_वासन्तीय नवसस्येष्टि होलकोत्सव की आपको और आपके परिवार को हार्दिक शुभकामनाएँ
*तिनको की अग्नि में भूने हुए अधपके फली युक्त फसल को होलक(होला) कहते हैं।* अर्थात् जिन पर छिलका होता है जैसे हरे चने आदि। कईयों के मत मे रवि की फसल में आने वाले सभी प्रकार के अन्न को होला कहते है। “वासन्तीय नवसस्येष्टि होलकोत्सव” वसन्त ऋतु में आई हुई रवि की नवागत फसल को होम हवन मे डालकर फिर श्रद्धापूर्वक ग्रहण करने का नाम होली है। *यह पर्व प्राकृतिक है,ऐतिहासिक नही। और बाद में होला से ही होली बना है।* प्रहल्लाद वाला दृष्टान्त कपोल कल्पित एवं निराधार है। इस दृष्टांत को होली पर्व से जोड़ना मूर्खता के सिवाय और कुछ नहीं है। इस दृष्टांत को इस प्रकार समझा जा सकता है। जो हरा चना होता है उस पर जो छिल्का होता है उसे होलीका कहते हैं। वह तो जल जाता है परंतु अंदर में जो प्रह्लाद (अन्न,चना) होता है वह नहीं जलता। *बस इसी से होलीका और प्रहलाद वाली काल्पनिक कहानी को इतिहास के साथ जोड़कर बता दिया गया। छिल्का जल जाता है किंतु चना सुरक्षित रहता है।* दूसरी बात कोई भी व्यक्ति कितना भी तपस्वी ईश्वर भक्त क्यों न हो अग्नि में बैठेगा तो वह जल जाएगा क्योंकि अग्नि का काम जलाना है वह किसी का तप निष्ठा धर्म नहीं पूछती। और यदि होलिका प्रहलाद को गोद में लेकर अग्नि में बैठी थी तो दोनों जलने चाहिए परंतु ऐसा नहीं हुआ। इस दृष्टांत को होली के साथ जोड़ने से कोई फायदा नहीं है। होली एक प्राकृतिक पर्व है। भोगोलिक पर्व है।
*होली का वास्तविक अर्थ और उसका स्वरुप वसन्त ऋतु में रवि फसल के रुप में जो अन्न हमारे घर में आता है। उसको हवन में आहुति देकर ग्रहण करना है।* क्योंकि भारतीय संस्कृति दान देकर, बांट कर खाने में विश्वास करती है। वेद में कहा है – “केवलाघो भवति केवलादी” अर्थात अकेला खानेवाला पापी होता है। इसलिए प्रसन्नतापूर्वक बांट कर खाना चाहिए। दूसरी बात यह है कि होली के दूसरे दिन जो रंग खेलने की प्रथा है वह भी एक प्राकृतिक उत्सव है। आपस में मेल जोल बढ़ाना, एक दूसरे का सम्मान करना, एक दूसरे के साथ प्रेम करना, *_साल भर में किसी के साथ मनमुटाव हो गया हो, झगड़ा हो गया हो तो उसको भूलकर एक दूसरे को प्रकृति के उपहार स्वरुप प्रदत्त वसंत ऋतु में आए हुए नए फूलों का चूर्ण करके उसका रंग बनाकर सभ्यता से प्रसन्नता पूर्वक बिना किसी को परेशान किए लगाना और सम्मान करना चाहिए।_* यह कार्य भी प्रेम पूर्वक करना चाहिए। जिससे कोई व्यक्ति दुखी ना हो आपके रंग लगाने से परेशान ना हो इसका खयाल रखना चाहिए। ये दोनों ही पर्व प्राकृतिक एवं आयुर्वेद के अनुकूल है। वसंत ऋतु में आयुर्वेद के अनुसार वात पित्त कफ आदि दोषों को सम रखने के लिए होलक को भून कर खाना चाहिए और पलाश आदि फूलों को रात्रि में पानी में डूबा कर उससे स्नान करना चाहिए। तो इस प्रकार भारतीय संस्कृति में होली का व्यक्तित्व, शारीरिक सामाजिक, राष्ट्रीय, तथा भूगोलिक दृष्टि से और वैश्विक दृष्टि से भी इसका महत्व है। *बड़े प्रेम से अपने-अपने घरों में सामाजिक संस्थानों में होली के दिन हवन करें प्रीति सम्मेलन करें इसी निवेदन के साथ स्वस्थ रहें मस्त रहें व्यस्त रहें।।*
*जो होली सो होली,भुला दो उसे,*
*आज मिलने मिलाने का त्योहार है।*
*छोड़ दो छल कपट द्वेष की भावना,*
*प्रेम गंगा बहाने का त्योहार है।।*