ओ३म्
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आचार्य भद्रसेन जी, अजमेर (1900-1975) वैदिक साहित्य तथा येाग के उच्च कोटि के विद्वान एवं प्रचारक थे। आपने अनेक पुस्तकें लिखी हैं। आपकी एक प्रसिद्ध पुस्तक ‘योग एवं स्वास्थ्य’ है। इस पुस्तक के कई संस्करण प्रकाशित हुए हैं। इसका एक संस्करण सन् 1998 में वैदिक साहित्य के प्रसिद्ध प्रकाशक ‘विजयकुमार गोविन्दराम हासानन्द, दिल्ली’ से प्रकाशित हुआ था। हमने इस पुस्तक को जून, 1998 में आद्योपान्त पढ़ा था। हमें यह पुस्तक योग एवं स्वास्थ्य विषय पर उत्तम पुस्तक प्रतीत हुई है। इस पुस्तक को अनेक अध्यायों में विभक्त किया गया है और उनमें विषयानुसार महत्वपूर्ण उपयोगी सामग्री दी गई है। पुस्तक सभी के लिए पठनीय एवं संग्रहणीय है। पुस्तक की विषय सूची में निम्न प्रमुख विषय सम्मिलित किए गये हैं:-
1- योग ही रोग का नाशक है।
2- योगासनों के करने की विधि तथा उनके लाभ। इसके अन्तर्गत योग के प्रायः सभी प्रमुख आसनों को करने की विधि एवं उनसे होने वाले लाभों को सरल भाषा में बताया गया है।
3- मुद्रायें।
4- बन्ध
5- क्रियाएं
6- स्त्रियां और यौगिक व्यायाम
7- यौगिक व्यायाम करने वालों के लिए उपयोगी नियम
8- वृद्धावस्था दूर करने के अमोघ उपाय
9- प्राणायाम
10- प्राणायाम विधि
11- यौगिक तथा प्राकृतिक चिकित्सा
12- विविध रोगों की यौगिक चिकित्सा
13- शरीर को स्वस्थ तथा बलवान बनाने के अचूक उपाय
14- आचार्य भ्रदसेन जी का संक्षिप्त परिचय
पुस्तक के अन्त में शरीर को स्वस्थ तथा बलजवान बनाने के अचूक उपाय दिये गये हैं। हम इन्हीं उपयों को महत्वपूर्ण एवं उपयोगी जानकर यहां प्रस्तुत कर रहें हैं। यह उपाय निम्न हैं:-
1- सदा पौष्टिक, सात्विक, स्निग्ध तथा परिमित आहार करें।
2- प्रतिदिन नियमपूर्वक योगासनादि व्यायाम अवश्य करें।
3- ब्रह्मचर्य-पालन (वीर्य-रक्षा) पर विशेष ध्यान दें।
4- अनावश्यक तथा विलासप्रिय वस्तुओं का परित्याग करें।
5- अपने विचारों को उच्च, पवित्र तथा महान् बनाएं।
6- आलस्य तथा प्रमाद छोड़कर अपने जीवन को सदा पुरुषार्थमय बनाएं।
7- उत्तम ग्रन्थों का स्वाध्याय करें।
8- क्रोधी तथा चिड़चिड़े स्वभाववाले तथा दुर्व्यसनी व्यक्तियों के संग का परित्याग करें।
9- हमेशा सदाचारी तथा सजजन पुरुषों का संग करें।
10- ईश्वर-भक्ति शरीर को स्वस्थ रखने की एक अमोघ औषध है।
11- प्रातः सूर्यादय से पहले उठकर खुली तथा ताजी वायु में भ्रमण करें। भ्रमण सारे शरीर में नए रक्त का संचार करता है।
12- सदा प्रसन्न रहें, शोक और चिन्ता को पास मत फटकने दें।
13- कुछ समय परोपकार तथा लोक-सेवा में भी लगाएं।
14- अपने अन्दर से कमजोरी की भावना को दूर कर दें। अपने को सदा स्वस्थ तथा बलवान् समझें तथा अनुभव करें।
15- दीर्घ-श्वसन अर्थात् प्राणायाम अवश्य करें।
16- शीघ्र सोएं तथा शीघ्र उठें।
17- कभी-कभी तेल की मालिश अवश्य कर लिया करें।
18- ईष्र्या, द्वेष, भय, क्रोध, चिन्ता, उदासीनता आदि मानसिक विकारों से सदा दूर रहें।
19- झुककर बैठने, उठने तथा चलने की आदत को छोड़ दें।
20- मुख को सदा खुला रखकर बाई करवट से सीधे (पैर सुकोड़कर नहीं) सोने का अभ्यास करें।
21- मल-मूत्रादि के वेग को मत रोकें।
22- मन से सब प्रकार की चिन्ताओं को निकाल दें।
23- सदा ‘जीवेम शरदः शतम्’ इस भव्य भावना को अपने मन में बनाए रखें।
24- अपना तथा अपनी सन्तान का बाल्यावस्था में विवाह मत करें।
25- सप्ताह में एक दिन अथवा एक समय उपवास अवश्य करें।
26- बाजार के बने हुए मिठाई आदि पदार्थों का कम-से-कम प्रयोग करें।
हम आशा करते हैं कि पाठक स्वस्थ एवं बलवान बनने के लिए इन उपायों को आवश्यक पायेंगे और इनका यथाशक्ति पालन एवं आचरण करेंगे। इसी उद्देश्य से यह उपाय इस लेख के माध्यम से प्रस्तुत एवं प्रसारित हैं। ओ३म् शम्।
-मनमोहन कुमार आर्य