplied by the Comminists to the legions of Pakistan.”देश क़ो तोड़ने के बाद अर्थात पाकिस्तान बनाने के बाद “केरल” में भारत को फिर  तोड़ने की नीव “मल्लापुरम” को देश का पहला मुस्लिम ज़िला बनाकर रखी।
     मुस्लिम सांप्रदायिकता को बढ़ावा देने की इस प्रकार की नीतियों के चलते यह सोचा जा सकता है कि जहां मुस्लिम बहुल क्षेत्र में हिंदू अल्पसंख्यक हैं, क्या वहां भी हिंदुओं के लिए इसी प्रकार एक अलग जला दिया जा सकता है ?  क्या हम कश्मीर के बारे में ऐसी कल्पना कर सकते हैं कि वहां के सभी हिंदुओं को एक जिले में बसा दिया जाए ? या जहां पर उनकी संख्या अधिक है वहां उनके एसएसपी और डीएम नियुक्त कर उनको एक जिले की सुविधाएं दे दी जाए।
देश को ग़ुलाम बनाने वाले विदेशी  अंग्रेज  कम्युनिस्टों को प्रिय थे। वैसे ही भारत पर आक्रमण कर भारत का एक बड़ा भूभाग हड़पने वाला  चीन भी इन्हें बड़ा प्रिय है । इनकी मान्यता है कि भारत पर हमला कर भारत की ज़मीन हड़पने वाला चीन सच्चा है , भारत ने चीन पर हमला किया है। भारत वर्ष के तमाम कारख़ानों चाहे कानपुर के हों या बंगाल के हों, को बंद करवा कर मृत अवस्था में पहुँचाने वाले कम्युनिस्टों ने करोड़ों मेहनतकश मज़दूरों को दाने दाने का मोहताज बना दिया। आज भी देश को टुकड़े टुकड़े करने का नारा अतीत की तरह ये वामपंथी कम्युनिस्ट गर्व से लगाते हैं।
   वास्तव में भारत की सांस्कृतिक मान्यताओं का जितना गुड गोबर इन कम्युनिस्टों ने किया है उतना किसी अन्य ने नहीं किया। भारत के भीतर ये हर उस व्यक्ति को या संस्था को या संगठन को अपना समर्थन देते हैं जो भारत को मिटाने की कोशिश करती हुई दिखाई देती है। कन्हैया कुमार इसका एक अच्छा उदाहरण है।

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