भारत वर्ष के इतिहास में ऐसे अनेक उदाहरण हैं जब कोई हिंदू मुसलमान बना तो उसने मुसलमान बनने के बाद अपने मूल धर्म के लोगों के साथ अप्रतिम अत्याचार किए। यदि आज के पश्चिम बंगाल की बात करें तो कभी यहां पर कालापहाड़ नाम का एक हिंदू था, जिसे वहां के नवाब ने अपनी बेटी का हाथ दे दिया था। इतना ही नहीं, नवाब ने उसे अपना उत्तराधिकारी भी घोषित कर दिया था। कालापहाड़ ने नवाब के इस प्रस्ताव को सुनकर उससे कहा था कि मेरी शादी पहले ही हो चुकी है। इसलिए अब मैं दूसरी शादी नहीं कर सकता। दूसरे, मैं अपने हिंदू धर्म से इतना अधिक प्रेम करता हूं कि किसी भी मूल्य पर मैं मुसलमान नहीं बन सकता।
अपनी इकलौती बेटी की जिद के सामने नवाब ने यहां भी हार मान ली और उसे अपने धर्म में रहकर ही मुस्लिम बेटी से शादी करने के लिए अपनी सहमति दे दी थी। नवाब ने उससे कह दिया था कि वह अपने परिवार और पंडितों से जाकर इस संबंध में विचार कर ले। कालापहाड़ ने अपनी पत्नी और घर वालों को तो इस बात के लिये मना लिया पर तत्कालीन ब्राह्मण समाज के मुखियाओं अर्थात भारत के धर्माधीशों ने उसे किसी भी मुस्लिम लड़की से विवाह करने से मना कर दिया ।
इन ब्राह्मणों ने ने काला पहाड़ से कह दिया कि किसी भी कीमत पर तुम इस निर्णय को क्रियान्वित नहीं कर सकते। कई प्रकार से अनुनय विनय करने के पश्चात भी जब काला पहाड़ की बात को इन ब्राह्मणों ने नहीं माना तो उसने खिन्न होकर उस लड़की से अपना विवाह किया और स्वयं धर्म परिवर्तन कर मुसलमान बनने के पश्चात थोक के भाव हिंदुओं को काटना और उन्हें मुसलमान बनाना आरंभ किया। हिंदू से मुसलमान बने इस अकेले व्यक्ति ने उस समय इतने मुसलमान बना डाले थे कि आगे चलकर इन्होंने अपना एक अलग देश अर्थात बांग्लादेश बनाया। आज पश्चिम बंगाल में जितने मुसलमान हैं वे भी तथाकथित ब्राह्मण समाज की उसी मूर्खता का परिणाम हैं।
यदि कालापहाड़ की बात को मानकर ब्राह्मण समाज उसे अपनी मूर्खताओं का शिकार नहीं बनाता तो आज इतिहास दूसरा होता।
जम्मू कश्मीर के महाराजा रणबीर सिंह ने कश्मीर पर 1856 से 18 85 ईस्वी तक शासन किया। कश्मीर के इस महाराजा को महर्षि दयानंद ने वहाँ के मुसलमानों को फिर से हिंदू बना लेने के लिए तैयार कर लिया था। जब महर्षि दयानंद और महाराजा के इस निर्णय की भनक वहां के पंडितों को लगी तो उन्होंने इसका पुरजोर विरोध किया । यद्यपि मुसलमान समाज ने फिर से घर वापसी के लिए महाराजा और महर्षि को अपनी पूर्ण सहमति दे दी थी। सचमुच यह एक स्वर्णिम अवसर था जिसे भुनाकर इतिहास की धारा को स्वर्णिम मोड़ दिया जा सकता था।
बताया जाता है कि वहाँ भी पंडितों ने महाराजा को यह कहकर डरा दिया कि यदि आपने हिंदू से मुसलमान बने लोगों को फिर से हिंदू बनाया तो तुम्हारे राज्य का नाश हो जाएगा। धर्मभीरु राजा पंडितों की चेतावनी से डर गया और एक बड़ा कार्य होते होते रह गया। वहां भी सदरूद्दीन और सैफुद्दीन जैसे ऐसे कई हिंदू रहे जिन्होंने हिंदू धर्म से मुसलमान बनने के बाद अनेक हिंदुओं का नृशंसतापूर्वक वध किया, उनकी संपत्ति लूटी और उनके साथ अमानवीय अत्याचार किए।
अब चलते हैं कश्मीर की ओर । कश्मीर के केसर को बारूद में बदलने वाले भी वही मुसलमान रहे हैं जो कभी हिंदू हुआ करते थे । आज हम सब कश्मीर के अब्दुल्ला परिवार को भली प्रकार जानते हैं। यह परिवार भी मूल रूप में हिंदू ही था। राघवराम कौल एक कश्मीरी ब्राह्मण थे। जिन्हें गाय का मांस खिलाकर मुसलमान बनाया गया था। इनके पुत्र का नाम इब्राहिम था। इब्राहिम के पुत्र का नाम शेख अब्दुल्लाह था और शेख अब्दुल्ला के पुत्र का नाम फारूक अब्दुल्लाह है । इस प्रकार फारूक अब्दुल्ला के परदादा हिंदू थे। इन्हीं फारूक अब्दुल्ला के पुत्र उमर अब्दुल्ला है जो हिंदुओं को पानी पी पीकर कोसते हैं।
