मेरी आँखे जो बरसा करतीं हैं
कमीं करदे तू रहनुमाई में,
जान आजाए रोशनाई में।
यूँ न फूलों को जोर से मशलो।
लचक आजाएगी कलाई में।
अब तो तुझको भी कैद होना है।
अपनी नजरों की इस लड़ाई में।
मेरी आँखे जो बरसा करतीं हैं।
तेरी आँखों की गुमशुदाई में।
कई नस्लों को खा गई अब तक।
कितनी ताकत है रूस्याही में।
वो गुनाह करके के भी आबाद रहे।
हम तो मारे गए भलाई में।
“” कितना सस्ता किया सौदा उसने।
जान माँगी है मुँह दिखाई में। “”
कब से घुट-घुट के जी रहेथे हम।
जमान-ए-तल्ख की रुसवाई में।
चल कहीं चल के खुदखुशी करलें।
बहुत खर्चा है घरवसाई में।
एलेश