अकबर महान या महाधूर्त ?
सेकुलर रोग से ग्रस्त कुछ वामपंथी और कांग्रेसी विचार
रखने वाले इतिहासकारों ने हुमायूँ के बेटे मुग़ल बादशाह
अकबर को एक धर्मनिरपेक्ष और हिन्दू मुस्लिम एकता और
भाईचारे का प्रतीक बता दिया है , और उसे “अकबर आजम
-اكبرِ اعظم
” ( akabar the greate ) की उपाधि दे डाली है ,लेकिन
अकबर न तो महान था और न ही धर्म निरपेक्ष था , अकबर
का पूरा नाम “अबुल फतह जलालुद्दीन मुहम्मद अकबर –
ابوالفتح جلال الدّين مُحمد اكبر ” था , इसका जन्म 15
अक्तूबर सन 1542 में और मौत 27 अक्टूबर 1605 में हुई
थी ,हम अकबर को सेकुलर इसलिए मान सकते है , क्योंकि
जैसे सेकुलरों का स्वार्थ के सिवा कोई धर्म नहीं होता , वैसे
अकबर किसी धर्म को नहीं मानता था , यद्यपि वह मुस्लिम
था , लेकिन उसने कुरान आदेशों का कई बार उल्लंघन किया
था , जैसे ,
1-अपने नाम का कलमा पढवाया
फ़ारसी भाषा में लिखी गयी किताब “दबिस्ताने मजाहिब –
دبستان مذاهب ” के अध्याय 10 के अनुसार अकबर ने “दीने
इलाही -دین الهی
” नाम का एक धर्म बनाया जिसका अर्थ दैवी धर्म (Divine
religion ) है , फिर अपने दरबारियों को वह धर्म अपनाने को
कहा , और मुहम्मद की तरह
अपने नाम का कलमा पढने को कहा जो इस प्रकार है
” ला इलाह इल्लल्लाह -لَا إِلٰهَ إِلَّا الله
“अकबर ख़लीफ़तुल्लाह -اكبر خليفتُ الله
अकबर ने लोगों से कहा कि इस धर्म के अपनाने से सभी धर्म
के लोगों में एकता स्थापित हो जायेगी , कुछ लोग अकबर
के इस झांसे में आगये , लेकिन प्रतिष्ठित हिन्दुओं ने इसका
विरोध किया , क्योंकि वास्तव में अकबर पूरे भारत में इस्लाम
फैलाना चाहता था ,इसके लिए उसने कई हिन्दू राजाओं से
युद्ध भी किये , लेकिन महाराणा प्रताप के कारण अकबर
की इच्छा पूरी नहीं हो सकी , फिर अकबर ने नयी चाल
चली ,
2-डोली भेजने की नीति
अकबर जानता था कि उसके रसूल मुहम्मद ने अपने सहाबियों
की पुत्रियों से शादी करके इस्लाम फैलाया था , इसलिए जिस
भी हिन्दू राजा की लड़की 12 से अधिक हो जाती थी अकबर
उन राजाओं के पास एक डोली ( पालकी ) भिजवा देता था ,
और डोली के पीछे अकबर की सेना रहती थी, ,और हिन्दू
राजाओं से कहा जाता था कि बादशाह अकबर आपसे
रिश्ता बनाना चाहते हैं , इसलिए आप इस डोली में बिठा कर
अपनी पुत्री भिजवा दीजिये साथ में उसकी दासियाँ भी होना
चाहिए , नहीं तो शाही सेना युद्ध के लिए तैयार है ,
और छोटे छोटे राजा और जमींदार डर कर अपनी लड़कियां
अकबर के हरम में भेज देते थे ,
इस डोली नीति की बदौलत अकबर के हराम में पत्नियों की
संख्या 300 और रखैलों (Cocubines) की संख्या 5000
तक हो गयी थी .
