वीर शिरोमणि मराठा शूर शिवाजी की 342वी जयंती पर विशेष आलेख।
3 अप्रैल 1680 को रायगढ़ के किले में शिवाजी का महाप्रयाण हुआ। कुछ इतिहासकारों के अनुसार उनका निधन टाइफाइड से हो गया था और आखिरी 3 दिन में तेज बुखार से ग्रस्त थे ।कुछ इतिहासकार इस को जहर देकर उनकी हत्या करना भी मानते हैं। दरबार के कुछ मंत्रियों से लेकर उनकी अन्य रानी सोयराबाई की साजिश मानते हैं। ऐसे इतिहासकारों का यह मानना है कि रानी सोयराबाई ने सौतेले बेटे संभाजी के बजाय 10 वर्ष के सगे बेटे राजा राम को नया राजा बनाने के प्रलोभन में यह कदम उठाया।
शिवाजी सभी धर्मों के प्रति आदर का भाव रखते थे, और वह हिंदवी स्वराज्य के प्रथम प्रणेता थे।
उनका एक ही नारा होता था कि “राष्ट्र सर्वप्रथम है ,फिर गुरु, और माता-पिता व परिवार और फिर परमेश्वर का स्थान हैं।”
शिवाजी का शासन काल एक सुशासन के लिए उत्कृष्ट उदाहरण के रूप में इतिहासकारों ने प्रस्तुत किया है।
शिवाजी समर्थ गुरु रामदास के शिष्य थे।
शिवाजी के द्वारा प्रचलित सिक्कों पर गुरु रामदास का चित्र होता था।
माता जीजाबाई के द्वारा पूरी लग्न और भाव के साथ अनुशासित पालन पोषण अपने पुत्र शिवाजी का किया गया था।
विश्व के इतिहास में यह घटना अत्यंत ही महत्वपूर्ण सत्य एवं तथ्य के रूप में दर्ज है कि छत्रपति शिवाजी को जीतने के लिए औरंगजेब ने भरपूर प्रयास किया और 27 साल तक दक्षिण में शिवाजी के साथ जंग लड़ी परंतु शिवाजी ने उस औरंगजेब की नाक में दम कर दिया था। तथा औरंगजेब के दंभ को तोड़ दिया था।
वस्तुतः शिवाजी स्वाभिमान और शौर्य के प्रतीक थे।
आज के महाराष्ट्र में नागपुर व उसके आसपास के क्षेत्र के राजा गुर्जर जाति के थेजो शिवाजी के वंशज थे। शिवाजी का गोत्र बैंसला था। जिसको आज बहुत से साथियों ने बिगाड़ करके बंसल कहने का प्रयास किया हैं।
आपको गर्व की अनुभूति होगी कि आप शिवाजी महाराज के वंशज हैं।
वस्तुतः सन 1793 में रघु जी द्वितीय नागपुर के राजा थे ।जो शिवाजी के वंशज थे। उनकी एक बनूबाई नामक बेटी थी। जिसकी शादी वेंकट राव उर्फ नानासाहेब गुर्जर पुत्र श्री राम राव के साथ हुई थी। जो प्रतापराव गुर्जर के वंशज थे। लेकिन शादी के समय दूल्हा-दुल्हन दोनों ही अल्प वयस्क थे।
भिवापुर एक ताल्लुक होता था । उसमें 6 गांव लगते थे उनकी जो राजस्व से आमदनी होती थी ।वह 17415 रुपए होती थी ।यह शादी के समय बनुबाई को राजा रघु जी सेकंड ने दान दिया था ।रघु जी सेकंड की मृत्यु 1816 में हो गई। प्रतापराव गुर्जर का वंशज हुआ तेज सिंह राव। जिसकी भूमि में से १७६.९१ एकड़ भूमि अतिरिक्त भूमि घोषित कर राज्य सरकार में निहित कर दी गई थी ।जिसके विरुद्ध तेज सिंह राव गुर्जर ने मुकदमा लड़ा।
