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इंजीनियर श्याम सुन्दर पोद्दार, महामन्त्री, वीर सावरकर फ़ाउंडेशन       ———————————————

१९४५ के केंद्रीय धारा सभा के चुनाव में कांग्रेस के बहुमत पाने के बाद १९४६ की 2 सितंबर को नेहरू ने मुस्लिम लीग के सहयोग से भारत के प्रधानमंत्री की शपथ ली। फिर १९४७ में जिन्ना के साथ भारत के विभाजन के काग़ज़ातों पर हस्ताक्षर कर भारत का विभाजन किया व १५ अगस्त १९४७ को विभाजित हिंदुस्तान के प्रधानमंत्री के रूप में यह शपथ ली “I shall remain loyal to King George and I shall serve the king and his heirs”.
नेहरू के इन शब्दों से ही स्पष्ट हो जाता है कि वह ब्रिटिश ताज के प्रति अपनी निष्ठा को भारत का प्रधानमंत्री बनने के बाद भी बदल नहीं पाए थे । इसमें यह भी अनुमान लगाया जा सकता है कि जिस समय तथाकथित रूप से कांग्रेस देश की स्वतंत्रता की लड़ाई लड़ रही थी तो उस समय कांग्रेस के नेताओं की ब्रिटिश राज व ताज के प्रति कैसी मानसिकता रही होगी ?
  वाइसराय माउंट बेटन ने अपनी पत्नी के मित्र नेहरू को प्रधानमंत्री पद की शपथ दिलवाई तथा माउंट बेटन बहुत समय तक वायसराय बने रहे। जब तक लॉर्ड माउंटबेटन भारत में वायसराय के रूप में रहे तब तक वायसराय भवन ( जिसे आजकल राष्ट्रपति भवन कहा जाता है) से यूनियन जैक उतारा नही गया। उस पर वर्षों तक   उड़ता रहा।


