26 जून को देश के नये पी.एम. नरेन्द्र मोदी को सत्ता संभाले तीस दिन पूर्ण हो गये। परंपरा के अनुसार उनके पहले तीस दिन की लोगों ने अपने अपने ढंग से समीक्षा या पड़ताल की है। श्री मोदी का खुद का कहना है कि 67 वर्षों की राजनीति से पालित देश के लिए किसी नये शासक को दिये गये अवसर में से तीस दिन कुछ नही होते। इतनी छोटी सी अवधि में यह स्पष्टनही हो सकता कि हमारी नीतियों के परिणाम क्या होंगे और वो कब से अपने परिणाम देने शुरू करेंगी? श्री मोदी का कथन है कि तीस दिन में उन्होंने जो भी निर्णय लिये हैं, वो राष्ट्रहित में लिये हैं। बात साफ है कि मोदी अपने सपनों को जमीनी सच में बदलने के लिए अभी देश से और समय लेना चाहते हैं।
हमारा मानना है कि श्री मोदी को अभी समय मिलना भी चाहिए। हमें परिणामों को लेकर व्यग्रता नही दिखानी चाहिए। धैर्य से काम लेना होगा। देखने वाली बात ये है कि मोदी भीष्म द्वारा निर्धारित किये गये राजोचित गुणों में से कितनों पर खरे उतरते हैं? भीष्म के अनुसार राजा को बुद्घिमान, त्यागी…आदि होना चाहिए। यदि मोदी पर हम इन गुणों को कसकर देखें तो उन्होंने चुनावों के दौरान भाजपा का ही नही बल्कि देश की आत्मा का प्रतिनिधित्व किया, और जब सबकी जुबान फिसल रही थी, उन्होंने तब भी अपनी वाणी का संयम बनाकर रखा। इससे हमें उनकी बुद्घिमत्ता का परिचय मिला। उन्होंने अपने मुख्यमंत्रित्व काल में कुल 21 लाख रूपया कमाए और उसे भी वह अपने अधीनस्थ कर्मियों के लिए उनकी आवश्यकताओं के लिए दे आए। दिल्ली आए तो बिना सामान आये, कुछ साथ नही लाए। यह सुखद अहसास था देश की जनता के लिए कि उसे एक परम त्यागी राजा प्रधानमंत्री के रूप में मिल रहा है।
मोदी ने पड़ोसी देश पाकिस्तान को पहले ‘कूटनीतिक वार’ में ही घेर लिया। उन्होंने पाक के अपने समकक्ष नवाज शरीफ को अपने शपथ ग्रहण समारोह में आमंत्रित किया और हाथ मिलाते हुए शरीफ को पहली बार में ही ये अहसास हो गया कि अब भारत में अटल जी का नही बल्कि मोदी का राज चालू होने वाला है। मोदी ने शत्रु के छिद्रों को समझा और उसे उसी के दोषों में फंसाकर बता दिया कि ‘बमों के शोर में बातचीत नही हो पाती है।’ मोदी जानने में तत्पर रहते हैं। उन्होंने नई पीढ़ी को अपना दोस्त बना लिया, केवल इसलिए कि वह उसके साथ ‘कंप्यूटर बॉय’ बनकर उतर पड़े।
इसी प्रकार मोदी ने अपने कार्यों को करने में जो तत्परता दिखाई है उससे भी उनकी छवि में चार चांद ही लगे हैं। उन्होंने अपनी संयमित वाणी से बार-बार देश की जनता को यह अहसास कराया है कि वे क्रोध विजयी है। अपने व्यक्तित्व की भाषा से उन्होंने अपने को सुंदर बनाकर प्रस्तुत किया है। वह उद्योगी और कर्मठ हैं। इसका सबूत उन्होंने लिए बीस घंटे काम करके दिया है। पहली बार देश की जनता देख रही है कि मंत्रियों के पास फीता काटने के लिए भी समय