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कविता

देश का भूत, वर्तमान और भविष्य –2

चोटी जनेऊ ना  दिये, चढ़ा   दिये   थे   शीश।
जीवन अर्पण कर दिया ,पा  माँ  का  आशीष ॥18॥

त्याग, तपस्या, साधना ,  लाखों   का   बलिदान।
हिन्दू –  हिन्दी   ध्यान  में ,मन   में    हिन्दूस्थान॥19॥

पौरूष जगा   मेरे   देश   का, भाग   गये   अंग्रेज ।
देख  देश  की   वीरता, और  देख   देश  का   तेज ॥20॥

मुस्लिम  –  लीग  अंग्रेज   ने ,बांट  दिया  जब  देश ।
कांग्रेस   सहमत    हुई,   लेकर   खण्डित    देश ॥21॥

सत्ता   पाई   मद     चढ़ा   , हो    गये   सब   मदहोश।
लगे   लूटने   देश   को,   अपने   ‘काले’    लोग ॥22॥
लुटिया    डुबो   दी  देश  की ,कर  संस्कृति  का  नाश।
संस्कार   मिटा  दिये  वेद  के, बदला  सब   इतिहास॥23॥

तुष्टीकरण    करने    लगे ,  दे     दिये    गहरे   घाव।
कैसे    बचाएं    देश    को, भूल   गये    सब   दांव॥24॥

देश    जाये    गर्त   में ,नहीं  किसी    को   ध्यान।
जो   खुद   कुछ   नहीं   जानते, बांट  रहे  हैं ज्ञान॥25॥

हिन्दू    के    विरोधी    बने ,  हिन्दी   के    गद्दार ।
हिन्दी   शब्द  नहीं   याद  हैं ,इंग्लिश की भरमार॥26॥

गऊ , गंगा,  गीता,   जहाँ ,  बसती  हिय के बीच।
ध्यान   भंग   इनसे   किया, कर्म    करा  रहे  नीचे ॥27॥

भय-भूख   ना   मिट   सके   मिटा   ना    भ्र्ष्टाचार।
सब्जबाग    झूठे   दिए    आयी    जो     सरकार ।। 28।।

नि:शुल्क    शिक्षा    दी   नहीं  खोले   निज  स्कूल ।
मनमानी  ले  फीस  सब    मर्यादा   गए     भूल।। 29 ।।

चिकित्सा     के   नाम  पर     मूँड   रहे  हैं  खाल ।
धर्म  भ्रष्ट    हुए   वैद्य   भी  नहीं  धर्म  का  ख्याल।। 30।।

राजनीति      वेश्या    बनी   भूल   गई  निज  धर्म।
नेता     भड़वा   हो  गए  त्याग   दई  सब    शर्म ।। 31 ।।

नेता   में    नहीं   दीखता  तनिक    राष्ट्र  का  बोध ।
धन   कमाने   में   लगे ,  उसी   पे   करते    शोध।। 32।।

जैसे    नेता   देश   के     वैसे    हो   गये    लोग ।
निजता     तो   बिसरा   दई, पश्चिम का चढ़ा रोग।।33।।

संसद    भवन    में   बैठकर    सुनें  गीत  अश्लील।
देश   की   चिंता  है  नहीं   बुद्धि   हुई    मलीन ।।34।।

यह कविता मेरी अपनी पुस्तक ‘मेरी इक्यावन कविताएं’-  से ली गई है जो कि अभी हाल ही में साहित्यागार जयपुर से प्रकाशित हुई है। इसका मूल्य ₹250 है)

डॉ राकेश कुमार आर्य
संपादक : उगता भारत

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