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भगत सिंह ना केवल एक महान देशभक्त , क्रांतिकारी थे अपितु वह बुद्धिमता की खान भी थे| बचपन से ही वे पुस्तकों में खोए रहते थे लाला लाजपत राय द्वारा स्थापित किया गया पुस्तकालय द्वारकादास लाइब्रेरी जैसे उनका घर बन गया था| उनके साथी बताते थे कि किस तरह हर समय उनके कुर्ते की जेब में किताबें भरी रहती थी बगैर पुस्तकों के रहना उन्हें किसी गुनाह की तरह लगता था | पढ़ने के लिए उनका यह जुनून लाहौर जेल में भी बरकरार रहा जहां उन्होंने अपनी जिंदगी के आखिरी 2 साल बताएं | अपने जीवन के 2 4 बसंत देखने से पहले ही पहले ही शहीद हो गए |जेल में उन्होंने चार किताबें दर्जनों लेख सैकड़ों पत्र लिखे जिनमें दुर्भाग्य से कुछ ही आज उपलब्ध है |
अपने मुकदमे के दौरान उनके द्वारा अदालत में दिया गया बयान अखबार उनके मित्रों और रिश्तेदारों को लिखे गए खत इस बात की पुष्टि करते हैं की सरदार भगत सिंह की सोच कितनी विस्तृत थी उन्हें समाज सामाजिक और राजनीतिक आंदोलन के बारे में कितना गहरा धरातलीय ज्ञान था |
अपने मुकदमे की सुनवाई के दौरान उन्होंने लाहौर उच्च न्यायालय में खुलकर कहा …
“क्रांति की तलवार विचारों की सान पर ही पेनी होती है”
उस जमाने के अन्य क्रांतिकारी साहित्यकार भगत सिंह से अपनी पुस्तकों की भूमिका लिखने के लिए अनुरोध करते थे |
भगत सिंह ने एक बार कहा था..
” इस लोक या परलोक में कोई पुरस्कार पाने की इच्छा के बिना बिल्कुल अनासक्त भाव से मैंने अपना जीवन आजादी के उद्देश्य के लिए अर्पित किया है क्योंकि मैं ऐसा किए बिना नहीं रह सका..!”
जेल में लिखे अपने दूसरे लेख में उन्होंने कहा था कि…
” अंग्रेजों का शासन यहां इसलिए नहीं है कि ईश्वर की इच्छा है बल्कि इसलिए कि उनके पास ताकत है और लोग उनका विरोध नहीं करते वह अंग्रेज ईश्वर की सहायता से नहीं बल्कि बंदूक बंब गोलियों पुलिस और फौज हमारी उदासीनता से हमें गुलाम बनाए हुए हैं ”
सचमुच धन्य है वह मां जिसकी कोख से भगत सिंह जैसा क्रांतिकारी विचारक अमर बलिदानी जन्मा 23वर्ष की छोटी सी उम्र में दुनिया के समाजवादी विचारको, क्रांतिकारियों, राजनेताओं को अचंभित कर गया |
*आर्य सागर खारी*✒✒✒