कश्मीर के अपराधियों को क्यों बचाती रही है सरकारें

उगता भारत ब्यूरो

सोचिए! क्या बीती होगी उन लाखों कश्मीरी पंडितों पर जिन्हें इन्हीं आतंकियों के कारण अपना घर, अपना काम, अपनी जमीन सब छोड़ना पड़ा था। मनमोहन सिंह के साथ यासीन की मुलाकात की आज भी चर्चा होती है।
कश्मीर में हिंदू नरसंहार और पलायन की अंतहीन कहानियों का एक सच ये भी है कि 90 के दशक में कश्मीरी पंडितों पर अत्याचार होने के बावजूद पंडितों ने समय-समय पर वापस अपने घर लौटने की कोशिश की। लेकिन उस समय भी, इस्लामी आतंकियों ने उन्हें मौत के घाट उतार दिया। घाटी में पुलिस इतनी लाचार बनी बैठी थी कि कट्टरपंथियों के विरुद्ध सालों तक नरसंहार का कोई केस नहीं दर्ज हुआ और जो 200 केस हुए भी उसकी चार्जशीट कभी बनने नहीं दी गई और जब 1998 में 23 कश्मीरी पंडितों का प्रतिनिधिमंडल श्रीनगर हालात देखने पहुँचा तो उन्हें भी गांदरबल में रातों रात मार दिया गया। फारूख अब्दुल्ला ने मीडिया में बयान दिया था कि यहाँ कश्मीरी हिंदुओं की वापसी संभव नहीं है।
दैनिक भास्कर में प्रकाशित रिपोर्ट में कश्मीर संघर्ष समिति के अध्यक्ष संजय टिक्कू ने अपना बयान दिया है। उन्होंने आज तक गुनहगारों को सजा न मिलने को राजनीतिक असफलता बताया। उन्होंने कहा कि 680 कश्मीरी पंडितों की हत्या हुई लेकिन कहीं कोई कार्रवाई नहीं हुई। 200 से ज्यादा जो एफआईआर हुई उसमें कोई चार्जशीट दाखिल नहीं हुई। बिट्टा कराटे सबूतों के अभाव में बरी हो गया जबकि उसने खुद बताया था कि वह 20-30 कश्मीरी पंडितों की हत्या कर चुका हैं।
बता दें कि घाटी से निकाले जाने के बाद एक ओर कश्मीरी पंडित जहाँ सालों साल अपनी वापसी की उम्मीद लगाए बैठे थे। वहीं 2006 में कुछ ऐसा हुआ जिसने कश्मीरी पंडितों के घाव पर मरहम लगाने की जगह नमक लगाने का काम किया। दरअसल, तब सत्ता में मनमोहन सरकार थी। जब प्रधानमंत्री रहते हुए मनमोहन सिंह ने कश्मीरी पंडितों के नरसंहार के सबसे कुख्यात आरोपित यासीन मलिक को अपने साथ मिलाया और उस 18 सदस्यीय पैनल का हिस्सा बनाया ताकि आतंकवादियों से बात हो। इस बातचीत में यासीन की वह माँग तक सुनी गई जिसमें उसने कहा था कि कश्मीर से जुड़े फैसले लेने के लिए राजनीतिक ताकतों के साथ आतंकियों की भी सुनी जानी चाहिए।
सोचिए! क्या बीती होगी उन लाखों कश्मीरी पंडितों पर जिन्हें इन्हीं आतंकियों के कारण अपना घर, अपना काम, अपनी जमीन सब छोड़ना पड़ा था। मनमोहन सिंह के साथ यासीन की मुलाकात की आज भी चर्चा होती है। उन तस्वीरों को शेयर किया जाता है जिसमें दोनों एक दूसरे को देख मुस्कुरा रहे हैं और हाथ मिला रहे हैं और द कश्मीर फाइल्स आने के बाद तो ये वाकया अन्य घटनाओं की तरह प्रासंगित हो गया है।
इन तस्वीरों के अलावा द कश्मीर फाइल्स के आने के साथ जिन चीजों पर चर्चा शुरू हुई है वो कश्मीरी पंडितों को इंसाफ दिलाने की माँग है। हाल में जम्मू कश्मीर के डीजीपी ने एक सवाल के जवाब में कहा था कि घटना से जुड़ी विशेष जानकारियाँ मिलने पर वह निश्चित रूप से मामले की जाँच करेंगे। इसके अलावा कश्मीरी पंडित भी इस फिल्म के आने के बाद सुप्रीम कोर्ट न्याय की गुहार लेकर पहुँचे हैं। उन्होंने आवाज उठाई कि सिख नरसंहार की जाँच भी 33 साल बाद हुई थी तो कश्मीरी पंडितों के नरसंहार पर भी जाँच कराई जा सकती है।

(साभार)

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