  १६ अगस्त १९४७ नेहरू ने लालक़िले से घोषणा की, “महात्मा गाँधी के चमत्कृत नेतृत्व के चलते हमने स्वाधीनता प्राप्त की”इसका अर्थ हुआ कि “अहिंसा का सिद्धांत अंग्रेजों को समझ आने के कारण अंग्रेजों का हृदय परिवर्तन हो गया अथवा साम्राज्यवाद अन्याय है,  इसीलिए स्वेच्छा से अंग्रेजों ने  हिंदुस्तान छोड़ा” जबकि सत्य नेहरू की घोषणा के विपरीत है।              ३ जून १९४७ को भारत को स्वतंत्र करने के लिये India Independence Act प्रधानमंत्री लॉर्ड एटली ने ब्रिटेन की संसद में रखा तो कहा कि द्वितीय महायुद्ध की त्रासदी के बाद अब ब्रिटिश शासन में  भारत की नौसेना भी विद्रोह के पथ पर चल रही है तथा थल सेना भी आज़ाद हिन्द सेना जैसा मार्ग अपना सकती है। अतः उचित होगा कि भारत को स्वतंत्र कर दिया जाये, परन्तु मुस्लिमों के लिये अलग देश पाकिस्तान की स्वीकृति दी जाये तथा राजे रजवाड़ों को अधिकार दिया जाये कि वे स्वतंत्र रहें अथवा भारत या पाकिस्तान किसी एक क्षेत्र में मिल जाएं।
ब्रिटिश संसद  में विपक्ष के नेता चर्चिल ने भारत से ब्रिटिश सत्ता के समाप्त होने पर दुखी अवस्था में प्रश्न किया कि भारत को ब्रिटेन के लिये बचाया नही जा सकता। चर्चिल के इस प्रश्न का निरुपाय होने से उत्तर प्रधान मन्त्री एटली ने इस प्रकार दिया,”Britain is transferring power due to the fact that (1) The Indian Mercenary Army is no longer loyal to Britai and (2)Britain cannot afford to have a large British Army to hold down India.”                    भारत में एक तरफ़ गाँधी के नेतृत्व में कांग्रेस का आंदोलन चल रहा था, मुस्लिम लीग का आंदोलन चल रहा था तो अतीत के क्रांतिकारी हिन्दु महासभा के झण्डे तले भारत को स्वाधीन करने का सशस्त्र क्रांति का काम करने लगे। अतीत के  क्रांतिकारी  वीर सावरकर हिन्दु महासभा के अध्यक्ष बने व क्रांतिकारी रासबिहारी बोस जापान हिन्दु महासभा के अध्यक्ष बने।
    जब सुभाष चंद्र बोस को कांग्रेस अध्यक्ष पद से पदत्याग करने को गाँधी ने बाध्य किया और फिर कांग्रेस से भी निकाल दिया तब वीर सावरकर के सैनिकीकरण कार्यक्रम से सुभाष बाबू प्रभावित होकर उनसे मिलने बम्बई सावरकर सदन पहुँचे। वहीं भविष्य में भारत को किस प्रकार स्वतंत्र करना है ? –  उससे प्रभावित होकर सुभाष चंद्र बोस भारत से अंग्रेजों की आँख में धूल झोंक कर निकलने में सफल हुए। उन्होंने जर्मनी होते हुए जापान जाकर रासबिहारी बोस से मिलकर भारतीय राष्ट्रीय सेना की कमान सम्भाली। स्वतंत्रता की सशस्त्र लड़ाई आरम्भ की।               १अगस्त १९४२ के ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ के समय गाँधी ने भारत सरकार के वायसराय को एक पत्र लिख कर कहा था कि कांग्रेस चाहती है कि ब्रिटिश सेना तो भारत में रहे परंतु राजनैतिक शासन की स्वायत्तशासी व्यवस्था चलाने का अधिकार कांग्रेस को दिया जाय।
   इसके विपरीत १२ अगस्त १९४२ को अखिल भारत हिन्दु महासभा के नेतृत्व द्वारा वायसराय को पत्र लिखा गया कि हमारी माँग है कि ब्रिटिश सेना व ब्रिटिश शासक दोनो भारत छोड़ दें। जब आज़ाद हिन्द सेना के सैनिकों का लालक़िले में परीक्षण हुआ व इसके सेनापतियों को आजीवन कारावास का दण्ड दिया गया तब हमारी नौसेना में १८ फ़रवरी १९४६ बिद्रोह आरम्भ हो गया।  वायु सेना के सैनिक भी हड़ताल पर चले जाने से यह विद्रोह वायु सेना में  भी फैल गया। थल सेना में फैलने के पहले ही वायसराय ने घोषणा कर दी कि भारतीय राष्ट्रीय सेना के सेनापतियों की सजा माफ़ होगी व सैनिकों का ट्रायल बंद होगा तथा भारत को आज़ादी दी जाएगी।
    जब एटली १९५६ में भारत भ्रमण में आये तो एक प्रश्न के उत्तर में उन्होंने स्पष्ट किया कि सुभाष चंद्र बोस व उनकी भारतीय राष्ट्रीय सेना ने ब्रिटिश सैनिकों की वफ़ादारी ब्रिटिश ताज के प्रति समाप्त कर दी, इसलिए हमें भारत को स्वतंत्रता देनी पड़ी। देश के स्वाधीनता मिलने की सच्चाई एटली का ब्रिटिश संसद से लेकर भारत में वक्तव्य है न कि नेहरू का झूठ।                                       वैसे भी गाँधी देश को जब स्वतंत्र कराने निकले थे तो कहा था कि हिन्दु मुस्लिमों की एकता के बिना आज़ादी मिलना असम्भव है और वे हिन्दु मुस्लिम एकता स्थापित करने लगे। गाँधी हिन्दु मुस्लिम एकता नहीं बना पाये। ना ही वे पाकिस्तान को बनने से रोक पाए,  ना ही देश को स्वाधीन करा पाये । कांग्रेस के हाथ में सत्ता का हस्तांतरण १९४५ के केंद्रीय धारा सभा के चुनाव में विजय के कारण हुआ ना कि देश को स्वतंत्र कराने के कारण।                                       हमारी प्रधान मन्त्री मोदी जी से प्रार्थना है अब से नेहरू का गढ़ा झूठा इतिहास पढ़ाना बन्द हो और सत्य इतिहास पढ़ाया जाय। जब तक देश की वर्तमान पीढ़ी को स्वाधीनता आंदोलन के सच से परिचित नहीं कराया जाएगा तब तक नई नई भ्रांतियां युवा पीढ़ी को घेरती रहेंगी। देश के बलिदानियों के बलिदान, त्याग, समर्पण और देशभक्ति का वीरता पूर्ण इतिहास आज की पीढ़ी को पढ़ने के लिए दिया जाना समय की आवश्यकता है। जिसके लिए देश के सभी राष्ट्रवादी प्रधानमंत्री मोदी जी से अपील करते हैं कि वे इस दिशा में यथाशीघ्र ठोस निर्णय लेकर देश की युवा पीढ़ी का उचित मार्गदर्शन करें।

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