सामान्यतः भारत में स्वयंसेवी, समाजसेवी, धार्मिक, औद्योगिक एवं सामाजिक संगठनों द्वारा केवल अपने क्षेत्र में किए जा रहे कार्यों को विस्तारित किए जाने का प्रयास किया जाता है परंतु यह एक सुखद आश्चर्य का विषय है कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ द्वारा देश के नागरिकों में देशप्रेम की भावना एवं सामाजिक समरसता का भाव जगाने के साथ साथ अब इस वर्ष कर्णावती में दिनांक 11 मार्च 2022 से 13 मार्च 2022 तक आयोजित अपनी अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा की बैठक में अन्य प्रस्तावों के साथ ही देश को स्वावलम्बी बनाए जाने के संदर्भ में भी एक प्रस्ताव पास किया है। हालांकि पूर्व में भी कई अवसरों पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पूज्य सर संघचालक श्री मोहन भागवत जी द्वारा देश में एक ऐसा आर्थिक मॉडल विकसित करने हेतु आग्रह किया जाता रहा है जिसके अंतर्गत ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर जोर देते हुए कुटीर एवं लघु उद्योगों का ग्रामीण इलाकों में विस्तार कर रोजगार के अधिक से अधिक अवसर निर्मित किए जा सकें। इसी कारण से अब एक स्वयंसेवी संगठन ने भी देश में रोजगार के अधिक से अधिक अवसर उपलब्ध कराए जाने की बात आर्थिक स्वावलम्बन के माध्यम से कही है।
यूं देखा जाय तो प्राचीन भारत में नागरिक बहुत प्रसन्न एवं सम्पन्न थे एवं आपसी भाईचारे के साथ ग्रामीण इलाकों में बहुत ही आराम से अपना जीवन यापन करते थे, ऐसा हमारे शास्त्रों में भी वर्णन मिलता है। प्रत्येक परिवार में गाय के रूप में पर्याप्त मात्रा में पशुधन उपलब्ध रहता था जिससे प्रत्येक परिवार की आर्थिक आवश्यकताओं की पूर्ति बहुत आसानी से हो जाती थी। गाय के गोबर एवं गौमूत्र से देसी खाद का निर्माण किया जाता था जिसे कृषि कार्यों में उपयोग किया जाता था एवं गाय के दूध को घर में उपयोग करने के बाद इससे दही, घी एवं मक्खन आदि पदार्थों का निर्माण कर इसे बाजार में बेच भी दिया जाता था। इसी प्रकार गौमूत्र से कुछ आयुर्वेदिक दवाईयों का निर्माण भी किया जाता था।
आज यदि वर्तमान परिप्रेक्ष्य में भी देखा जाय तो भारत में प्राकृतिक संसाधनों (कच्चे माल) की उपलब्धता प्रचुर मात्रा में हैं। केवल इसका दोहन करने हेतु हमें सतर्क रहने की आवश्यकता है। प्रकृतिक संसाधनों का दोहन करना है न कि शोषण। साथ ही, देश में मानव शक्ति (श्रम) भी पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध है परंतु उसके पास रोजगार के पर्याप्त अवसर उपलब्ध नहीं हैं। किसी भी कुटीर अथवा लघु उद्योग को स्थापित करने के लिए मुख्य रूप से कच्चे माल एवं श्रम की आवश्यकता ही रहती है और ये दोनों ही तत्व भारत में प्रचुर मात्रा में उपलब्ध हैं केवल आवश्यकता है इन दोनों तत्वों को आपस में जोड़ने के लिए एक ऐसा माहौल बनाने की जिसके अंतर्गत भारतीय आगे बढ़कर ग्रामीण इलाकों में कुटीर उद्योगों की स्थापना करें एवं इन्हीं इलाकों में रोजगार के अवसर भी निर्मित करें एवं इन इलाकों के निवासियों का शहरों की ओर पलायन रोकें। इसी संदर्भ में स्वावलम्बी सम्बंधी प्रस्ताव में यह कहा गया है कि – “प्राकृतिक संसाधनों की प्रचुरता, मानवशक्ति की विपुलता और अंतर्निहित उद्यमकौशल के चलते भारत अपने कृषि, विनिर्माण, और सेवा क्षेत्रों को परिवर्तित करते हुए कार्य के पर्याप्त अवसर उत्पन्न कर अर्थव्यवस्था को उच्च स्तर पर ले जाने की क्षमता रखता है।”
राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ का स्पष्ट मत है कि मानव केंद्रित, पर्यावरण के अनुकूल, श्रम प्रधान तथा विकेंद्रीकरण एवं लाभांश का न्यायसंगत वितरण करने वाले भारतीय आर्थिक प्रतिमान (मॉडल) को महत्त्व दिया जाना चाहिए, जो ग्रामीण अर्थव्यवस्था, सूक्ष्म उद्योग, लघु उद्योग और कृषि आधारित उद्योगों को संवर्धित करता है। ग्रामीण रोजगार, असंगठित क्षेत्र एवं महिलाओं के रोजगार और अर्थव्यवस्था में उनकी समग्र भागीदारी जैसे क्षेत्रों को बढ़ावा देना चाहिए। देश की सामाजिक परिस्थितियों के अनुरूप नई तकनीकी तथा सॉफ्ट स्किल्स को अंगीकार करने के गम्भीर प्रयास भी किए जाने चाहिए।
