‘तलाश’ ( कहानी संग्रह) की संपादक डॉ अनीता श्रीवास्तव और सह संपादक श्रीमती सपना शर्मा हैं। इस कहानी संग्रह में विभिन्न विद्वान लेखक – लेखिकाओं की चयनित कहानियों को संकलित कर प्रस्तुत किया गया है। कुल 25 कहानियां इस पुस्तक में संकलित की गई हैं।
जब भी कोई साहित्यकार कोई साहित्य सृजना करता है तो उसके समक्ष समाज के गिरते मूल्यों को सँवारने व तार – तार होते सामाजिक और पारिवारिक संबंधों को फिर से सींचने का गुरुत्तर दायित्व होता है। वास्तव में वह साहित्य साहित्य नहीं होता जो इन दोनों महत्वपूर्ण बिंदुओं पर पाठक को कुछ सोचने के लिए मजबूर ना कर सके। कहानी के माध्यम से जब कोई कहानीकार अपनी बात को पाठक के हृदय में रोपने का कार्य करता है तो समझो वह एक नई फसल उगाने की तैयारी कर रहा होता है। जितनी सुंदरता से वह नई फसल का रोपण अपने पाठक के हृदय में कर देता है उतने ही सुंदर परिणाम आने की भी अपेक्षा की जा सकती है।
इस कहानी संग्रह में विभिन्न कहानियों के माध्यम से विदुषी संपादिका डॉक्टर अनीता श्रीवास्तव और सह संपादिका सपना शर्मा ने समाज को नया संदेश देने का सराहनीय प्रयास किया है।
उनका संकलन सराहनीय बन पड़ा है। पहली कहानी ‘रक्षाकवच’ की लेखिका डॉक्टर नीरू खींचा हैं। वह कहानी का अंत करते हुए लिखती हैं :- ‘मैं जब सर पर पल्लू लेकर उनके चरण छूने झुकी तो उनके रोम-रोम की कृतज्ञता अनगिनत आशीर्वाद बनकर मुझे एक अद्भुत शांति और तृप्ति से सराबोर कर गई। मुझे लगा कि उनका आशीष मेरे चारों ओर एक अदृश्य ‘रक्षाकवच’ बन कर छा गया है। मेरी आंखें छलक आईं। काश ! मेरा बेटा इस पल की अमूल्य दिव्यता को समझ पाता, तब शायद उसे यह पता चलता कि उसके बैंक की पासबुक की जमा राशि में अनेक शून्य जुड़ते चले जाएंगे पर जीवन में जो रिक्तता शेष रह जाएगी उसे भरने वाला कोई वात्सल्य भरा आशीर्वाद उनका ‘रक्षाकवच’ कभी नहीं बन पाएगा।’
वास्तव में इस कहानी संग्रह के माध्यम से डॉ अनिता श्रीवास्तव जी और स्वप्ना शर्मा जी के द्वारा जिन लेखकों को उनकी उत्कृष्ट कहानी के लिए सम्मानित किया गया है उनका यह प्रयास वंदनीय और अभिनंदनीय है । एक स्थान पर लाकर, एक मंच पर सबको सुशोभित करना और सबकी सुगंध से दुनिया को परिचित कराना यह अनोखी प्रतिभा केवल डॉ अनीता श्रीवास्तव जी के भीतर है , जो उन्होंने इस पुस्तक के माध्यम से प्रकट की है।
इससे नये लेखक और लेखिकाओं को एक सुनहरा अवसर प्राप्त हुआ है। अनेक लोगों को उनके साहित्य लेखन से परिचित होने का अवसर प्राप्त हुआ है।
पुस्तक में क्योंकि विभिन्न लेखक लेखिकाओं के परिश्रम से उदभूत कहानियों को स्थान दिया गया है, इसलिए स्वाभाविक है कि विषय में विविधता आ गई है। यद्यपि यह विविधता चुभने वाली नहीं है ,बल्कि कई स्थलों पर मन को प्रभावित करने वाली है, क्योंकि विविधता में विविध संदेश देने की क्षमता होती है। जिन्हें विभिन्न प्रकार से ग्रहण किया जा सकता है। प्रत्येक कहानी में कथावस्तु को रोचक ढंग से प्रस्तुत करने की संबंधित लेखक की प्रतिभा स्पष्ट दिखाई देती है।
कहानी संग्रह की अंतिम कहानी ‘तलाश’ डॉ अनिता श्रीवास्तव जी द्वारा स्वयं लिखी गई है। इसमें अंत में वह कहती हैं ‘हमारी आशी कितनी बड़ी बड़ी बातें कर रही थी ? सहसा मुझे वह छोटी सी आशी याद आने लगी जो कार्तिक की गोद में बैठकर खिलखिला कर कहती थी :मैं पापा की परी हूं’। मेरी आंखों में से टप टप आंसू बह रहे थे। मन से यह मलाल कहीं दूर चला गया था कि मेरे बेटा नहीं है। अपने आंसुओं को मैं रोकना नहीं चाह रही थी। इन्हें मैं जी भर कर बहने बहा देना चाहती थी। क्योंकि यह खुशी के आंसू थे, आज मेरी तलाश पूरी जो हो गई थी।’
पुस्तक कुल 175 पेजों में लिखी गई है। इसका मूल्य ₹300 है। पुस्तक के प्रकाशक साहित्त्यागार, धामाणी मार्केट की गली, चौड़ा रास्ता, जयपुर हैं। पुस्तक प्राप्ति के लिए फोन नंबर 0141 – 2310785 व 4022382 पर संपर्क किया जा सकता है।
डॉ राकेश कुमार आर्य
संपादक : उगता भारत
मुख्य संपादक, उगता भारत