आइंस्टीन ने मरने के पहले कहा कि जब मैंने विज्ञान की खोज शुरू की थी, तो मैं सोचता था कि आज नहीं कल, सब जान लिया जाएगा।
और आइंस्टीन शायद मनुष्य-जाति में पैदा हुए उन थोड़े से लोगों में से एक है, जिसने सर्वाधिक जाना है।
मरने के दो या तीन दिन पहले आइंस्टीन ने अपने एक मित्र को कहा कि जो भी मैंने जाना है, आज मैं कह सकता हूँ कि उससे सिर्फ मुझे मेरे अज्ञान का पता चलता है और कुछ भी पता नहीं चलता। और जो जानने को शेष रह गया है, वह इतना ज्यादा है कि जो हमने जान लिया है, उसकी तुलना भी नहीं की जा सकती। मरने के पहले आइंस्टीन ने कहा कि मैं एक रहस्यवादी की तरह मर रहा हूँ, एक वैज्ञानिक की तरह नहीं। मुझे ब्रह्मांड रोज-रोज ज्यादा मिस्टीरियस, ज्यादा रहस्यपूर्ण होता चला गया है। जितनी ही मैंने खोज की है, उतना ही मैंने पाया है कि खोज करने को और भी ज्यादा आयाम खुल गए हैं, और डाइमेन्शंस खुल गए हैं। जितने दरवाजे मैंने खोले, पाया कि और बड़े दरवाजों पर पहुंच गया हूँ। जितने रास्ते मैंने पकड़े, पाया कि और बड़े राजपथों पर मुझे पहुंचा दिया गया है। जितनी कुंजियां मैंने पाईं, उनसे जो ताले मैंने खोले, पाया कि और बड़े ताले आगे लटके हुए हैं।
एडिंग्टन ने अपने संस्मरणों में लिखा है कि जब मैंने सोचना शुरू किया था, तो मैं समझता था कि ब्रह्मांड एक वस्तु है। लेकिन अब मैं कह सकता हूँ कि मोर एण्ड मोर आर दि वर्ल्ड इज लुकिंग नाॅट लाइक ए थिंग बट लाइक ए थाॅट। लेकिन अब मैं कह सकता हूं कि ब्रह्मांड वस्तु की तरह मालूम नहीं पड़ता, बल्कि एक विचार की तरह मालूम पड़ता है।