‘वेदना का चक्रव्यूह तथा अन्य कहानियां’- पुस्तक प्रो0 रूप देवगुण जी द्वारा लिखी गई है। इस पुस्तक के विषय में डॉ इंदु बाली का कहना है कि प्रोफेसर देवगुण की कहानियों में नए और पुराने मूल्यों की संधि है ,विघटन नहीं। मानवीय मूल्य और भारतीय संस्कृति के प्रति पूर्ण आस्था, पितृभक्ति, संबंधों की गरिमा , सहज प्रणय, नीति अनीति का सशक्त सामाजिकरण, और इन समस्त उदात्त भावों के प्रति भावात्मक संवेदना है । पर कहीं-कहीं निम्न मध्यवर्गीय दृष्टि और मानसिकता का आक्रोश और आमूलचूल परिवर्तन का प्रलयंकारी स्वर भी दिखाई देता है।’
प्रोफेसर रूप देवगुण कविताओं, लघु कविताओं, बाल लघु कविताओं, ग़ज़लों, कहानियों, लघु कथाओं, पंजाबी कहानियों, समीक्षा व संकलन आदि के माध्यम से साहित्यिक सेवा करते रहे हैं। इस पुस्तक में उन्होंने कुल 20 कहानियां दी हैं ‘फरमाइशें’
कहानी मेरे वह दांपत्य जीवन की प्रेम अनुभूतियों को इंगित करते हैं । विद्वान लेखक की इस कहानी की नायिका अपने पति प्रोफेसर अंशुल की घरेलू फरमाइशों से कई बार परेशान सी होती है, परंतु जब पति का कहीं दूसरे स्थान पर स्थानांतरण हो जाता है तो वह उसकी गैरहाजरी में अपने आपको अकेली नीरस और बेचैन सी अनुभव करने लगती है। इस कहानी के माध्यम से विद्वान लेखक ने दांपत्य जीवन में पति पत्नी के प्रेम पूर्ण संबंधों को व एक दूसरे के प्रति संवेदनशीलता को बड़ी गहराई से स्पष्ट किया है। साथ रहकर कभी नोकझोंक होती है तो दूर रहकर उतनी ही बेचैनी बढ़ जाती है।
किसी भी कहानीकार के लिए यह आवश्यक होता है कि वह अपने कहानी के पात्रों की भावुकता और संवेदनशीलता को सहजता के साथ प्रस्तुत करने में पारंगत हो। प्रस्तुत पुस्तक में विद्वान लेखक ने प्रत्येक कहानी में अपने इस विशिष्टता का अनुमोदन बार बार किया है।
‘वेदना का चक्रव्यूह’ नामक कहानी में उनके सहज संवाद इस प्रकार हैं – सूरज से रहा नहीं गया। यह यामिनी को बुला ही बैठा। यामिनी आ गई हो ना ? यामिनी अपने स्थान से उठी और उसके साथ वाली कुर्सी पर आकर बैठ गई । बोली – ‘क्या हाल है तुम्हारा ? चाय बनाऊं । चाय तो पी लेंगे।’
यामिनी कुछ बातें करो। सारा दिन अकेला पड़ा रहता हूं मैं। पढ़ लिख सकता हूं मैं। किसी से बात कर सकता हूं। अपने आपसे कब तक वार्तालाप करता रहूंगा ? यह कहते-कहते वह भाव विह्वल होकर फूट पड़ा। ‘कुछ बोलो यामिनी। व्यर्थ में ही कुछ बोलो। मेरे भीतर बर्फ सी जम गई है। अनतुल भार आ पड़ा है। इसे कुछ हल्का करो ।
यमिनी कुछ देर न बोल सकी। केवल आंसू ही बहाती रही। सूरज ने उसके बहते आंसुओं को महसूस किया। वह बोला – क्यों रो रही हो यामिनी ? क्या मैंने तुम्हें कुछ कह दिया ? सच मैंने जानबूझकर कुछ नहीं कहा । जो भीतर मन में था अनजाने में ही व्यक्त हो गया। फिर बोलो, कहूँ तो किससे कहूं ? तुम ही तुम मेरी सब कुछ हो।’
