कनिष्क की राष्ट्रीयता – भारतीय
(भारत में विदेशी यूनानियो और ईरानियो की सत्ता का अंत करने वाले कुषाण)
(शत्रु देश चीन को पराजित करनेवाला एक मात्र भारतीय सम्राट कनिष्क)
डॉ सुशील भाटी
हेन सांग (629-645 ई.) ने कनिष्क को जम्बूदीप का सम्राट कहा हैं| कुषाण साम्राज्य का उद्गम स्थल वाह्लीक माना जाता हैं| प्रो. बैल्ली के अनुसार प्राचीन खोटानी ग्रन्थ में वाह्लीक राज्य के शासक चन्द्र कनिष्क का उल्लेख किया गया हैं| खोटानी ग्रन्थ में लिखा हैं कि वाह्लीक राज्य स्थित तोखारिस्तान के राजसी परिवार में एक बहादुर, प्रतिभाशाली और बुद्धिमान ‘चन्द्र कनिष्क’ नामक जम्बूदीप का सम्राट हुआ| फाहियान (399-412 ई.) के अनुसार कनिष्क द्वारा निर्मित स्तूप जम्बूदीप का सबसे बड़ा स्तूप था|
वस्तुतः जम्बूदीप प्राचीन ब्राह्मण, बौद्ध एवं जैन ग्रंथो में वर्णित एक वृहत्तर भोगोलिक- सांस्कृतिक इकाई हैं तथा भारत जम्बूदीप में समाहित माना जाता रहा हैं| प्राचीन भारतीय समस्त जम्बूदीप के साथ एक भोगोलिक एवं सांस्कृतिक एकता मानते थे| आज भी हवन यज्ञ से पहले ब्राह्मण पुरोहित यजमान से संकल्प कराते समय ‘जम्बूद्वीपे भरत खण्डे भारत वर्षे’ का उच्चारण करते हैं| अतः स्पष्ट हैं कि जम्बूदीप भारतीयों के लिए उनकी पहचान का मसला हैं तथा भारतीय जम्बूदीप से अपने को पहचानते रहे है| प्राचीन ग्रंथो के अनुसार जम्बूदीप के मध्य में सुमेरु पर्वत हैं जोकि इलावृत वर्ष के मध्य में स्थित हैं| इलावृत के दक्षिण में कैलाश पर्वत के पास भारत वर्ष, उत्तर में रम्यक वर्ष, हिरण्यमय वर्ष तथा उत्तर कुरु वर्ष, पश्चिम में केतुमाल तथा पूर्व में हरि वर्ष हैं| भद्राश्व वर्ष और किम्पुरुष वर्ष अन्य वर्ष हैं| यह स्पष्ट हैं कि कनिष्क के साम्राज्य के अंतर्गत आने वाले मध्य एशिया के तत्कालीन बैक्ट्रिया (वाहलिक, बल्ख) क्षेत्र, यारकंद, खोटन एवं कश्गर क्षेत्र, आधुनिक अफ़गानिस्तान, पाकिस्तान और उत्तर भारत के क्षेत्र जम्बूदीप का हिस्सा थे| इतिहासकार जम्बूदीप स्थित ‘उत्तर कुरु वर्ष’ की पहचान तारीम घाटी क्षेत्र से करते हैं, जहाँ से यूची कुषाणों की आरंभिक उपस्थिति और इतिहास की जानकारी हमें प्राप्त होती हैं| अतः कुषाण आरम्भ से ही जम्बूदीप के निवासी थे| इसी कारण से कुषाणों को हमेशा भारतीय समाज का हिस्सा माना गया तथा प्राचीन भारतीय ग्रंथो में कुषाण और हूणों को (व्रात्य) क्षत्रिय कहा गया हैं|
प्राचीन भारतीय ग्रंथो के अनुसार उत्तर कुरु वर्ष (यूची कुषाणों के आदि क्षेत्र) में वराह की पूजा होती थी| यह उल्लेखनीय हैं कि गुर्जर प्रतिहार शासक (725-1018 ई.) भी वराह के उपासक थे तथा कुषाणों की पहचान आधुनिक गुर्जरों से की गई हैं|