देश में कोरोना महामारी के दौर में जिस प्रकार विभिन्न स्वयंसेवी संगठनों, समाजसेवी संगठनों, धार्मिक संगठनों, औद्योगिक संगठनों एवं सामाजिक संगठनों ने समाज के गरीब वर्ग की मदद करने में आपस में मिलकर कार्य किया था उसी प्रकार अब भारत को स्वावलम्बी बनाने के लिए भी इन सभी संगठनों को आगे आकर कार्य करने की अपेक्षा संघ द्वारा की जा रही है। प्रस्ताव में भी इस बात पर जोर देते हुए यह कहा भी गया है कि देश के प्रत्येक भाग में उपर्युक्त दिशा पर आधारित रोजगार सृजन के अनेक सफल उदाहरण उपलब्ध हैं। इन प्रयासों में स्थानीय विशेषताओं, प्रतिभाओं और आवश्यकताओं को भी ध्यान में रखा गया है। ऐसे अनेक स्थानों पर उद्यमियों, व्यवसायियों, सूक्ष्म वित्त संस्थानों, स्वयं सहायता समूहों और स्वैच्छिक संगठनों ने मूल्य-वर्धित उत्पादों, सहकारिता, स्थानीय उत्पादों के प्रत्यक्ष विपणन और कौशल विकास आदि के क्षेत्रों में प्रयास प्रारंभ किए हैं। इन प्रयासों ने हस्तशिल्प, खाद्य प्रसंस्करण, घरेलू उत्पादों तथा पारिवारिक उद्यमों जैसे व्यवसायों को बढ़ावा दिया है| उन सभी अनुभवों को परस्पर साझा करते हुए जहां आवश्यकता है वहां, उन्हें दोहराने के बारे में विचार किया जा सकता है। कुछ शैक्षिक व औद्योगिक संस्थानों ने रोजगार सृजन के कार्य में उल्लेखनीय योगदान दिया है। इन प्रयासों की सराहना करते हुए इन्हें और आगे बढ़ाने का आग्रह भी संघ द्वारा किया गया है। इससे समाज में ‘स्वदेशी और स्वावलम्बन’ की भावना उत्पन्न करने के प्रयासों से उपर्युक्त पहलों को प्रोत्साहन मिलेगा।
रोजगार के अधिक से अधिक अवसर निर्मित करने के लिए न केवल ग्रामीण इलाकों में कुटीर एवं लघु उद्योगों की स्थापना करनी होगी बल्कि आज भारत वैश्विक स्तर पर भी कई क्षेत्रों में अपनी विशेष पहचान स्थापित कर चुका है। इन क्षेत्रों की ओर भी पर्याप्त ध्यान देने की आज जरूरत है। जैसे उच्च रोजगार क्षमता वाले देश के विनिर्माण क्षेत्र को सुदृढ़ करने की भी आज आवश्यकता है, जो आयात पर हमारी निर्भरता भी कम कर सकता है। शिक्षा और परामर्श द्वारा समाज, विशेषकर युवाओं में उद्यमिता को प्रोत्साहन देनेवाला वातावरण देना चाहिए, ताकि वे केवल नौकरी पाने की मानसिकता से बाहर आ सकें। इसी प्रकार की उद्यमशीलता की भावना को महिलाओं, ग्रामीणों, दूरस्थ और जनजातीय क्षेत्रों में भी बढ़ावा देने की आवश्यकता है। शिक्षाविद्, उद्योग जगत के पुरोधा, सामाजिक नेतृत्व, समाज संगठन तथा विविध संस्थान इस दिशा में प्रभावी भूमिका निभा सकते हैं और उसके लिए यह आवश्यक है कि विभिन्न स्तरों पर सरकार एवं अन्य स्वयंसेवी एवं सामाजिक संगठन आपस में मिलकर प्रयास करें।
इसी प्रकार तीव्रता से बदलती आर्थिक तथा तकनीकी परिदृश्य की वैश्विक चुनौतियों का सामना करने के लिए भी हम सभी को मिलकर सामाजिक स्तर पर नवोन्मेषी पद्धतियां ढूंढने की आवश्यकता है। उभरती डिजिटल अर्थव्यवस्था एवं निर्यात की सम्भावनाओं से उत्पन्न रोजगार और उद्यमिता के अवसरों का गहन अन्वेषण भी किया जाना चाहिए| रोजगार के पूर्व और दौरान मानवशक्ति के प्रशिक्षण, अनुसन्धान तथा तकनीकी नवाचार, स्टार्ट अप और हरित तकनीकी उपक्रमों आदि के प्रोत्साहन में भी हमें सहभागी होना चाहिए।
संघ ने अपने प्रस्ताव में भारतीय अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ करते हुए धारणक्षम एवं समग्र विकास के लक्ष्य को प्राप्त करने हेतु नागरिकों से रोजगार सृजन के भारत केंद्रित प्रतिमान (मॉडल) पर काम करने का आह्वान भी किया है साथ ही समाज के सभी घटकों का भी आह्वान किया है कि विविध प्रकार के कार्य के अवसरों को बढ़ाते हुए हमारे शाश्वत मूल्यों पर आधारित एक स्वस्थ कार्य-संस्कृति को प्रस्थापित करें, जिससे भारत वैश्विक आर्थिक परिदृश्य पर पुनः अपना उचित स्थान अंकित कर सके।
लेखक भारतीय स्टेट बैंक से सेवा निवर्त उप-महाप्रबंधक हैं।