चीन और पाकिस्तान के साथ लंबी सीमा मिलती है, इसलिए इसका सामरिक महत्व अधिक है। 1689 में फारूख मंत्रिमंडल में तीस मंत्री थे तब लद्दाख से एक भी मंत्री नही था।
जम्मू कश्मीर में पृथकता के बीज :
यदि जम्मू-कश्मीर की महिला भारत के किसी अन्य प्रदेश के नागरिक से विवाह करती है, तो वह अपनी संपत्ति का अधिकार खो देगी। जम्मू-कश्मीर सरकार का यह व्यवहार भारत के उन प्रदेशों के प्रति है जिनकी तुलना में केन्द्र सरकार द्वारा जम्मू-कश्मीर को बहुत अधिक आर्थिक अनुदान दिया जाता है।
1989-90 में केन्द्रीय अनुदान का औसत कुछ प्रदेशों के लिए इस प्रकार रहा-
जम्मू कश्मीर प्रति व्यक्ति 1151 रूपये, असम प्रति व्यक्ति 425 रूपये बिहार प्रति व्यक्ति 109 रूपये उत्तर प्रदेश प्रति व्यक्ति 91 रूपये पश्चिम बंगाल प्रति व्यक्ति आय 67 रूपये।
अन्य क्षेत्रों में भी भेदभाव :
1965 में प्राप्त एक जानकारी के अनुसार प्रदेश सचिवालय में जम्मू क्षेत्र का बारह प्रतिशत से कम प्रतिनिधित्व रहा, उच्च न्यायालय के 11 न्यायाधीशों में केवल एक जम्मू क्षेत्र से थे। जम्मू के किसी भी अधिकारी को प्रदेश स्तर के किसी कार्यालय का प्रमुख नही बनाया गया। जम्मू क्षेत्र के अनेक वनों को उजाड़ दिया गया। पर्यटन केन्द्रों को उपेक्षित करके नष्टकरने का प्रयत्न किया जाता रहा। पर्यटन का अधिकांश धन केवल श्रीनगर घाटी में ही लगाया गया जबकि जम्मू के वैष्णो देवी मंदिर में जितने दर्शनार्थी जाते हैं उसके दस प्रतिशत भी श्रीनगर घाटी में पर्यटन के लिए नही पहुंचते। जम्मू से प्रदेश के सत्तर प्रतिशत राजस्व की प्राप्ति होती है, परंतु जम्मू पर व्यय केवल तीस प्रतिशत ही किया जाता है।
1981 की जनगणना के आधार पर परिसीमन आयोग ने जम्मू क्षेत्र की 32 के स्थान पर 37 विधानसभा सीटें बढ़ाई तथा दो सांसद सीटें रखीं, परंतु कश्मीर घाटी में 42 के स्थान पर 46 सीटें कर दीं तथा संसद की तीन सीटें बनाया। जनसंख्या के अनुसार ये सीटें लगभग बराबर होनी चाहिए थी। जम्मू की जनसंख्या 29 लाख व कश्मीर घाटी की 31 लाख मानी गयी थी। जम्मू का क्षेत्रफल 28000 वर्ग किमी तथा कश्मीर का क्षेत्रफल मात्र 14000 वर्ग किमी था।
1947 में पाकिस्तान से आये हिंदू शरणार्थी
1947 में दो लाख शरणार्थी पाकिस्तान से आकर जम्मू में बसे। सीमा के पास निर्जन स्थान पर अधिक अन्न उपजाओ योजना में इन शरणार्थियों को लगाया गया। परंतु भूमि का स्वामित्व उन्हें नही दिया गया, वे किरायेदार की स्थिति में रह रहे हैं। ये न कोई भूमि खरीद सकते हैं न बेच सकते हैं। न उनके कोई सामाजिक अधिकार है, न राजनीतिक। ये शरणार्थी संसदीय चुनाव में वोट दे सकते हैं, किंतु विधानसभा चुनाव में वोट देने का अधिकार उन्हें 55 वर्ष की स्वतंत्रता में भी नही मिल सका। ये चुनाव नही लड़ सकते। अर्थात ये हिंदू शरणार्थी न भारत के नागरिक हैं और न पाकिस्तान के। उन्हें बुढापा या विकलांग पेंशन भी नही मिल सकती, उनके लडक़े लड़कियों का प्रवेश मेडिकल या इंजीनियरिंग कालेज में भी नही हो सकता क्योंकि केवल स्थायी नागरिक ही यह लाभ उठा सकते हैं। जम्मू कश्मीर में स्थायी नागरिक का अधिकार रखते थे।
हिंदुओं के अस्तित्व का प्रश्न :
जब जम्मू क्षेत्र को प्रथक राज्य तथा लद्दाख को केन्द्र शासित प्रदेश बनाकर कश्मीर घाटी में कश्मीरी पंडितों के लिए सुरक्षित पनुन कश्मीर की मांग उठाई जाती है तो इसे राष्ट्रविरोधी मांग बताया जाता है। यह प्रश्न एक क्षेत्र विशेष के विभाजन का नही, मूल प्रश्न है कि 1947 में जम्मू के अस्सी प्रतिशत हिंदू तथा लद्दाख के नब्बे प्रतिशत बौद्घ अब घटकर क्रमश: सत्तर प्रतिशत तथा अस्सी प्रतिशत रह गये हैं और निरंतर उस क्षेत्र में मुस्लिम जनसंख्या बढ़ाने का इस्लामी षडयंत्र फारूख जैसे नेताओं की कूटनीति से किया जा रहा है। श्रीनगर घाटी प्राय: हिंदू विहीन कर दी गयी है, अब प्रयत्न है कि जम्मू व लद्दाख को भी हिंदू विहीन कर दिया जाए। भय, आतंक व कूटनीतिक प्रपंच सभी कुछ छल छदम किये जा रहे हैं। यदि समय रहते जम्मू, लद्दाख व पनुन कश्मीर को फारूख के चंगुल से बाहर निकाला जाए तथा कश्मीर घाटी को केन्द्र शासित प्रदेश बनाकर राष्ट्रपति शासन लगायें और सेना के पूर्ण नियंत्रण में घाटी को सौंप दिया जाए, तो आतंकवाद को कब्र में दफनाया जा सकता है। वाजपेयी सरकार अमेरिन्का को कश्मीर घाटन् को बफर स्टेट बनाने के षडयंत्र को जितना शीघ्र समझेगी, उतना ही राष्ट्र के लिए शुभ होगा। जो लोग आज तीस लाख से अधिकजनसंख्या के जम्मू क्षेत्र को पृथक राज्य बनाने की मांग का विरोध कर रहे हैं वे केवल इसलिए कि जम्मू हिंदू बहुल हैं। क्रमश: