महर्षि कपिल जी ने अपने सांख्य दर्शन में बतलाया है, कि “संसार में कहीं भी कोई भी व्यक्ति पूरा सुखी नहीं है।” उसी सांख्य दर्शन में एक और स्थान पर भी उन्होंने ऐसी बात कही है, कि “संसार उसी का नाम है जहां दिन रात, राग और द्वेष चलता रहता है।” अब आप इन बातों से अनुमान लगाइए, कि संसार कैसा है?
जो लोग ऐसा मानते हैं, कि “संसार में बहुत सुख है। वे लोग बहुत भ्रांति में हैं।” हां, यह ठीक है, कि संसार में शारीरिक स्तर पर सुख अधिक है, और दुख कम है। परंतु मानसिक स्तर पर यदि सुख-दुख की तुलना करें, तो “मानसिक स्तर पर सुख बहुत कम और दुख बहुत अधिक है। लड़ाई झगड़ा लूट मार हत्याएं डकैती इत्यादि घटनाओं के समाचार दिन भर व्यक्ति देखता सुनता रहता है, जिससे वह सुबह से रात्रि तक पूरा दिन राग द्वेष चिंता तनाव काम क्रोध लोभ ईर्ष्या अभिमान आदि दोषों से ग्रस्त, दुखी एवं परेशान रहता है। अच्छे समाचार तो कभी कभार ही मिलते हैं, जिससे व्यक्ति थोड़ा प्रसन्न हो जाता है।”
प्रश्न — “जब जीवन में दुख बहुत अधिक हैं, तो फिर कैसे जीएं? उत्तर — अपने सोचने का ढंग बदलें। ऐसे सोचें – सुख आते हैं, कुछ देर बाद चले जाते हैं। ऐसे ही दुख आते हैं, वे भी कुछ देर बाद चले जाते हैं। समस्याएं आती हैं, और कुछ समय बाद हट भी जाती हैं। अतः आने वाले दुखों से घबराएं नहीं। क्योंकि जैसे सुख स्थाई नहीं हैं, वैसे ही वे दुख भी स्थाई नहीं हैं।” ये दुख तथा समस्याएं हमें सावधान करती हैं, यह कहती हैं, कि “संसार में सदा रहना बुद्धिमत्ता नहीं है। क्योंकि यहां दुख बहुत अधिक है, तथा पूर्ण सुख की प्राप्ति तो यहां असंभव ही है।”
तो प्रश्न होता है, कि “दुखों से पूर्णतया निवृत्ति, तथा पूर्ण सुख की प्राप्ति कहां हो सकती है?” इस प्रश्न का उत्तर — वेदों और ऋषियों के बनाए शास्त्रों में लिखा है कि “दुखों से पूर्णतया निवृत्ति, तथा पूर्ण सुख की प्राप्ति केवल मोक्ष में ही संभव है, और कहीं नहीं।” “इसलिए मोक्ष प्राप्ति की तैयारी करें। वेदों और ऋषियों के शास्त्रों का अध्ययन करें। वहां से आपको मोक्ष का मार्ग मिल जाएगा।”
जब तक आप जीवित हैं, तब तक जीवन में कुछ न कुछ दुख और समस्याएं तो आएंगी ही। फिर भी उन दुखों और समस्याओं से घबराएं नहीं, बल्कि शांतिपूर्वक उनका समाधान ढूंढें। यदि आप सारा दिन केवल यही सोचते रहे, कि “संसार में बहुत दुख है, बहुत दुख है, तो आप डिप्रेशन में चले जाएंगे.” इसलिए ऐसा न सोचें। सच्चाई को ठीक प्रकार से समझें। सच्चाई यह है, कि “संसार में दुख बहुत है, तो क्या करना चाहिए? इन दुखों से बाहर निकलने का रास्ता ढूंढना चाहिए। जो व्यक्ति ऐसा सोचता है, वह डिप्रेशन में नहीं जाता। बल्कि इन दुखों से बाहर निकल जाता है। जीते जी भी दुखों से बचकर बहुत कुछ सुखी रहता है, और परिश्रम करके पूरी तरह दुखों से छूट कर मोक्ष भी प्राप्त कर लेता है।” अतः ऐसा सोचना चाहिए। “जैसा आप सोचेंगे, वैसा ही आप बोलेंगे और वैसा ही कर्म करेंगे। जैसा आप बोलेंगे और जैसा कर्म करेंगे, उसी के अनुसार फल मिलेगा। इसलिए सही सोचना, सही बोलना और सही कर्म करना सीखें। दुखों से बचने और सुखी जीवन जीने के लिए यह बहुत आवश्यक है।”
“ये दुख आएंगे और आपका अनुभव बढ़ा कर चले जाएंगे। स्थाई रूप से नहीं रहेंगे।” “जब सुख आते हैं और चले जाते हैं, तो दुखों के विषय में भी ऐसा ही सोचें, कि ये भी सदा नहीं रहेंगे। ये भी चले जाएंगे।” ऐसा सोचने से आपको बहुत शक्ति मिलेगी। आप दुखों से घबराएंगे नहीं और आसानी से उन्हें पार कर जाएंगे। इस प्रकार से, वैदिक शास्त्रों में सारे समाधान लिखे हैं। “यदि आप इन वैदिक शास्त्रों को उत्तम आर्य विद्वानों से पढ़ें, और उन समाधानों को अपने जीवन में लागू करें, तो जीते जी भी बहुत कुछ दुखों से छूट जाएंगे। अच्छे ढंग से जियेंगे, और आगे चलकर मोक्ष भी प्राप्त कर सकते हैं।”
—- स्वामी विवेकानन्द परिव्राजक, रोजड़ गुजरात।