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आखिर ‘द कश्मीर फाइल्स’ पर इतना हंगामा क्यों हो रहा है ?-

इंजीनियर श्याम सुन्दर पोद्दार, महामन्त्री, वीर सावरकर फ़ाउंडेशन                    ———————————————

   भारत की तत्कालीन राजनीति में कूदते ही गांधी की दोगली नीतियों ने अपना रंग दिखाना आरंभ कर दिया था। उनके दोगलेपन के कारण ही अंग्रेजों ने उन्हें आगे बढ़ाना आरंभ किया। उनकी नीतियों का यह दोगलापन धर्मनिरपेक्षता के रूप में भारत की राजनीति में पिछले 100 वर्ष से देखा जा रहा है। गांधी ने अपनी राजनीति की शुरुआत स्वतंत्रता आंदोलन के माध्यम से स्वराज्य प्राप्ति करने के लिए नहीं बल्कि मुसलमानों के अधिकारों की रक्षा करने के उद्देश्य से प्रेरित होकर खिलाफत आंदोलन के माध्यम से की थी।
गांधी जीवन भर शत्रु के किसी भी कार्य का प्रतिरोध पूरी शक्ति और क्षमता के साथ नहीं कर पाए। उनका दोगलापन और दब्बू पन उनकी नीतियों में स्पष्ट झलकता रहा। यही कारण है कि गाँधी वादी धर्म निरपेक्षता का मतलब है हिन्दुओं का उत्पीड़न, हिन्दुओं का नरसंघार,हिन्दु नारियों का बलात्कार, हिन्दु मन्दिरो की तोड़फोड़, ख़िलाफ़त आंदोलन की बिफलता से मुस्लिम राज स्थापित करने  में जब मुस्लिम समाज  विफल रहा तो सारे भारत में हिन्दु समाज पर हमला आरम्भ कर दिया। जिसका बीभत्स स्वरूप केरल के मोपला आक्रमण के रूप में देखने को मिला। १०००० से अधिक हिन्दुओं की हत्या की गई, हज़ारो हिन्दु स्त्रियाँ बलात्कार की शिकार हुईं,हज़ारों मन्दिर तोड़े गये, १ लाख से अधिक हिन्दुओं का धर्म परिवर्तन कराया गया।
  हिन्दु मुस्लिम एकता के बिना स्वाधीनता मिलना असम्भव है ऐसा कहने वाले गाँधी ने मुसलमानो द्वारा हिन्दु समाज पर किये गये इन अत्याचारों को उचित ठहराया तथा  ऐसा  करने वाले  मुसलमानो की प्रशंसा की ।
उन्होंने कोई ग़लत काम नही किया। अपने धर्म के हिसाब से जो करना चाहिये था उन्होंने वही किया। जब १९४७ में २१ लाख हिन्दुओं का पाकिस्तान में नरसंहार हुआ, उस को किसी समाचार पत्र ने जनता के सामने लाने का प्रयास किया तो उनके इस प्रकार के कार्यों को हिंदू मुसलमानों को लड़ाने वाला काम कहा गया । उन पर कठोर आर्थिक दंड लगाए गए और प्रेस सिक्योरिटी धारा के अंतर्गत कार्यवाही की गई । यदि गांधी की कांग्रेस इस प्रकार के कृत्य ना करके उस समय मुसलमानों के घृणास्पद कार्यों को लोगों के सामने आने देती तो हिंदुस्तान में रहने वाले मुसलमानों का कभी भी मनोबल नहीं बढ़ता और आज जो कुछ कश्मीर में हो रहा है वह भी नहीं होता।
   जर्मन को हम नाज़ी कह कर गाली देते है। पर नाज़ियों का गणतंत्र इतना सुन्दर है कि यहूदियों  का नरसंहार जिसे  शोहा कहा  जाता है उस पर हज़ारों पुस्तकें प्रकाशित हो गई हैं। उनकी कितनी ही लाइब्रेरीज इन पुस्तकों से भरी हुई हैं।  इस पर दर्जनों फिल्में भी जारी की गई हैं। पर हिन्दुओं पर हुवे इस अत्याचारो पर लिखना भारत में मुस्लिम समाज से हिन्दु समाज को लड़ाने वाली कार्यवाही माना गया है।
