इसीलिए महात्मा गांधी ने जिनको पहला सत्याग्रही बनाया, उस विनोबा भावे ने अपनी जिंदगी के आखिरी दिनों में यह सवाल बड़ी संजीदगी से उठाया। जवाहर लाल नेहरू तो नहीं थे, पर उनकी बेटी से वे उम्मीद करते थे कि वे गौ वंश की रक्षा के लिए न केवल प्रधानमंत्री के रूप में, बल्कि एक मां होने के नाते भी कोई कदम उठाएंगी।
उन्हीं के शासन में ”प्रभुदत्त ब्रह्मचारी” ने गौ रक्षा के लिए अपने प्राणों की बाजी लगा दी और आमरण अनशन पर बैठ गए। इससे देशभर के साधु और संतों ने बीड़ा उठाया। वे संकल्पबद्ध होकर दिल्ली आए। उन्हें गौ रक्षा का आश्वासन तो नहीं मिला, जो मिला वह गोली-बारूद का प्रसाद था। बहुत से साधु मारे गए और ज्यादा घायल हुए। तब से गौ रक्षा का सवाल पृष्ठभूमि में चला गया है ?
अजीत कुमार पुरी