फागुन के रंग में रँग गया पूरा हिंदुस्तान
जब मन में तरंग हो, अंतस् में उल्लास हो और मधुर मिलन की व्याकुलता हो और मौसम हो फाग का तो क्या कहने! उमंग से भर-भर जाता है मन। फाग की झाग सबको अपनी ओर खींच ही लेती है। जब यह ब्रजराग ब्रजभूमि से छलाँग लगाकर हैदराबाद की धरा पर पाँव पसार ले तो कन्हैया की मुरली की मोहिनी धुन से भला कौन बच सकता है! आज ऑथर्स गिल्ड ऑफ इंडिया की ओर से आयोजित होली मिलन समारोह में ऐसा ही हुआ, जिसमें कविता, गीत, व्यंग्य और लोक-गीतों के घनेरे रंगों से समारोह इंद्रधनुषी माहौल में ढल गया। कार्यक्रम या आरंभ नरेंद्र परिहार जी ने माँ शारदे की वंदना से किया। इस अवसर पर वरिष्ठ कवयित्री डाॅ. अहिल्या मिश्रा ने जोगीरा सारा रा..रा…गाया :
मच रही धूम होली की, होली आई रे, होली आई रे…
रसिया ने मारी भर-भर पिचकारी
इंद्रधनुषी रंगों में भीगी चोली और साड़ी रे…जोगीरा सारा रा…रा…रा…
मीना गुप्ता ने ब्रज की छटा बिखेरते हुए होली का रंग घोला :
मैं होरी कैसे खेलूँ जी,जा साँवरिया के संग
कोरे-कोरे कलश मँगाए,जामे घोरा रंग
भर पिचकारी कान्हा मारी, सखियाँ रह गईं दंग।
दिल्ली से डाॅ. हरीश अरोड़ा ने गालों पर रोली लगा होली खेली :
खिली खिली सी धूप और रंगों के गूँजे राग
मद्धम मद्धम हवा चली औ’ दिल में है अनुराग
मुसकानों के रंग चढ़ें और गालों पर है रोली
टेसू, चंदन के संग यारों आओ मनाएँ होली।
होली का अवसर हो और कान्हा की बात न हो, यह तो हो ही नहीं सकता। अगर से श्रुति सिन्हा ने कान्हा के संग प्रेम की होली खेलते हुए कहा :
मेरे कान्हा ने खिलाई प्रेम सब होरी।
मैं तो होय रही सब जग से बौरी।
वहीं डाॅ. शैलबाला अग्रवाल ने ब्रजभाषा में अपनी कविता सुनाई :
नंद को छबीलो रंग रस को रसीलो कान्हा
टेसुन के रंग भरि खेले ब्रज होरी रे।
नागपुर से वरिष्ठ कवि नरेंद्र परिहार ने अपने दोहों से अनेक रंग बिखेरे। उन्होंने कहा:
बहार देख पलाश की, बाला हुई जवान,
छल-छल मादकता भारी, बहक रहे अरमान।
आगरा के ही डाॅ. यशोयश ने अपने व्यंग्य बाण छोड़ते हुए चुनावी मुक्तक सुनाया :
हमें मालूम हैं उनके क्या क्या और कहां चर्चे।
जगजाहिर महोदय के क्या-क्या और कहां खर्चे।
पूरा कर नहीं सकते तो डींगें हांकते क्यों हो,
महोदय होश में आओ न बांटो झूठ के पर्चे।
आगरा की डाॅ. मधु भारद्वाज ने होली की खुमारी का गीत गाया :
फागुन मेरी बाँहों में आ,
मादक पलाश-सा दहक गया
बंधन लाजों के टूट गए
मन बहक गया, तन दहक गया।
आगरा के वरिष्ठ गीतकार राजेंद्र मिलन ने चुनावी रचना में होली का रंग भरा। डाॅ. अशोक कुमार ज्योति ने ‘मिथिला में राम खेलै होरी, मिथिला में’…मैथिली लोकगीत सुनाया। डाॅ. शिव शंकर अवस्थी ने बुंदेली लोकगीत सुनाया।नागपुर की मीरा रायकवाड़ ने पूर्णिमा की निराली होली का गीता गाया :
निखरा है चाँद निखरी है चाँदनी
पूर्णिमा की रात की होली है निराली।
इस अवसर पर डाॅ. सुदेश भाटिया, अशोक कुमार ज्योति, संपत देवी मुरारका, आशा मिश्र मुक्ता, वी के शेखर, आदि कवियों ने अपनी रचनाओं से अनेक रंग बिखेरे। कार्यक्रम की अध्यक्षता डाॅ. सरोजनी प्रीतम ने, संचालन डाॅ. हरीश अरोड़ा एवं डाॅ. शिव शंकर अवस्थी ने और धन्यवाद ज्ञापन किया डाॅ. अहिल्या मिश्रा ने। समारोह में देशभर से सैकड़ों साहित्यकार जुड़े थे।
मुख्य संपादक, उगता भारत