कुछ ऐतिहासिक स्त्रोतों में कनिष्क गांधार का राजा कहा गया हैं| गांधार आधुनिक पेशावर और स्वात घाटी का क्षेत्र हैं| गांधार भारत की एक भोगोलिक प्रांतीय इकाई रहा हैं| महाभारत ग्रन्थ में धृतराष्ट्र की पत्नी गांधार की राजकुमारी थी तथा गांधारी कहलाती थी|
सातवी शताब्दी में गुर्जर देश की राजधानी रहे भीनमाल में प्रचलित मान्यताओ के अनुसार कनिष्क कश्मीर का शासक था| इतिहासकार ए. एम. टी. जैक्सन ने ‘बॉम्बे गजेटियर’ में भीनमाल का इतिहास विस्तार से लिखा हैं| जिसमे उन्होंने भीनमाल में प्रचलित ऐसी अनेक लोक परम्पराओ और मिथको का वर्णन किया है जिनसे गुर्जरों की राजधानी भीनमाल को आबाद करने में, कुषाण सम्राट कनिष्क की अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका का पता चलता हैं| ऐसे ही एक मिथक के अनुसार भीनमाल में सूर्य देवता के प्रसिद्ध जगस्वामी मन्दिर का निर्माण काश्मीर के राजा कनक (सम्राट कनिष्क) ने कराया था। भीनमाल में प्रचलित मौखिक परम्परा के अनुसार राजा कनक (कनिष्क) ने वहाँ ‘करडा’ नामक झील का निर्माण भी कराया था। भीनमाल से सात कोस पूर्व में कनकावती नामक नगर बसाने का श्रेय भी कनक (कनिष्क) को दिया जाता है। ऐसी मान्यता हैं कि भीनमाल के देवड़ा गोत्र के लोग, श्रीमाली ब्राहमण तथा भीनमाल से जाकर गुजरात में बसे, ओसवाल बनिए राजा कनक (कनिष्क) के साथ ही काश्मीर से भीनमाल आए थे। राजस्थान में गुर्जर ‘लौर’ और ‘खारी’ नामक दो अंतर्विवाही समूहों में विभाजित हैं| केम्पबेल के अनुसार मारवाड के लौर गुर्जरों में मान्यता हैं कि वो राजा कनक (कनिष्क कुषाण) के साथ लोह्कोट से आये थे तथा लोह्कोट से आने के कारण लौर कहलाये|
कनिष्क ने रबाटक अभिलेख में कनिष्क के साम्राज्य को वर्णन करते वक्त केवल एक ही देश भारत (इंडिया) का नाम-सन्दर्भ लिया गया हैं| रबाटक अभिलेख में कनिष्क के साम्राज्य अंतर्गत उज्जैन, साकेत, कोसम्बी, चंपा की उल्लेख किया गया हैं| यह कनिष्क के राष्ट्रीय सरोकार को प्रदर्शित करता हैं| रबाटक अभिलेख में चीन और ईरान का ज़िक्र तक नहीं किया गया हैं| पुरुषपुर (आधुनिक पेशावर) उसकी मुख्य राजधानी थी| मथुरा, तक्षशिला और कपिशा उसकी अन्य राजधानिया थी| ये सभी नगर भारतीय उपमहादीप में स्थित हैं| अतः कनिष्क की भोगोलिक चेतना पूर्णतय भारतीय हैं|
अतः यह स्पष्ट हैं कि कनिष्क सभी ऐतिहासिक संदर्भो में एक भारतीय सम्राट हैं|
कुषाण और चीन- ज़म्बूदीप के उत्तर कुरुवर्ष स्थित तारिम घाटी के निवासी यूची (कुषाण) कबीलों को चीन अपना शत्रु मानता था| वह उनके निवास स्थल तारिम घाटी को भी चीन का हिस्सा नहीं मानता था| यूची भारोपीय आर्य भाषी नोर्डिक (आर्य) नस्ल के, पतली-खडी नाक वाले, लम्बे गोरी नस्ल के लोग थे| ज़बकि चीनी मंगोली नस्ल और भाषा समूह से सम्बन्धित थे| यूची (कुषाण) चीन पर छापामार हमले करते रहते थे| अतः यूचीयो और हिंगनू कबीलों से चीन की रक्षा के लिए वहाँ के राजा शी हांग ती ने चीन की सीमा पर एक विशाल दीवार का निर्माण करवाया था| यूचीयो का निवास तारिम घाटी चीन की सीमा रेखा विशाल दीवार के परे पश्चिम में था| अतः खुद चीन भी तारिम घाटी को अपना हिस्सा नहीं मानता था, तथा वहाँ के निवासी यूचियो को अपना परम शत्रु मानता था|
