गर्व से कहो हम वैदिक धर्मी आर्य / हिंदू हैं
संसार में भारत के ऋषियों का ज्ञान अनूठा और बेजोड़ है। जब सारा संसार ज्ञान – विज्ञान के क्षेत्र में क, ख, ग नहीं जानता था, तब हमारे ऋषियों का ज्ञान-विज्ञान अपनी ऊंचाइयों को छू रहा था। वैदिक सृष्टि संवत के अवसर पर यदि हम अपने ऋषियों के कालगणना संबंधी ज्ञान पर विचार करें तो पता चलता है कि उन्होंने कालगणना को परमाणु से आरंभ किया, क्योंकि परमाणु सबसे छोटा तत्व माना जाता है। आज के पश्चिमी जगत के वैज्ञानिक काल को सेकंड से लेकर चलते हैं, जबकि हमारे ज्ञानी- विज्ञानी ऋषि लोग सेकंड के भी खंड करना जानते थे।
‘वायु पुराण’ में दिए गए विवरण के अनुसार दो परमाणुओं के मिलने से एक अणु का निर्माण होता है ।तीन अणुओं के मिलने से एक त्रसरेणु बनता है। तीन त्रसरेणुओं से एक त्रुटि, 100 त्रुटियों से एक वेध, तीन वेध से एक लव तथा तीन लव से एक निमेष (क्षण) का निर्माण होता है।
एक क्षण में लगभग पौने 3 सेकंड के लगभग होते हैं। तीन निमेष से एक काष्ठा ( एक काष्ठा 8 सेकंड के बराबर होती है), 15 काष्ठा से एक लघु (15 काष्ठा या 1 लघु में 2 मिनट होते हैं), 15 लघु से एक नाडिका (15 लघु या एक नाडिका से आधा घंटा का निर्माण होता है) दो नाडिका से एक मुहूर्त अर्थात एक घण्टा , छह नाडिका से एक प्रहर अर्थात 3 घण्टे तथा आठ प्रहर से एक दिन और एक रात बनते हैं।
भारतवर्ष में आजादी के बाद तक भी पिछली पीढ़ियां घड़ी, मुहूर्त, पहर, पल, क्षण आदि के आधार पर काल का उच्चारण करती रही हैं। आज भी सुदूरवर्ती देहात में लोग इसी परंपरा को अपनाए हुए हैं। इसका अभिप्राय है कि भारतवर्ष देहात में बसता ही नहीं है, बल्कि बचता भी है अर्थात उसी से सुरक्षित रह सका है। जबकि शहरों ने भारत की आत्मा को निगल लिया है। यह शहर ही हैं जहां पर हिंदू नव वर्ष की उपेक्षा करके लोग अंग्रेजों के नए वर्ष पर एक दूसरे को शुभकामनाओं का आदान प्रदान करते हैं।
हमें ध्यान रखना चाहिए कि हमारे ऋषियों के अनुसार दिन और रात्रि की गणना साठ घड़ी में की जाती है। एक घंटे को ढाई घड़ी के बराबर कहा जा सकता है। दो नाडिका से एक घंटा बनता है। 6 नाडिका से एक पहर के बनने का अर्थ है कि 6 नाडिका में 3 घंटे होते हैं । तीन तीन घंटों के आठ पहर होते हैं, जिनसे दिन और रात का निर्माण होता है। 7 दिनों से 1 सप्ताह का निर्माण होता है, जबकि दो सप्ताहों को मिलाकर एक पक्ष और दो पक्षों को मिलाकर 1 महीने का निर्माण होता है। प्रत्येक महीने में दो पक्ष होते हैं । जिन्हें शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष कहा जाता है।
हम देखते हैं कि प्रत्येक सप्ताह में मौसम को अलग-अलग ढंग से पढ़ा जा सकता है। जब हम उत्तरायण काल में बढ़ते सूर्य को देखते हैं तो प्रत्येक सप्ताह धीरे-धीरे सूर्य गरमाता जाता है और जब हम दक्षिणायन होते सूर्य को देखते हैं तो प्रत्येक सप्ताह दिन उमस भरे और फिर धीरे-धीरे ठंडे होते चले जाते हैं। यद्यपि भारत में तीन ऋतुएं ही प्रमुख मानी जाती हैं परंतु बहुत सूक्ष्मता से देखने पर पता चलता है कि 12 महीनों का मौसम भी अलग अलग होकर अलग-अलग मौसम , ऋतु आदि का निर्धारण करते हैं। इस प्रकार सप्ताह और महीनों के नामकरण के पीछे भी हमारे ऋषि लोगों का बौद्धिक चिंतन स्पष्ट दिखाई देता है।
1 सप्ताह में मौसम में जहां कुछ सूक्ष्म परिवर्तन आते हैं वहीं 1 महीने में स्पष्ट पढ़ने व समझने लायक परिवर्तन आ जाते हैं।
वैदिक काल में वर्ष के 12 महीनों के नाम हमारे वैज्ञानिक ऋषि लोगों ने नक्षत्रों के आधार पर रखे थे। जैसे चैत्र, वैशाख, ज्येष्ठ, आषाढ़, श्रावण, भाद्रपद, आश्विन, कार्तिक, मार्गशीर्ष, पौष, माघ और फाल्गुन। यदि हम सप्ताह के 7 दिनों के नामकरण पर विचार करें तो इनका नामकरण भी हमारे ऋषि पूर्वजों ने – रवि, सोम (चंद्रमा), मंगल, बुध, गुरु, शुक्र और शनि का नाम ग्रहों के आधार पर किया।
यदि हम पश्चिम के लोगों की धारणाओं पर विचार करें तो वे दिनों , महीनों के नामकरण को लेकर बहुत लंबे समय तक उलझे रहे हैं। यहां तक कि उनका ग्रेगोरियन कैलेंडर भी पूर्ण वैज्ञानिक रीति पर आधारित नहीं है। उनके ज्ञान – विज्ञान की ऊंचाई या उनकी मानसिक ऊहापोह को देखकर लगता है कि वे आज भी ज्ञान – विज्ञान के क्षेत्र में बहुत कुछ सीख रहे हैं और अभी उन्हें बहुत कुछ सीखना है। जबकि भारत के महान ऋषियों ने सृष्टि के प्रारंभ में ही बहुत कुछ सीख लिया था।
अब जबकि हम सृष्टि संवत एक अरब 96 करोड 8 लाख53 हजार123 की हार्दिक शुभकामनाओं का परस्पर आदान-प्रदान कर रहे हैं और इस समय अपने ऋषियों के ज्योतिष संबंधी ज्ञान विज्ञान को समझ रहे हैं तो सचमुच कहने को मन करता है कि गर्व से कहो – हम वैदिक आर्य हिंदू हैं। हमें अपने ऋषियों के ज्ञान विज्ञान पर गर्व है और स्वयं को उनका उत्तराधिकारी मानकर हमें गौरव की अनुभूति होती है। जितना प्राचीन ज्ञान- विज्ञान हमारे पास में है उतना संसार की किसी भी जाति के पास नहीं है। इसीलिए हम आर्य अर्थात श्रेष्ठ हैं। हमें समझ लेना चाहिए और बिना किसी पूर्वाग्रह के समझ लेना चाहिए कि हम हिंदू से पहले आर्य हैं। क्योंकि हम श्रेष्ठ हैं, श्रेष्ठ रहे हैं और श्रेष्ठ बनकर विश्वगुरु के रूप में अपने देश को स्थापित करने के लिए संकल्पित हैं।
डॉ राकेश कुमार आर्य
संपादक : उगता भारत