अवधेश कुमार
भारतीय राजनीति, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और बीजेपी के बारे में सामान्य जानकारी रखने वाले भी मानेंगे कि योगी आदित्यनाथ एक मजबूत राष्ट्रीय नेता के रूप में स्थापित हो गए हैं। पांच राज्यों में हुए हालिया चुनावों में पंजाब में आम आदमी पार्टी ने जबरदस्त विजय हासिल की है, लेकिन राष्ट्रीय स्तर पर सबसे ज्यादा किसी एक व्यक्ति की चर्चा हो रही है तो वह योगी आदित्यनाथ हैं। हालांकि स्वयं को राजनीति का महापंडित मानने वालों की बड़ी संख्या है, जो पिछले दो वर्षों से अभियान चला रहे थे कि आदित्यनाथ को केंद्रीय नेतृत्व यानी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह कभी भी मुख्यमंत्री पद से हटा सकते हैं। अभी भी ऐसे लोग हैं, जिनके मन में यह भाव बैठा हुआ है कि मोदी और शाह से योगी का रिश्ता ठीक नहीं है। ये लोग यह स्थापित करना चाहते हैं कि आदित्यनाथ का कद बड़ा होने से बीजेपी नेतृत्व के बीच द्वंद्व बढ़ जाएगा। इस तरह की काल्पनिक स्थापना पर कुछ भी कहना समय जाया करना होगा।
राष्ट्रव्यापी आकर्षण
इसमें दो राय नहीं कि यूपी में अनेक विधायकों के विरुद्ध व्यापक असंतोष के बावजूद लोगों ने बीजेपी के पक्ष में मतदान किया तो उसमें नरेंद्र मोदी के साथ योगी के व्यक्तित्व की भी भूमिका है। राज्य भर में आप कहीं भी जाते तो यह स्वर सुनाई पड़ता कि हम मोदी और योगी के नाम पर वोट दे रहे हैं। पुलिस और प्रशासन के व्यवहार को लेकर नाराजगी और विधायकों के विरुद्ध गुस्सा होते हुए भी बहुमत की चाहत यह हो कि योगी ही दोबारा मुख्यमंत्री बनें तो इसे सामान्य नहीं कहा जा सकता। खास बात यह कि योगी के मामले में यह चाहत राज्य तक सीमित नहीं है। उनके प्रति आकर्षण का स्वरूप राष्ट्रव्यापी है। यूपी चुनाव में अलग-अलग राज्यों से ऐसे लोग भी काम करने आ गए थे, जिनका बीजेपी और संघ से सीधा लेना-देना नहीं था। वे यह जानकर आए थे कि सारी विरोधी शक्तियां मोदी-योगी को हराने में लगी हैं। चुनाव प्रबंधन की बीजेपी मशीनरी उनको न पूछ रही थी, न महत्व दे रही थी। इससे उनमें गुस्सा भी पैदा भी हो रहा था। फिर भी वे काम से नहीं हटे। क्यों? इसी क्यों में योगी आदित्यनाथ की वर्तमान स्थिति, बीजेपी और संघ के नेतृत्व के साथ उनके रिश्ते, उसमें उनका स्थान और भावी राजनीति में उनकी भूमिका से जुड़े तमाम सवालों के जवाब निहित हैं।
योगी आदित्यनाथ के शपथ ग्रहण में लगेगा वीवीआईपी मेहमानों का मेला…जानिए कौन-कौन रहेंगे मौजूद
पिछले कुछ वर्षों में हिंदुत्व विचारधारा के प्रति जिस ढंग की प्रखरता और मुखरता देश-विदेश में देखी गई है, योगी इस समय उसके बड़े प्रतीक बन गए हैं। नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री होने के कारण जो कुछ नहीं बोल सकते, उसे योगी खुल कर बोलते हैं। भगवा वस्त्रधारी एक संन्यासी इस समय हर दृष्टि से बीजेपी और संघ से सीधा लेना-देना नहीं था। वे यह जानकर आए थे कि सारी विरोधी शक्तियां मोदी-योगी को हराने में लगी हैं। चुनाव प्रबंधन की बीजेपी मशीनरी उनको न पूछ रही थी, न महत्व दे रही थी। इससे उनमें गुस्सा भी पैदा भी हो रहा था। फिर भी वे काम से नहीं हटे। क्यों? इसी क्यों में योगी आदित्यनाथ की वर्तमान स्थिति, बीजेपी और संघ के नेतृत्व के साथ उनके रिश्ते, उसमें उनका स्थान और भावी राजनीति में उनकी भूमिका से जुड़े तमाम सवालों के जवाब निहित हैं।
योगी आदित्यनाथ के शपथ ग्रहण में लगेगा वीवीआईपी मेहमानों का मेला…जानिए कौन-कौन रहेंगे मौजूद
