गतांक से आगे….
निश्चय बुद्घिमान का,
और देवों का संकल्प।
विद्वानों की नम्रता,
इनका नही विकल्प ।। 667।।
धृति क्षमा सत दान को,
भूलकै भी मत त्याग।
पुरूषार्थ को मिलै सफलता,
जाग सके तो जाग ।। 668।।
आज्ञाकारी पुत्र हो,
प्रियवादिनी नार।
सेहत विद्या लक्ष्मी,
से प्रिय लगै संसार ।। 669।।
अर्थात वश में रहने वाला पुत्र हो, मीठा बोलने वाली पत्नी हो, स्वस्थ शरीर हो, आजीविका देने वाली विद्या हो और घर में लक्ष्मी का वास हो तो यह संसार प्रिय लगता है, अन्यथा यह संसार दु:खों का घर दिखाई देता है।
प्रज्ञा श्रुत दम कुलीनता,
पराक्रम और दे दान।
मितभाषी कृतज्ञता,
से व्यक्ति बनै महान ।। 670।।
प्रज्ञा-प्रखर बुद्घि, श्रुत-अध्ययन, विद्या दम जितेन्द्रियत्व, कुलीनता मर्यादा को रक्षित रखने की भावना, पराक्रम कौशल दक्षता, दान यथाशक्ति दान देना मितभाषी-आवश्यकता से अधिक न बोलना, कृतज्ञता किये हुए उपकार को मानना, उसे आदर देना। ये ऐसे गुण हैं जो व्यक्ति की आत्मा को ऊंचा उठाते हैं, उसे महान बनाते हैं।
कामी क्रोधी मद्यपी,
भूखा रोगी इंसान।
ये नही धर्म को जानते,
सदा रहो सावधान ।। 671।।
दु:ख में न खोवै धैर्य,
सुख में नही इतराय।
शांत मन से निर्णय करै,
शत्रु पर विजय पाय ।। 672।।
चोरी दम्भ पिशुनता,
पापियों से रहे दूर।
मद्यपान करता नही,
सदा सुखों से भरपूर ।। 673।।
दम्भ :-अर्थात मान बड़ाई, पूजा ख्याति आदि प्राप्त करने के लिए अपनी वैसी स्थिति न होने पर भी वैसी स्थिति दिखाने का नाम दम्भ है।
पिशुनता :-अर्थात छिद्रान्वेषण करना, मीन-मेख निकालना।
अलग लाभ के कारणै,
कभी करता नही विवाद।
ऐसे सौम्य स्वभाव को,
सब करते हैं याद ।। 674।।
जीवन में कभी भूल कै,
मत करना अभिमान।
किंतु इतना ध्यान रख,
गिरे न स्वाभिमान ।। 675।।
देख पराई पीड़ को,
चित जिसका कुम्हलाय।
प्रसन्नता से दान दे,
तो श्रेष्ठ पुरूष कहलाय ।। 676।।
परावरज्ञ को सर्वदा,
मिलता है स्वामी भाव।
सबका हृदय जीत ले,
उसका मधुर स्वभाव ।। 677।।
परावरज्ञ अर्थात जो पुरूष विभिन्न देशों के व्यवहारों भाषाओं को और जातियों के धर्मो को जानता है, वह परावरज्ञ कहलाता है अथवा उसे बहुज्ञानी भी कहते हैं।
प्रजाशोषक राजा हो,
तो शक्ति से करो विरोध।
किंतु इतना ध्यान रख,
खो मत देना बोध ।। 678।।
क्रमश: