बहुवित से भी श्रेष्ठ है,
चित्तपावन व्यवहार।
दत्तचित होकर सुने,
अनुगामी संसार॥1667॥
व्याख्या:- अधिकांशत:इस संसार में ऐसे लोग बहुत मिल जाएंगे जो बहुत कुछ जानते हैं, और उसे अपनी वाणी से अभिव्यक्त भी करते हैं तथा स्वयं को श्रेष्ठ होने का मिथ्या दम्भ पाले रखते हैं किन्तु वास्तव में वही व्यक्ति श्रेष्ठ है,जो अपने चित्त का स्वामी है, जिसका चित्त स्थिर है, दृढ़ संकल्प – शक्ति का धनी है, जो ठान लेता है, उसे करके दिखाता है। भाव यह है कि, जिसके मन – वचन और कर्म में एकरूपता है, आदर्श को आचरण में अर्थात् व्यवहार में जीता है। उसे आत्मसात करता है। ऐसा व्यक्ति चाहे बहुवित (बहुत अधिक जानने वाला) न हो बेशक अल्पवित (कम जानने वाला) हो लोग उसका विश्वास करते हैं और जो बहुवित हैं किन्तु व्यवहार में शून्य है उसे लोग ‘बकवादी’ कहते हैं -‘थोता चना, बाजे घना’ कहते हैं। इससे सिद्ध होता है कि प्रभाव शब्द का नहीं आचरण का पड़ता है। ऐसे व्यक्ति की बात को लोग सांस रोक कर बड़े ध्यान से सुनते हैं और उसके अनुयायी बनकर पीछे-पीछे चलते हैं। उसके शब्दों पर विश्वास करते है। याद रखो! यह संसार उसी का है जिसका विश्वास होता है। इसलिए कहा गया है – विश्वास पर दुनिया कायम है। सारांश यह है कि, आचारहीन ज्ञानी से आचारवान कम ज्ञानी व्यक्ति अधिक श्रेष्ठ है।
प्रभु – कृपा से ही चित्त में भगवद् – भाव जगते हैं –
मनुआ भक्ति में लगे,
और जग से हो वैराग्य।
हरि – कृपा इसे मानिए,
उदित होय सौभाग्य॥14668॥
भावार्थ:- भक्ति से से अभिप्राय है, व्यक्ति का मन भगवान में लगे अर्थात् भगवद्- भाव में अवस्थित हो और वैराग्य से अभिप्राय है, व्यक्ति का मन इस माया रुपी संसार से, इसके प्रपंचों से हटे। उपरोक्त दोनों लक्षण किसी पूर्व जन्म के सुसंस्कारों का पुनः प्रबल होना है। यदि ऐसा होता है तो समझिए परमपिता परमात्मा ने तुम्हें अपनी कृपा का पात्र बनाया है। वह तुमसे लोक-कल्याण का निमित्त बनाना चाहता है। उसकी कसौटी पर कहीं न कहीं तुम खरे उतरे हो। इसलिए तुम ऋजुता से भरे हो, देवी सम्पदा से भरे हो। इसे सर्वदा यह मान कर चलिए कि तुम्हारे भाग्योदय का सूर्य स्वर्णिम प्रभात लेकर आया है। प्रभु के प्यारों में तुम्हारा चयन हो गया है, तुम्हारा सौभाग्य जग गया है।
क्रमशः