हे ईश तुम हो सबकी बिगड़ी बनाने वाले ।
विनती सुनो हमारी, सृष्टि रचाने वाले ।।
तेरा ही होवे चिंतन तेरा ही हो भजन भी।
होवे मनन भी तेरा, तेरा ही हो यजन भी।।
चिंता न कोई होवे चिंता मिटाने वाले …
विनती सुनो हमारी, सृष्टि रचाने वाले ..
संसार के निवासी दु:ख और धोखा देते।
नहीं चैन पाने देते कष्टों का झोंका देते।।
मुक्ति ना होने देते जग में फंसाने वाले …
विनती सुनो हमारी, सृष्टि रचाने वाले …
चहुँओर झाड़ियां हैं पत्थर हैं भारी भारी।
कष्टकर सफर है – मंजिल भी दूर म्हारी ।।
दिखला दो मुझको मंजिल रस्ता बताने वाले …
विनती सुनो हमारी, सृष्टि रचाने वाले …
मिलन होवे तुमसे – बस एक ही है इच्छा।
होवें तुम्हारे दर्शन मिल जाये मुझको भिच्छा।।
‘राकेश’ की है विनती जग के चलाने वाले ….
विनती सुनो हमारी, सृष्टि रचाने वाले ….
( ‘गीता मेरे गीतों में’ नमक मेरी नई पुस्तक से)
डॉ राकेश कुमार आर्य
संपादक : उगता भारत