कविता — 51
जीवन के संगीत में , मिश्री सी तू घोल।
मनवा सुख की खोज में ,ओ३म् – ओ३म् ही बोल॥1॥
जगत की चिन्ता छोड़ दे ,चिंतन कर सुबह शाम ।
भजले मनवा ईश को, पूरण करता काम ॥2॥
द्वन्द्वभाव को त्यागकर ,पकड़ डगरिया मीत।
मालिक तेरा है जहाँ ,है सुख की नगरी मीत॥3॥
वेद की बंशी बज रही,अनहद का है शोर।
अनुभव कर ले बावरे, उठ प्रातः की भोर ॥4॥
ऋषियों का यह देश है ,ऋषियों का इतिहास।
हास और परिहास में है ऋषियों का आभास ॥5॥
आर्यावर्त मेरा देश है , विश्व गुरु है महान।
भारती की आरती ,गाता सकल जहान ॥6॥
ईश वाणी वेद की ऋषियों के उपदेश ।
ऋषियों के निर्देश हैं ,ऋषियों के आदेश ॥7॥
उपनिषदों ने खोल दीं ,रहस्यमयी सब बात ।
आत्मा – परमात्मा ,और प्रकृति का साथ ॥8॥
मर्यादा बतला रहे ,रामायण के गीत ।
जो जन जानें बावरे,जग को लेते जीत ॥9॥
बेईमानी और नीचता,मत कर जग में आय।
महाभारत ये कह रही ,सर्वस्व नाश हो जाय ॥10॥
गीता का संदेश है , कर्म करो निष्काम ।
कर्म की ही शुद्धता , पकड़ाती सुखधाम ॥11॥
बड़े-बड़े धर्मात्मा , और बड़े – बड़े सम्राट ।
धरती पर विचरे कभी, सिमट गये सब ठाठ ॥12॥
महाभारत के युद्ध ने, लिया था वैभव छीन।
पाखण्ड बढ़ा निज देश में ,हो गये बुद्धिहीन ॥13॥
मत मतान्तर बढ़ गये, तेज हीन हुए लोग।
मजहबपरस्ती बढ़ गयी,विश्व में फैला रोग ॥14॥
भारत शौर्यमय रहा ,ना मानी कभी हार।
अंधकार प्रकाश का, हुआ युद्ध कई बार ॥15॥
तुर्क, मुगल अंग्रेज सब , अन्त में गये हार ।
भारत की हुई जीत तो ,हो गयी जय जयकार॥16॥
क्रान्तिमय रहा देश ये, देता रहा बलिदान ।
जिनके कारण हिंद को ,मिलता रहा सम्मान॥17॥
यह कविता मेरी अपनी पुस्तक ‘मेरी इक्यावन कविताएं’- से ली गई है जो कि अभी हाल ही में साहित्यागार जयपुर से प्रकाशित हुई है। इसका मूल्य ₹250 है)
डॉ राकेश कुमार आर्य
संपादक : उगता भारत