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महत्वपूर्ण लेख

इतिहास के नाम पर विवेकहीनता का प्रसार-भाग दो

गतांक से आगे….

प्रो. राजेन्द्र सिंह

बेटे! मुल्क हिंदुस्तान में मुख्तलिफ मजाहब है। अल्लाह का शुक्र है कि उसने हमें मुल्क की बादशाहत दी। हर कौम के मंदिरों और बाबूदगाहों को जो हुकुमत के तहत है, नुकसान न पहुंचाओ। इन शब्दों को बार-बार उद्धृत करके माक्र्सवादी विचारक यह सिद्घ करना चाहते हैं कि बाबर एक नेक और उदार बादशाह था, मंदिरों का विध्वंसक नही।

बाबर की दैनिकी (तुजक-ए-बाबरी, बाबरनामा) की अनुवादिका श्रीमती ए.एस. बेवरीज ने इस पत्र में पाये गये अनेक दोषों के आधार पर इसको जाली सिद्घ किया है। यह जाली पत्र जमादुल अव्वल, 933 हिजरी को लिखित बताया गया है। बाबरनामा के अनुसार इस तिथि के उपरांत भी बाबर न केवल मूर्तियों को तोडऩे का संकलप करता है वरन उन्हें तुड़वाता भी है। इस्लामी शरीअत के अनुसार अल्लाह कुरान और पैगंबर मुहम्मद पर ईमान लाने वाले व्यक्ति को मोमिन अथवा मुसलमान कहते हैं। और जो ऐसा नही करता वह काफिर है। मोमिनों द्वारा काफिरों के विरूद्घ किये गये युद्घ का नाम जिहाद है। इसमें भाग लेने वाला मोमिन मुजाहिद कहलाता है। जिहाद में मरन्ने वाला मुजाहिद शहीद माना गया है और जो काफिरों को मार डालता है उसे गाजी कहते हैं। इस इस्लामी शरीअत के अनुसार मुजाहिद बाबर ने राजपूत शूरवीर महाराणा संग्राम सिंह (राणा संगा) के विरूद्घ जिहाद छेड़ दिया जिसमें  उसकी करारी हार हुई। बयाना में हुई इस हार का बदला लेने के लिए वह बड़ी तैयारी में जुट गया। उसने और उसके इस्लामी लश्कर ने शराब  पीनी छोड़ दी। बाबर अपनी जीवनी में लिखता है कि उन सबने शराब के उन बरतनों को उसी प्रकार टुकड़े टुकड़े कर दिया जैसे कि यदि अल्लाह ने चाहा तो मूर्तिपूजकों की मूर्तियों को टुकड़े-टुकड़े कर दिया जाएगा। बाबर का यह संकल्प ऊपर चर्चित जाली पत्र में सर्वथा विरूद्घ है।

उपरोक्त संकल्प के उपरांत बाबर ने राणा सांगा के विरूद्घ पुन: जिहाद छेड़ दिया। इस बार उसे विजय प्राप्त हुई। इस अवसर पर शैख जैन ने उसकी स्तुति में फतहनामा रचा जिसमें अल्लाह को मूर्तियों को जड़ समेत नष्टï करने वाला बताया गया है। बाबर ने इस फतहनामा की बहुत प्रशंसा की है। यह प्रशंसा उसकी मूर्तिभंजक मनोवृत्ति का स्पष्टï परिचय देती है। वह लिखता है कि अल्लाह का शुक्र है कि मैं गाजी बन गया। जिस तोप ने सबसे अधिक काफिर मार गिराये थे, उसका नाम भी गाजी पडा क्योंकि जिहाद में जो काफिर को मारे वह गाजी होता है।

गाजी बाबर ने फिर चंदेरी की ओर बढऩे की इच्छा की। वह लिखता है मैंने 934 हिजरी में चंदेरी पर चढ़ाई की और अल्लाह की मौज, कुछ ही घडिय़ों में राणा सांगा के बड़े भरोसे के नौकर मेदनीराव के चार पांच हजार काफिरों से शहर छीन लिया और उन्हें तलवार के घाट उतारकर बरसों के दारूल हर्ब को दारूल इस्लाम बना दिया। सुप्रसिद्घ इतिहासकार प्रो. श्रीराम शर्मा ने तारीख ए बाबरी के आधार पर प्रमाणित किया है कि चंदेरी को अपने अधीन करके बाबर के सदर शैख जैन ने बहुत से मंदिरों को भूमिसात कर डाला था। दारूल इस्लाम में भला मंदिरों का क्या काम था। 935 हिजरी में गाजी बाबर ग्वालियर की उरवा घाटी में जा उतरा। वह लिखता है उरवा के तीन ओर बदरंग लाल पत्थर का पहाड़ है। उसमें तीनों ओर बहुत  से छोटे बड़े बुत कटे हैं। दक्खिन का एक बड़ा युत कोई बीस कारी का है। सभी बुत चम नंगे बने हैं। उरवा की दोनों झीलों के बीच बीस तीस कुएं हैं। उनके पानी से साग भाजी, फूल पत्ते और पेड़-पौधे उगाते हैं। उरवा बंद सही, पर दिलचस्व जगह है। खोट बस वही बुत है। मैंने उन्हें तुड़वा दिया।

स्वयं बाबर वर्णित इन घटनाओं से पंडित नेहरू के भावुक विचारों तथा उनके समर्थक माक्र्सवादी विचारकों और उनके द्वारा बहुप्रचारित पत्र की सारी पोल खुल जाती है। इन बातों से स्पष्टï हो जाता है कि माक्र्सवादी विचारक नितांत झूठी और खोखली बातों का आश्रय लेकर मनोकल्पित इतिहास लिखने में लगे हुए हैं। इतिहास के नाम पर की गयी उनकी मनोकल्पना मुसलमान आक्रांता शासकों की चापलूसी करना ही सिखाती है। वरिक् पत्रकार लेखक प्रभाष जोशी अपने हे राम शीर्षक लेख में पाठकों को कर्मफल सिद्घांत समझाते हुए लिखते हैं और फिर क्या कृष्ण और राम ने छल, कपट और धोखाधड़ी से काम नही निकाला था?

क्रमश:

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