   इस भय से जर्मनी की तरह लिखा नही गया। सिर्फ़ शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी ने जिन पर गुज़री उनसे बात कर एक पुस्तक गुरुचरण सिंह तालिब ने निकाली “Muslim League attack on Sikh and Hindus in Punjab 1947”.राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ ने “ज्योति जले बिन प्राण के” लेखक-मानिक चंद बाजपेयी व  श्रीधर पराड़कर, परंतु इस पुस्तक को काट छाँट कर धर्म निरपेक्षता के भय से बहुत छोटा कर दिया। भारत में पाकिस्तान में हिन्दु नरसंहार के सामने भारत में छींटपुट घटना हुई।
  उसको वामपंथियों ने भीष्म शाहनी के उपन्यास तमस् पर फ़िल्म बना कर हिन्दु समाज को दोषी ठहराने का प्रयास किया। इस प्रकार कम्युनिस्टों ने भारत की जनता के सामने सच को सच के रूप में नहीं आने दिया। जो लोग सच के पक्षधर थे उन्हें दोषी बना देने की कला वास्तव में कम्युनिस्टों से सीखी जा सकती है।
तो पाकिस्तान मानने होगा तभी देश स्वाधीन होगा मुस्लिम लीग के साथ कंधा से कंधा मिला कर लड़ने वाले कम्युनिस्ट हो या हिन्दुओं की हत्याओं को उचित ठहराने वाले गाँधीवादी कांग्रेसी हो उनको कश्मीरी फ़ाईलस के सामने आने से उनका सच सामने आने से इसका  बिरोध आरम्भ कर दिया। फ़िल्म आधा सत्य बताती है, हिन्दु मुसलमानो को लड़ाएगी, इस लिये इस पर प्रतिबन्ध लगा दिया जाय। फ़ारूख अब्दुल्ला के काले कारनामे सामने आ रहे हैं। जिन्होंने गाव से केंद्रीय सुरक्षा बलों हो हटा कर हिन्दुओं को मारने का रास्ता खोल दिया व जब कश्मीरी हिन्दु मरने लगे व पलायन करने लगे तो मुख्यमन्त्री की कुर्सी छोड़कर राज्य को अनाथ स्थिति में करके विदेश भाग गया। अब बेटा उमर जगनमोहन  पर दोष मढ़ रहा है। उमर अब्दुल्ला कहता है कि सत्य नही दिखाया गया। क्योंकि मुसलमान भी मारे गये थे।जबकि सच्चाई यह है राज्य से एक भी मुसलमान भगाया नही गया। ५ लाख हिन्दु भगाये गये। जो अभी भी ३२ वर्ष बाद भी शरणार्थी केम्प में  रह रहे है।
  गांधीवादी सोच से देश को चलाने वाले लोगों ने भारत मां को डायन कहने वालों को इस बात की छूट दी कि भारत का संविधान भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता देता है । रामचंद्र जी, कृष्ण जी, वेद, रामायण, गीता वेद आदि को काल्पनिक कहने वालों को भी इसी आधार पर छूट दी गई । इसी प्रकार ‘भारत तेरे टुकड़े होंगे’ – कहने वाले लोगों को भी यह कहकर माफ कर दिया गया कि भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता किसी को कुछ भी बोलने की छूट देती है । यदि ऐसा है तो फिर ‘द कश्मीर फाइल्स’- पर हंगामा क्यों है ? बात साफ है कि अपना पक्ष जो देश विरोध की सारी सीमाएं लांघता है , वह तो इन गांधी वादियों को और कम्युनिस्टों को अच्छा लगता है, पर द कश्मीर फाइल्स के माध्यम से जो देश को जोड़ने की कोशिश की जा रही है उस पर इन्हें हंगामा करने के सिवा कोई और रास्ता दिखाई नहीं देता।

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