3-अकबर की राजधानी
अकबर हिन्दू विरोधी , मक्कार , धूर्त होने के साथ
अंधविश्वासी भी था , वह एक मुस्लिम फ़क़ीर सलीम चिश्ती
का अनुयायी था , चिश्ती ने अकबर से कहा कि अगर वह
यमुना के पास अपनी राजधानी बना लगा तो वहां के
आसपास के राम भक्त हिन्दुओं को आसानी से मुस्लमान
बना लेगा ,इसलिए रणथथम्बोर का किला जितने के बाद
अकबर ने सन 1559 में आगरा से 37 कि मी पश्चिम में
अपनी नयी राजधानी बनाई और उसका नाम “फ़तेहपुर (City
of Victory ) रखा , वहां अकबर ने एक भव्य महल भी
बनवाया जिसके चारों तरफ ऊंची दीवारें थीं , इस महल में
अकबर की औरतों और रखैलों के रहने के लिए जनान खाना
भी बनवाया , लेकिन 5300 औरतों के लिए शौचालय नहीं
बनवाया ,आज भी यदि कोई सीकरी जायेगा तो देखेगा इतने
लोगों के लिए कहीं भी शौचालय नहीं है , क्योंकि मुहम्मद
और उनकी औरतें खुले मैदान में शौच करते थे , इसलिए
महल की औरतें मिटटी के बर्तनों में और मर्द एक चबूतरे पर
मल त्याग करते थे , प्रतिदिन इतने लोगों के मल (Stool)
का वजन सैकड़ों मन हो जाता था( अर्थात सैकड़ों क्विंटल
), इतने मल को फेकना बड़ी समस्या थी ‘
4-वाल्मीकि समाज पर अत्याचार
अकबर जब फ़तेहपुर में रहने लगा तो उसे पता चला कि
यमुना के किनारे के आसपास कुछ ऐसे लोग हैं ,जो लोगों
को राम की कथा सुनाया करते हैं , और जिस से हिन्दू अपने
धर्म पर अडिग हो जाते हैं ,वास्तव में यह लोग रामायण के
रचयिता महर्षि वाल्मीकि के वंशज या अनुयायी थे , वैसे तो
महर्षि वाल्मीकि का आश्रम तमसा नदी के किनारे था , यह
नदी उत्तराखंड के गढ़वाल से निकल कर यमुना में मिल
जाती थी , आज इसका नाम “टौंस ” है ,इसे यमुना की
सहायक नदी( tributary of the Yamuna ) माना जाता है
,इसका उल्लेख वाल्मीकि रामायण में कई बार हुआ है , तभी
अकबर के दिमाग में यह राक्षसी विचार पैदा हुआ , उसने
सोचा कि अगर किसी तरह से यह वाल्मीकि के वंशज
मुस्लमान बन जाएँ तो भारत में राम का नाम लेने वाला कोई
नहीं रहेगा , और राम के बिना हिन्दू धर्म खुद नष्ट हो जायेगा ,
और इस्लाम का रास्ता साफ हो जायेगा। , इसलिए अकबर ने
आसपास के उन सभी राम भक्तों को बुलवाया और उनके
सामने दो विकल्प रखे ,
या तो इस्लाम कबूल करो या फिर हम मुगलों-मुसलमानों का
मैला ढोओ !
5-वाल्मीकि समाज की धर्मनिष्ठां
लेकिन धन्य हैं वाल्मीकि समाज के वे लोग जिन्होंने अपना
धर्म त्यागने और इस्लाम कबूल करने से साफ इंकार कर दिया ,
और धर्म की रक्षा के लिए यह गन्दा काम करना स्वीकार किया
.और धर्मभ्रष्ट होने से बचने के लिए इन लोगों ने अपने
यज्ञोपवीत तोड़ दिए , इसलिए जनेऊ भंग करने से यह लोग
“भंगी ” कहलाये, इनके उपकारों के कारण तत्कालिन हिंदू
समाज ने इनके मैला ढोने की नीच प्रथा को भी ‘महत्तर’ अर्थात
महान और बड़ा करार दिया था, जो अपभ्रंश रूप में ‘मेहतर’ हो
गया .मुगल वंश की समाप्ति होते-होते इनकी संख्या-14 फीसदी
हो गई थी .डॉ सुब्रहमनियन स्वामी लिखते हैं, ” अनुसूचित जाति
उन्हीं बहादुर ब्राहण व क्षत्रियों के वंशज है, जिन्होंने जाति से
बाहर होना स्वीकार किया, लेकिन मुगलों के जबरन धर्म परिवर्तन
को स्वीकार नहीं किया। आज के हिंदू समाज को उनका
शुक्रगुजार होना चाहिए, उन्हें कोटिश: प्रणाम करना चाहिए,
क्योंकि उन लोगों ने हिंदू के भगवा ध्वज को कभी झुकने नहीं
दिया, भले ही स्वयं अपमान व दमन झेला।”फिर उन्होंने अपने
काम से निवृत्त होकर हिंदू चेतना जागृत करने के लिए घर-घर,
गली-गली गा-गा कर राम कथा कहना शुरू कर दिया ,दुर्भाग्य से
खुद को सवर्ण और उच्च मानने वाले हिन्दुओं ने इनका आदर
करने की जगह अस्पृश्य और अछूत मान लिया ,
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