नही है। अब फाइलें मंत्री जी का इंतजार नही कर रही हंै, बल्कि मंत्रीजी ही फाइलों का इंतजार करते दीख रहे हैं। वह कोमल स्वभाव हंै, लेकिन मित्रों के लिए, शत्रु के लिए वह फौलाद हंै। इसीलिए जहां भूटान जैसे छोटे से मित्र राष्ट्र ने उन्हें अपने यहां बुलाने में सफलता प्राप्त कर ली, वहीं चीन जैसा शत्रुभाव रखने वाला देश उन्हें अभी तक समझ नही पाया है। पाक ने हाथ मिलाकर भी समझ लिया कि ‘फूल (कमल) वाला’ फूल नही है-बल्कि कुछ और ही है।
मोदी आत्मप्रशंसा से दूर हैं। चुनाव जीतते ही उन्होंने बड़ी संयत भाषा से जीत को जनता का पुरस्कार और बड़ों का (आडवाणी जैसों का) आशीर्वाद कहकर अहंकारशून्यता से उसे जनता को लौटा दिया। अपनी पीठ ही नही थपथपाई। उन्होंने समझ लिया कि परीक्षा की घड़ी आ गयी है, इसलिए उस छात्र की तरह अपनी परीक्षा की तैयारी में जुट गये हैं, जो घर आते ही अपने अध्ययन कक्ष में चला जाता है, और जिसे ये कुछ पता नही होता कि घर में क्या बना है या मम्मी क्या पका रही हैं? ऐसी अच्छी मानसिकता किसी भी पी.एम. की अब से पूर्व नही देखी गयी। चुनाव के समय जो मोदी मीडिया के बीच दीखते थे अब वही मोदी मीडिया से कोसों दूर दीख रहे हैं। वह नही चाहते कि कोई भी व्यक्ति उनके अध्ययन कक्ष (राष्ट्र निर्माण की प्रयोगशाला) में घुसकर उनका ध्यान भंग करे। किसी ने देखा है नितिन गडकरी को जिनकी आजकल आंखें सूजी हुई रहती हैं। एक निजी टीवी चैनल पर वह ये बात सहजता से स्वीकार कर रहे थे कि ‘मोदीभय’ का परिणाम है ये आंखों का सूजना। कैसे? बस, इसलिए कि चौबीस घंटों में से 18 घंटे अनिवार्य काम करना पड़ता है।
मोदी के तीस दिन की उपलब्धियों में इन चीजों को टटोलकर देखने की आवश्यकता है। उनके द्वारा लिए गये निर्णयों से तो परिणाम देर मेें समझ में आएंगे, परंतु उनकी कार्यशैली को समझकर जल्दी समझ सकते हैं कि हमारी दिशा क्या है और भविष्य में हमारी क्या दशा होने वाली है? उन्हें देखकर ‘लैपटॉप और कन्याधन’ बांटने में खजाने को खैरात की तरह बांटकर खत्म करने वालों की समझ में भी आ गया है कि खजाना खैरात नही होता, बल्कि विकास कार्यों पर खर्च करने वाली जनता की दी गयी धरोहर होती है, जिसे यूं ही खर्च नही किया जा सकता। मोदी ने इस प्रकार विनाश में लगेे लोगों को भी तीस दिन में विकास का पाठ पढ़ा दिया है। यह क्या कम है? इसी एक उदाहरण से स्पष्टहो जाना चाहिए कि देश की राजनीति अब करवट ले रही है, और एक व्यक्ति की अच्छी सोच के कारण देश परिवर्तन की ओर बढ़ रहा है। फिर भी मंजिल अभी दूर है, राह भी कठिन है। पर हम एक दिन कामयाब अवश्य होंगे, इतनी उम्मीदों से यह देश अब जरूर भर गया है। मोदी के लिए यह खबर निश्चित ही ‘फीलगुड’ वाली होगी। पर मोदी ‘फीलगुड’ को ज्यादा ना बढ़ाएं, क्योंकि यही वह बीमारी है, जिसने अटल जी की कुर्सी छीन ली थी।