वैदिक संपत्ति ; तृतीय खण्ड, अध्याय – मुसलमान और आर्यशास्त्र

गतांक से आगे…

जिसको इन बातों के जाने की न तो फुर्सत है न जरूरत है, उसे नहीं मालूम कि हमारी वास्तविक दशा क्या है, हमारे प्राचीन वैदिक धर्म क्या है और हमारा प्राचीन आर्य आदर्श क्या है ? अभी गत पृष्ठों में हमने दो जातियों के द्वारा शास्त्रविध्वंस का वर्णन किया और दिखलाया दिया है कि, किस प्रकार शास्त्रों में आसुरी बातों का प्रक्षेप किया गया है। इन दो जातियों के अतिरिक्त हिंदुओं की अन्य शाखाओं ने भी शास्त्रविध्वंस की हत्या से अपने को पाक नहीं रक्खा। ब्राह्मण, क्षत्री, वैश्य और शूद्र ने मनमाना साहित्य रचा है और पुराने साहित्य में मिश्रण किया है। सबके सामने देखते देखते 50 वर्ष के अंदर ही तुलसीकृत रामायण में इतना अधिक क्षेपक घुस गया है कि, असली ग्रंथ पहिले से दुगना हो गया है और सात कांड के 9,10 कांड हो गए हैं। 300 वर्षों में एक हिंदी पुस्तक का जब यह हाल हो, तो हजारों वर्ष की पुरानी संस्कृत की पुस्तकें जिनका सम्बन्ध धर्म, इतिहास और स्वास्थ्य आदि से है और जो आर्यजाति का जीवन है, कितनी दूषित की गई होंगी, कौन जान सकता है ? इन हिन्दू नामधारी शास्त्रविध्वंसकों के अतिरिक्त मुसलमानों का राज्य इस देश में बहुत दिन तक रहा है। उन्होंने भी इस देश के हिंदुओं में अत्याचारों के साथ इस्लाम धर्म के प्रचार का बहुत प्रयत्न किया है। उनका धर्मचार अत्याचार और जुल्म के साथ था। पर उनका जुल्म बहुत प्रचार नहीं कर सका। अलताक हुसेन हाली कहते हैं कि –

वो दीने हिजाजी का बेबाक बेड़ा, निशॉ जिसका अकसाय आलम में पहुंचा॥
न जैहूं में अटका न कुलजम् में झझका,
मुकाबिल हुआ कोई खतरा न जिसका॥

किये पै सिपर जिसने सातों समन्दर,
वो डूबा दहाने में गंगा के आकर॥

अर्थात् इस्लाम ने तलवार के जोर से सातों समुन्दरों को फतह कर लिया। पर वह इस्लाम का बेड़ा गंगा के निकास में आकर डूब गया। सच है, इस्लाम की तलवार ने जिस देश में प्रवेश किया उस देश को इसलाम करके ही छोड़ा। काबुल, ईरान, अरब, तुर्क पुर्तगाल, स्पेन, मिश्र, अफ्रीका, रूस और चीन तक जहां कहीं प्रचार हुआ , बस देश का देश इस्लाम में आ गया। किन्तु यह एक भारतवर्ष ही है जहां सैकड़ों वर्षो तक लगातार तलवार चली, पर सिवा थोड़ी सी नीच कौमों के भले आदमी अधिक मुसलमान नहीं हुए। जब जुल्म से काम न चला, तो वही पुराना सिद्धांत काम में लाया गया। अर्थात् कुछ बातें इधर-उधर की लेकर नये-नये रूप में मुसलमानों ने हिंदू साहित्य को गंदा करना शुरू किया और खुद उनके गुरु बनकर उनमें अपने विचार स्थापित करने का प्रयत्न करने लगे। यहां हम वही सब बातें सारांश रूप से दिखलाने का यत्न करते हैं। हम यहां नहीं लिखना चाहते कि, मुसलमान जालिमों ने अपने शासनकाल में इस देश के निवासियों के साथ क्या-क्या व्यवहार किया। हम तो यहां केवल यह दिखलाना चाहते हैं कि, इनके प्रभाव से यहां का संस्कृत साहित्य किस प्रकार नष्ट हुआ और वैदिक धर्म में कितना धक्का पहुंचा। सभी जानते हैं कि संस्कृत के लाखों ग्रंथ वर्षों तक मुसलमानों के हम्मामों में जलते रहे और उदन्तापुरी आदि के 9,9 मंजिल ऊंचे पुस्तकालय बात की बात में भस्म कर दिये गये हैं, पर यह समग्र वृत्तान्त लिखकर हम ग्रंथ को बढ़ाना नहीं चाहते। क्योंकि पाठकों से कुछ छुपा नहीं है और न सब कागजपत्र और इतिहास कहीं चला ही गया है। इसलिए हम यहां केवल यही दिखाना चाहते हैं कि, मुसलमान जाति ने जब अपने कठोर शासन शासन से भी हिंदू धर्म का नाश न कर पाया, तो उसने अपने सिद्धांत संस्कृत भाषा में लिखना शुरू किया और अपना एक दल अपने से अलग करके हिंदुओं का गुरु बनने के लिए कायम किया। एक तरफ तो मुसलमान अपने प्रचार के लिए इस तरह साहित्य नष्ट करने लगे और दूसरी तरफ हिंदुओं ने मुसलमानी अत्याचार से पीड़ित होकर उनसे बचने के लिए खुद भी नवीन – नवीन रचना करके शास्त्रों में मिश्रण करना शुरू कर दिया । इस तरह से इन दो तीन मार्गों के द्वारा हिन्दुओं का साहित्य बिगड़ने लगा। यहां हम पहिले नवीन रचना के प्रमाण उपस्थित करते हैं। नवीन रचना में अल्लोपनिषद् विशेष उल्लेखनीय है। क्योंकि यह सभी जानते हैं कि, अल्लो पनिषद् मुसलमानों की रचना है।
क्रमशः

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