गीता, कुरान और बाइबिल को साथ साथ पढ़ाने की जिद के मतलब
प्रो. रामेश्वर मिश्र पंकज
शिक्षा संस्थानों और मीडिया द्वारा फैलाये गये व्यापक अज्ञान का यह कारण है कि कुछ उत्साहित नवशिक्षित हिन्दू इस कल्पना से प्रसन्न हो रहे हैं कि उच्चतर माध्यमिक या माध्यमिक कक्षाओं में गीता, कुरान और बाईबिल का सार साथ-साथ पढ़ाया जायेगा। अपनी मूढ़ता में मग्न वे मान रहे हैं कि गीता तो अत्यन्त उदात्त शास्त्र है ही और समस्त मनुष्यों के लिये कल्याणकारी मार्ग और नियम बताती है। अतः उसे पढ़ कर छात्र-छात्रायें सहज ही गीता के प्रति श्रद्धा पाल लेंगे। जबकि कुरान और बाईबिल अपने-अपने अनुयायियों के अतिरिक्त शेष मनुष्यों के प्रति इतनी अधिक हिंसा और घृणा तथा द्वेष और दुर्भाव सिखाते हैं कि उनसे हर पढ़ने वाला जुगुप्सा और विरक्ति पाल लेगा।
बौद्धिक अन्धता का यह एक विशेष उदाहरण है। अपने चारों ओर जो नित्य घटित होता है, उसे न देखना और अपने ही मन की कल्पनाओं और उड़ानों में मगन रहना इसे ही कहते हैं। नवशिक्षित हिन्दू इसी मानसिक व्याधि के शिकार हैं।
उन्हें यह पता नहीं कि गीता, कुरान और बाईबिल में क्या लिखा है, यह छांट कर पढ़ाया जायेेगा और धोखा देते हुये पढ़ाया जायेगा। मौलवी और पादरी इसमें निष्णात हैं और आधुनिक हिन्दू विद्वान आत्मवंचना और मिथ्याकथन में निपुणता की पराकाष्ठा को छू रहे हैं। इसमें नेकनीयती और बदनीयती भर की बात नहीं है। सद्च्छिापूर्वक ही हिन्दू ऐसा करते रहे हैं।
इसमें एक महत्वपूर्ण उदाहरण संस्कृत, फारसी और अंग्रेजी के उद्भट विद्वान, परम तपस्वी और सात्विक सज्जन आचार्य विनोबा भावे का है। वे परम पवित्र जीवन जीने वाले महापुरूष थे। सबका भला चाहते थे और प्रेम, मैत्री तथा करूणा का प्रसार चाहते थे। उन्होंने कुरान धर्मसार और ख्रीस्त धर्मसार पुस्तकें लिखी हैं। दोनों में कुरान और बाईबिल के ऐसे अंश चुन-चुनकर एकत्र किये हैं और फिर उनकी ऐसी झूठी पंडिताऊ व्याख्या की है कि लगता है कि मानों जो वेदों में है, वही इन दोनों ग्रंथों में है।
मैं उन्हें व्यक्तिगत रूप से भी जानता था और कुछ दिनों तक भूदान आंदोलन में उनके साथ एक उदीयमान युवक के रूप में पदयात्रा भी की थी। उनकी नेकनीयती और सज्जनता निर्विवाद है। साधु चरित और तपस्वी थे। संस्कृत के विद्वान थे। परंतु जो कुछ उन्होंने कुरान और बाईबिल के चयनित अंशों की हिन्दी में व्याख्या करते हुये प्रस्तुत किया है, वह झूठ है, अनर्थकारी है और पाठक को वंचना तथा छल में डालने वाली है। क्योंकि मैंने भी इन तीनों को पढ़ा है और उनके विस्तृत ऐतिहासिक तथा सामाजिक एवं आध्यात्मिक संदर्भों का भी अध्येता हूँ। अतः मैं निश्चित रूप से जानता हूँ कि विनोबा जी ने जो उन दोनों किताबों के सार कहकर प्रस्तुत किया है, वह झूठ है और अनजाने ही यह उनसे बड़ा छल हो गया है। उनको पढ़कर हिन्दू बच्चे ही नहीं, बड़े बूढ़े भी केवल भ्रमित हुये हैं, हो रहे हैं और भ्रमित होते रहेंगे। अतः यह अनुचित कार्य है।
स्पष्ट है कि बच्चों के लिये इन तीनों पुस्तकों पर पाठ्यक्रम के लिये लिखने वाले लोग आचार्य विनोबा भावे से बड़े विद्वान नहीं होंगे। यह असंभव है कि उनसे बड़ा कोई विद्वान इस विषय पर पाठ्यक्रम के लिये लिखे। दूसरी ओर, अगर कुरान और बाईबिल में जो कुछ भी है, उसे अनावृ़त्त रूप में समझा कर लिखा गया, तो उन दोनों ही समुदायों के नेता और मुल्ला तथा पादरी भारत में भूचाल मचा देंगे।
यदि इन तीनों ही ग्रथों को महाविद्यालय में सम्पूर्ण भी पढ़ा दिया जाये, तो भी विश्वविद्यालय स्तर के छात्रों तथा अध्यापकों में भारत में इतनी परिपक्वता नहीं है कि वे मूल संदर्भाें और परम्पराओं को जाने। इसकी जगह वे उदात्त भारतीय अर्थों के साथ ही उन दोनों पुस्तकों को भी देखेंगे और भयंकर आत्मवंचना से ग्रस्त हो जायंेगे। कुरान के जितने भी हिन्दी अनुवाद सुलभ हैं, उन सबमें भयावह अवधारणाओं को उदात्त भारतीय पदावली में जानबूझकर प्रस्तुत किया गया है। जो शुद्ध छल, वंचना और धोखाधड़ी है। इसी प्रकार ईसाई पादरियों ने तो वंचना और छल में अद्भुत निपुणता अर्जित की है। आखिर ‘गॉड’ को ईश्वर या परमेश्वर, रिलीजन को धर्म, थियालॉजी को ब्रह्मविद्या आदि छलपूर्वक प्रचारित करने में भारत में उन्हें अद्भुत सफलता प्राप्त हुई ही है। इसीलिये भारत शासन के द्वारा सनातन धर्म (हिन्दू धर्म) को अल्पसंख्यकों के मजहब के बराबर संरक्षण देने की मांग ही एकमात्र करणीय मांग है। जिसके लिये न तो सबल हिन्दू सामने आते दिख रहे हैं और न ही संघ या भाजपा ने आजतक इसकी मांग भी की है या आश्वासन दिया है।
उसके स्थान पर गीता, कुरान और बाईबिल को साथ-साथ पढ़ाने की मांग हिन्दुओं के लिये आत्मवंचना और व्यापक अवधि में आत्महनन का कारण बनने वाली है।