पिछले कुछ वर्षों में हिंदुत्व विचारधारा के प्रति जिस ढंग की प्रखरता और मुखरता देश-विदेश में देखी गई है, योगी इस समय उसके बड़े प्रतीक बन गए हैं। नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री होने के कारण जो कुछ नहीं बोल सकते, उसे योगी खुल कर बोलते हैं। भगवा वस्त्रधारी एक संन्यासी इस समय हर दृष्टि से बीजेपी और संघ परिवार के नेतृत्व के लिए अनुकूल है। इसीलिए सभी चुनावों में नरेंद्र मोदी और अमित शाह के बाद सबसे ज्यादा सभाएं योगी की होती हैं। पिछली कार्यकारिणी बैठक में उन्हीं के द्वारा राजनीतिक प्रस्ताव पेश करा कर नरेंद्र मोदी ने बता दिया था कि पार्टी में उनकी हैसियत क्या रहने वाली है। योगी आदित्यनाथ संघ और बीजेपी नेतृत्व की सोच को व्यवहार में परिणत करने वाले नेताओं में सबसे आगे हैं। असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्व सरमा ऐसे दूसरे नेता हैं। पूर्व मुख्यमंत्री सर्बानंद सोनोवाल की जगह हिमंता को मुख्यमंत्री बना कर नरेंद्र मोदी ने जो संदेश दिया, उसे समझें तो योगी आदित्यनाथ के बारे में उठाई गई सारी आशंकाएं ध्वस्त हो जाएंगी।
बीजेपी नेतृत्व अपने अजेंडे पर खुलकर आगे बढ़ने की छूट नहीं देता तो योगी आदित्यनाथ की हैसियत इतनी बड़ी नहीं होती। उनका कद इसीलिए बढ़ा क्योंकि केंद्रीय नेतृत्व अपने अजेंडे पर काम करने लगा था और इसके अनुरूप राज्यों का नेतृत्व तलाश रहा था। विधायक न होते हुए भी योगी को मुख्यमंत्री बनाया गया। वस्तुतः कोई यह मान ले कि योगी स्वायत्त होकर हिंदुत्व और राष्ट्रीयता से संबंधित मुद्दों पर मुखर होकर बोलते या काम करते हैं तो यह नासमझी होगी। यह बीजेपी और संघ का अजेंडा है। यही अजेंडा अन्य राज्यों के मुख्यमंत्रियों के समक्ष भी है। उन सबसे तुलना करें तो निष्कर्ष निकालना आसान हो जाएगा कि आखिर योगी क्यों इस समय नरेंद्र मोदी, अमित शाह के बाद सबसे ज्यादा लोकप्रिय और मजबूत नेता बनकर उभर रहे हैं। ऐसा कौन नेता है जो यह पूछने पर कि दुनिया भर के विरोधी आपको चुनाव में हराना चाहते हैं, मुसलमान आपके विरोधी हैं आप कैसे जीतेंगे तो जवाब दे कि चुनाव 80 प्रतिशत बनाम 20 प्रतिशत का होगा और 20 प्रतिशत की हम परवाह नहीं करते? मुख्यमंत्री होते हुए भी बार-बार मुस्लिम आक्रांता शब्द का इस्तेमाल करने और इतिहास की गलतियों को ठीक करने का संकल्प व्यक्त करने वाला बीजेपी के राज्य नेतृत्व में कोई दूसरा नेता नहीं है। सच यह है कि नरेंद्र मोदी ने जिन अपेक्षाओं से योगी को मुख्यमंत्री बनाया, उसको उन्होंने काफी हद तक पूरा किया।
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साफ है कि उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री पद पर दोबारा आसीन होने के साथ योगी बीजेपी और संघ परिवार के राष्ट्रीय नेताओं की कतार में स्थापित हो चुके हैं। भगवाधारी योगी धीरे-धीरे बीजेपी नेतृत्व की कतार में निर्णय लेते और काम करते दिखाई देंगे। 2024 लोकसभा चुनाव की दृष्टि से योगी की लोकप्रियता का व्यापक महत्व है। लोकसभा चुनाव में लोकप्रियता का लाभ लेने के लिए उनकी सभाएं कराई जाएंगी तो वह अपने अनुसार कुछ लोगों को उम्मीदवार भी बनाना चाहेंगे। 2024 के चुनाव परिणाम के बाद तस्वीर ज्यादा साफ होगी। प्रधानमंत्री ने 75 साल की उम्र सीमा निर्धारित की है। यह अमल में रहा तो धीरे-धीरे केंद्र में बदलाव होना चाहिए।
लंबी राजनीतिक आयु
उम्र के अनुसार योगी की राजनीतिक आयु लंबी है। कोई बड़ी गलती नहीं की, पिछली सरकार में हुई गलतियों से सीख लेकर सुधार किया, अपने इर्द-गिर्द अच्छे लोगों की टीम खड़ी की और कार्यकर्ताओं तथा लोगों से सीधे जुड़ाव का ढांचा विकसित कर सरकार के अजेंडे पर काम किया तो योगी आदित्यनाथ लंबे समय तक केंद्रीय नेतृत्व का एक प्रमुख चेहरा बने रहेंगे।
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