वैदिक संपत्ति (तृतीय – खण्ड) अध्याय – चितपावन और आर्य शास्त्र

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गतांक से आगे….
जाली ग्रंथों के रचने का एक नमूना हमने खुद देखा है। उड़ीसा में आठगण नामी एक देसी राज्य है। वहां के राजा का नाम विश्वनाथ है। राजा साहब संस्कृत में कविता कर लेते हैं। उन्होंने व्यास के नाम से अपने गांव के महादेव का माहात्म्य वर्णन किया है और एक पुस्तक में छपा भी है। कहने का मतलब यह है कि जाली रचनाएं अब तक हुई हैं और हो रही हैं। पुरानी और मध्यकालीन जाली रचनाओं की खोज यूरोप के विद्वानों ने खूब की है। इस प्रकार की जाली रचनाओं के लिए कोलब्रूक कहता है कि मेरे कहने का मतलब यह नहीं है की जालसाजीयाँ कभी नहीं होती है अथवा पूरे या अधूरे बनावटी ग्रन्थ नहीं बनाए गए। सर डब्लू०जोंस, ब्लैकवेयर और मैंने प्रक्षेपो को पकड़ा है। इनसे भी बड़ी जालसाजीयाँ करने का प्रयत्न किया गया है। उनमें से कुछ तो थोड़े समय के लिए सफल हुई और अन्त में खुल गई, पर कुछ तो तुरन्त ही पकड़ ली गई। नियमित जालसाजी का प्रत्यक्ष प्रमाण प्रकाशित हो चुका है, जिसने कैप्टन बिलफोर्ड को धोखे में डाल दिया था। इसका वर्णन बिलफोर्ड ने ही कर दिया है। इस तरह से यद्यपि कुछ प्रयत्न निष्फल हुए हैं, तथापि दूसरे प्रयत्न निस्संदेश सफल भी हुए हैं। पूर्वी साहित्य के खोज की वृद्धि होने से और समालोचकों के चातुर्य से जाली पुस्तकें और पुस्तकों में मिलाए हुए जाली पृष्ठ पकड़े जाएंगे, पर मुझको यह शंका नहीं है, कि वेद भी इस प्रकार के निकलेंगे। कहने का मतलब यह है कि आसुरी संसर्ग से इस प्रकार की जाली रचनाओं के कारण आर्य जाति हिंदू हो गई और उसमें मनमाने सम्प्रदाय, मनमाने ग्रन्थ और मनमाने सिद्धांतों में हजारों रूपों से विस्तार किया, तथा ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र सभी को नीच बना दिया और आर्य जाति का पतन हो गया। इस पतित दशा में ही मुसलमानों की आमद हुई। इनमें से हजारों मुसलमान हिंदू हो गए और अनेकों ने अर्ध हिंदू धर्म मुसलमान रूप धारण करके हिंदुओं के रहे सहे विश्वासों और ग्रन्थों को नष्ट कर दिया।
( आलोक – यहां यह अध्याय समाप्त होता है और अगला अध्याय हैं – मुसलमान और आर्य शास्त्र)
क्रमशः

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