कनिष्क के चीन से कटु सम्बन्ध थे| कनिष्क ने चीन के सम्राट की पुत्री से विवाह का प्रस्ताव रखा| परन्तु चीन के सेनापति पान चाओ ने इस चीन के सम्राट की प्रतिष्ठा के विरुद्ध समझा| फलस्वरूप दोनों में युद्ध हुआ, जिसमे कनिष्क की विजय हुई, कनिष्क यारकंद, खोतान और काशगर अपने साम्राज्य में मिला लिये| चीन के सम्राट को संधि करने के लिए विवश कर दिया तथा दो चीनी राजकुमारों को अगवा कर लिया और अपने दरबार में बंधक रखा| हेन सांग ने खुद कपिशा में उस महल को देखा था, ज़हाँ चीनी राजकुमारों को नज़रबंद कर रखा गया था| हेन सांग कनिष्क का राज्य मध्य एशिया के सुंग लिंग पर्वत तक मानता हैं|
कुषाण और ईरान- भारतीय उपमहाद्वीप के वाह्लीक राज्य के हिन्दुकुश क्षेत्र से जिस प्रकार कुषाणों ने यूनानियो की सत्ता का अंत किया था उसी प्रकार उन्होंने कपिशा तथा गांधार क्षेत्र से ईरानी पह्लवो को पराजित कर उन्हें उखाड़ फेका था| अतः प्राचीन भारत में विदेशी यूनानियो और ईरानी पहलवो की सत्ता का अंत करने का श्रेय कुषाणों को जाता हैं| प्राचीन ईरान के लोग असुर (अहुर) की उपासना करते थे तथा बुरी पराप्राकृतिक शक्तियों को देव कहते थे| ईरानियो के उलट कुषाण देव पूजा करते थे, वे अपने पूर्वजों को देव अथवा देवता कहते थे| कुषाण सम्राट विम तक्तु ने मथुरा में अपने पूर्वजों के लिए देवकुल की स्थापना की थी| कनिष्क और अन्य कुषाण सम्राट देवपुत्र उपाधी धारण करते थे| अतः देवपुत्र कुषाणों ने केवल अपने शत्रु ईरानी पहलवो की सत्ता का भारत में अंत किया बल्कि उन्होंने ईरान में नकारात्मक भाव से देखो जाने वाले देवो की उपासना को प्रोत्साहित किया| अधिकांश कुषाण सम्राट देवो के देव कहे जाने वाले महादेव ‘महेश’ शिव के उपासक थे| कुषाण सम्राट विम कड़फिसेस स्वयं को ‘परम माहेश्वर’ अर्थात ‘शिव का अनन्य भक्त’ कहता था| आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि भगवान शिव का ऐसा प्राचीनतम मंदिर जो वर्तमान में भी अस्तित्व में हैं, सम्राट कनिष्क ने बनवाया था, जोकि अफगानिस्तान के सुर्ख कोटल, बगलान क्षेत्र में स्थित हैं|
अतः उपरोक्त सभी ऐतिहासिक स्त्रोतों से स्पष्ट हैं कि कुषाण और उनका नेता कनिष्क भारतीय थे तथा उन्हें भारत को यूनानियो और ईरानियो के विदेशी शासन से मुक्त कराने का श्रेय जाता हैं| कनिष्क एक मात्र भारतीय सम्राट जिसने चीन को पराजित किया था|
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