हाई कोर्ट महाराष्ट्र ने इसे पूर्ण रूप से एक निजी दान माना ,लेकिन यह राजा के द्वारा दी हुई कोई ग्रांट लेजिसलेटिव (अर्थात विधिक अथवा वैधानिक रुप से उचित विधिक दान) रूप में नहीं मानी गई थी ।इसलिए माननीय उच्च न्यायालय मुंबई द्वारा तेज सिंह राव की पेटिशन खारिज कर दी गई ।मामला माननीय सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष गया ।जिसमें 19 अगस्त1992 को निर्णय आया। वह तेज सिंह राव के विरुद्ध आया । जो माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा तय किया गया । तेज सिंह राव द्वारा जो यह कहा गया था कि 199 साल पहले जो सन 1793 में दान मिला था वह भूमि अतिरिक्त भूमि घोषित नहीं की जा सकती है ।यह दलील नहीं मानी गई थी ।तेज सिंह ने सर्वोच्च न्यायालय के सामने यह भी कहा था कि उनके पास यह भूमि रघुजी सेकंड द्वारा दान दिए जाने के कारण से आई है ।रजिस्टर माफी सन 1866 से 1914 तक रघो जी सेकंड द्वारा दी गई हुई भूमि पाई जाती है। जो रामाराव गुर्जर के बेटे व्यंकटराव उर्फ नानासाहेब गुर्जर को शादी के समय दी गई थी। बनो बाई और वेंकट राव के योग से एक लड़का पैदा हुआ। लेकिन उस लड़के को पुरसो जी भोसले ने राज सिंहासन पर बैठाने के लिए दत्तक पुत्र के रूप में ले लिया ।फिर बनो बाई ने चितकोजी राव गुर्जर को गोद लिया। यह भूमि चित् को जी राव गुर्जर को भिवापुर तालुक की उस समय से ही मिल गई । तेजसिंह राव गुर्जर ने तत्कालीन गवर्नर जनरल इंडिया ऑफिस लंदन के पत्र दिनांक 16 दिसंबर 18 67 का भी उल्लेख किया है। जिसमें कि यह भूमि गुर्जर भोंसले फैमिली को (जो नागपुर से संबंध रखती है ,)मिली थी ।
लेकिन माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा इस को स्वीकार नहीं किया गया। महाराष्ट्र एग्रीकल्चरल लैंड सीलिंग ऑन होल्डिंग्स एक्ट 1961 के तहत उक्त भूमि को अतिरिक्त भूमि घोषित किया गया ।यह सुप्रीम कोर्ट का निर्णय दिनांक 20 अगस्त1992 को टाइम्स ऑफ इंडिया में श्री राजेश भटनागर द्वारा प्रकाशित कराया गया था। अतः
सिद्ध होता है कि शिवाजीराव भोसले गुर्जर थे। इसलिए उन्हें राज सिंहासन के समय अर्थात तिलक के समय कुछ लोगों द्वारा संकोच का कारण बनाया गया था। यद्यपि गुर्जरों का जो प्राचीन इतिहास है वह बहुत ही स्वर्णिम है।यही केवल छत्रिय लोग हुआ करते थे अर्थात् क्षत्रियों में गुर्जर सबसे विशिष्ट क्षत्रिय हैं । शिवाजी भोंसले महाराज को माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा और उनके वंशजों को साफ-साफ गुर्जर शब्द दिया है । वह महाराष्ट्र में बैंसला के स्थान पर भोंसले बोले जाते हैं। लेकिन राजस्थान के लोग आज भी अपने आप को बैंसला ही बोलते हैं। कहीं कहीं पर बींसला भी बोला जाता है। यह केवल शब्दों के उच्चारण में अपभ्रंश हो जाने के कारण, स्थान परिवर्तन हो जाने कारण बोली, भाषा तथा उच्चारण का अंतर होने पर ऐसा होता है।
प्रस्तुत कर्ता
देवेंद्र सिंह आर्य एडवोकेट चेयरमैन उगता भारत समाचार पत्र।