अब्दुल्ला परिवार का मूल हिंदू है ,पर हिंदू होने के उपरांत भी यह अपने मूल से इस प्रकार का बर्ताव करते हैं जैसे युग युगों से इनके पूर्वज मुसलमान चले आए हों और इनका इन हिंदुओं से कोई किसी प्रकार का संबंध ना रहा हो। इन्होंने अपने शासनकाल में हिंदुओं का उत्पीड़न और शोषण करने में किसी प्रकार की कमी नहीं छोड़ी। धारा 370 की आड़ में देश के खजाने को लूटने की भी कई प्रकार की योजनाओं पर काम किया और केंद्र सरकार से मोटी रकम ले-लेकर अपनी तिजोरियाँ भरीं। सियासत को तिजारत में बदलने का हुनर यदि किसी से सीखा जा सकता है तो इसी अब्दुल्ला परिवार से सीखा जा सकता है।
क्रांतिवीर सावरकर चितपावन ब्राह्मण थे । जिन्होंने देश की आजादी के लिए अप्रतिम कार्य किया । इसी चितपावन ब्राह्मण शाखा में तुलसीराम नाम के भी एक ब्राह्मण हुए। तुलसीराम ने उस समय टीपू सुल्तान के अत्याचारों से बचने के लिए इस्लाम स्वीकार कर लिया था। उनका यह निर्णय देश के लिए कितना घातक सिद्ध हुआ ? – उसे आज के ओवैसी परिवार की हिंदू विरोधी मानसिकता को समझ कर भली प्रकार समझा जा सकता है। तुलसीराम ने अपने गांव ओवैस के नाम पर ही अपना उपनाम ओवैसी रखा। तुलसीराम के पुत्र का नाम अब्दुल वाहिद ओवैसी था ! इसी अब्दुल वाहिद ओवैसी के पुत्र सुल्तान ओवैसी, सुल्तान ओवैसी के पुत्र सलाहुद्दीन ओवैसी और सलाहुद्दीन ओवैसी के पुत्र असदुद्दीन ओवैसी और अकबरुद्दीन ओवैसी हैं।
इन दोनों भाइयों के भड़काऊ भाषण हम अक्सर सुनते रहते हैं। ये दोनों भाई उसी गंगा जमुनी संस्कृति के पोषक हैं जो हिंदू विरोध और मुस्लिमों को अधिक से अधिक सुविधाएं देने की वकालत करती देखी जाती है। यह जिस चितपावन ब्राह्मण शाखा के वंशज हैं उसी में जन्मे वीर सावरकर जी से इन्हें घोर घृणा है। इसी को घोर सांप्रदायिकता कहा जाता है।
हिंदुओं के नरसंहार के लिए 15 मिनट का समय बार-बार मांगने के अभ्यासी ओवैसी बंधु देश में इस्लामिक कट्टरता को बढ़ावा देने का सबसे बड़ा काम कर रहे हैं।
मुहम्मद अली जिन्ना पाकिस्तान बनाने का सबसे बड़ा नाम है। इस व्यक्ति ने भी अपने मूल धर्म अर्थात हिंदू के साथ घोर अन्याय और अत्याचार करने में किसी प्रकार की कमी नहीं छोड़ी । अलग देश मांगने की जिद करने वाला जिन्नाह भी दो पीढ़ी पहले हिन्दू ही था। इनके पिता का नाम पुंजालाल ठक्कर था । बचपन में इन्होंने निश्चित रूप से अपने घर में हिंदू संस्कार, रीति रिवाज और तीज त्यौहार मनते देखे होंगे। पर जब मुसलमान मजहब में चले गए तो मजहबपरस्ती सिर पर चढ़कर नाच दिखाने लगी। मजहबपरस्ती का भूत इतना चढ़ा कि जिस देश को इनके पूर्वज अपना कह कर उसके प्रति प्यार दिखाते रहे थे उसी को तोड़ने पर उतारू हो गए और एक अलग देश लेने में सफल भी हो गए।
इसलिए हमें यह समझ लेना चाहिए कि जब कोई व्यक्ति हिंदू से मुसलमान बनता है तो उसके ऐसा करने से न केवल आपकी एक संख्या कम होती है बल्कि वह आपका एक शत्रु ही पैदा होता है। जो आगे चलकर आपके लिए कितना भयंकर हो सकता है, यह कुछ नहीं कहा जा सकता। ऐसे में हिंदू समाज को अपनी एकता का परिचय देते हुए इस बात पर गंभीर चिंतन करना चाहिए कि कोई भी व्यक्ति हमारा हाथ और साथ छोड़कर ना जाए । समाज में बराबरी के अधिकार देते हुए सबके विकास और उन्नति के लिए सामूहिक प्रयास करने चाहिए। देश की सरकारों को धर्मांतरण पर पूर्ण प्रतिबंध लगाना चाहिए। इसी से देश की वैदिक संस्कृति की रक्षा होना संभव है । इसके अतिरिक्त जो लोग अपने मूल धर्म में आज भी लौटना चाहते हैं उन्हें सहर्ष इस कार्य के लिए अनुमति प्रदान की जाए।
देश के संविधान को संविधान के अनुसार चलाने में हमें कोई आपत्ति नहीं , सभी नागरिकों को समान रूप से अधिकार भी उपलब्ध हों- इसमें भी कोई आपत्ति नहीं । मुसलमान आधुनिक शिक्षा लेते हुए अपना सर्वांगीण विकास करें – ऐसी सुविधाएं भी उन्हें मिलनी चाहिए , इस पर भी हमारी सहमति है। परंतु आपत्ति केवल एक है कि हिंदू की संख्या कम कर करके उसे उसी के लोगों से कटवाने मरवाने की मध्यकालीन इतिहास की पैशाचिक प्रवृत्ति को अब पूर्णतया प्रतिबंधित किया जाना चाहिए।
डॉ राकेश कुमार आर्य
संपादक : उगता भारत
मुख्य संपादक, उगता भारत