लेखक की ‘चौथी घंटी’ नामक कहानी शिक्षा जगत से जुड़ी हुई है। जिसमें कॉलेज के वातावरण को बहुत ही सुंदरता के साथ प्रस्तुत किया गया है। जबकि ‘हिंदसा’ नामक कहानी में अपराधियों के माध्यम से इस बात को स्पष्ट किया गया है कि समाज में अत्याचार, आर्थिक विषमता और कुसंगति यदि होगी तो वहां डकैती और हत्याएं होना स्वाभाविक है। इसका कारण केवल एक है कि आर्थिक विषमता को वे लोग पैदा करते हैं जो दूसरे के अधिकारों का हनन करते हैं, फिर ऐसा करने वाले लोगों के विरुद्ध समाज में डकैती और हत्या करने वाले अपराधी लोगों का संगठन सक्रिय होता है। कुल मिलाकर यब कहानी एक संदेश देती है कि सामाजिक समरसता स्थापित करने के लिए व्यक्ति के चरित्र का नैतिक पक्ष मजबूत होना चाहिए । जिसमें ईमानदारी और एक दूसरे के प्रति संवेदनशीलता की भावना कूट-कूट कर भरी हो।
लेखक ने ‘समभाव’ नामक अपनी कहानी में प्राणीमात्र के प्रति अपने हृदय की सम्वेदनाओं को बड़ी खूबी के साथ प्रस्तुत किया है । उससे उनका प्राणी मात्र के प्रति प्रेम स्पष्ट होता है। वास्तव में मनुष्य को सभी प्राणियों के प्रति दया भाव रखना ही चाहिए। यही वैदिक संस्कृति का आधारभूत सिद्धांत है । इस प्रकार लेखक ने इस कहानी के माध्यम से वैदिक संस्कृति को भी सींचने का प्रयास किया है। जिससे कहानी संस्कृति प्रेम से भी भर गई है।
प्रत्येक सफलता के पीछे किसी ना किसी की प्रेरणा शक्ति बड़ा महत्वपूर्ण कार्य करती है। यदि प्रेरणा शक्ति नहीं हो तो व्यक्ति निराश, उदास और हताश होकर जीवन को बहुत शीघ्रता से समेटने में लग जाएगा। यह बड़े सौभाग्य की बात होती है कि किसी को स्वाभाविक रूप से कोई न कोई प्रेरणा शक्ति कहीं ना कहीं से प्राप्त हो जाती है । अक्सर यह प्रेरणा शक्ति पत्नी के रूप में या माता के रूप में नारी के माध्यम से हमें अक्सर मिलती हुई दिखाई देती है। ‘प्रेरणा’ नामक कहानी में लेखक ने प्रेरणा शक्ति की आवश्यकता और महत्ता पर प्रकाश डाला है।
इस प्रकार प्रत्येक कहानी में कोई ना कोई ऐसा संदेश निकलता हुआ दिखाई देता है जो मानवता के लिए ,समाज के लिए , मानव मात्र के लिए कल्याणकारी हो सकता है। वास्तव में इसी प्रकार की कहानियों के लेखन या साहित्य सर्जन की आवश्यकता होती है। जिससे समाज को और विशेष रूप से युवा पीढ़ी को कुछ विशेष मिलता हुआ दिखाई दे । लेखक सचमुच अपनी सभी कहानियों की उत्कृष्टता के लिए अभिनंदन के पात्र हैं।
इस पुस्तक के प्रकाशक अपोलो प्रकाशन 25 न्यू पिंक सिटी मार्केट राजा पार्क जयपुर 04 मोबाइल 94 14 20 2010 है। पुस्तक का मूल्य ₹350 है। पुस्तक प्राप्ति के लिए 2310785 व 40 22 382 पर संपर्क किया जा सकता है । पुस्तक अमेज़न और फ्लिपकार्ट पर भी उपलब्ध है।
डॉ राकेश कुमार आर्य
संपादक – उगता भारत