कुछ दिन पहले हमारे मित्र और प्रबुद्ध पाठक श्री पवन प्रजापति ने हिन्दुओं में व्याप्त चार वर्णों की कुरीति के बारे में पूछा था ,हम इसे कुरीति इसलिए मानते हैं कि इस व्यवस्था में पहले तीन वर्णो को सवर्ण और आखिरी वर्ण को शूद्र अर्थात निम्न और नीचा मान लिया जाता है जिसके कारन से ऊँच और नीच की भावना बन जाती है , इसके विपरीत ईरान के आर्यों में चार वर्ण होने के बाद भी चौथे वर्ण यानि शूद्र को सबसे अधिक सम्मान दिया गया है
हजारों साल से पहले इर्रान में आर्य धर्म मौजूद था , आज इन आर्यों को पारसी कहा जाता है , इनका पवित्र ग्रन्थ जेन्द अवेस्ता है , जो अवेस्ता भाषा में है , अवेस्ता भाषा बिलकुल वैदिक संस्कृत से मिलती है ,”जेन्द ” का अर्थ “छंद ” है , इसलिए वेदों के मन्त्रों को छंद कहा जाता है ,अवेस्ता भाषा में ईरान को “अइर यान वेज “अर्थात “आर्यानवर्ष “अर्थात आर्यों का देश कहा गया है
1-अवेस्ता में चार वर्ण
पारसी धर्मग्रन्थ “खोरदेह अवेस्ता में आखिर में एक अध्याय है जिसका नाम है
आफरीन अषो जरदुश्त
इसमें चार वर्णो के बारे में अवेस्ता भाषा में जो लिखा है उसे हिंदी लिपि में दे रहे हैं
“जायाऐ न्ते हच वो दस पुथर। थ्रायो बवाहि यथ अथउरु नो ,
थ्रायो बवाहि यथ रथ ऐश्तारहे।
थ्रायो बवाहि वास्त्रयहे फुशुयन्तो
अएव ते बवाहि यथ वीशतासपाई। ,अउर्वरत अस्पेम बवाहि यथ ह्वरे ,रओचिनवंतेम बवाहि यथ मांओंघेम :सओचिन वंतेम बवाहि यथ आतरेम ,तिजिनवंतेम बवाहि यथ मिथरेम ,हुर ओ घेम वेरेथ्राजनेम बावहि यथ स्रोषम अ षी म।
,ख़ोरदाह अवेस्ता -पेज 423
अर्थ – -अहुर मज्द (ईश्वर ) ने जरदुश्त से कहा कि हमारे दस पुत्र हुए उनमे तीन अथर्वन (अथर्व ऋषि ) जैसे ज्ञानी और तीन रथेशतार (क्षत्रिय ) युद्ध में प्रवीण हुए और तीन वास्त्रय हुए जो कृषि करके देश को आबाद करने वाले और व्यापारी हुए ,और एक पुत्र हुतोक्ष ( प्रवीण – Skill ) हुआ , जो विश्ताश्व जैसा सम्राट , खुरशेद जैसा घुड़सवार ,चन्द्रमा जैसा प्रकाशवान ,अग्नि जैसा चमचमाने वाला ,इजद देवता की तरह तेजी वाला ,सरोष इज्द की तरह सुन्दर और विजयी , और रशन देव की तरह सत्य मार्ग पर चलने वाला ,अर्थात धर्म पर स्थिर रहने वाला ,बहराम इज्द की तरह शत्रुओं का नाश करने वाला ,राम की तरह आदरणीय , और कवी सुश्रवा (कैकयी का पिता कय खुसरो )की तरह मृत्यु को जीतने वाला होगा , क्योंकि यह मुझे प्रिय है .
इस से साफ पता चलता है कि किसी को सवर्ण यानि ऊँचा और किसी को अवर्ण यानी नीचा समझ लेना अज्ञान की बात है , जबकि सभी ईश्वर के पुत्र सामान है , जिस तरह से अहुर मज्द (ईश्वर ) ने अपने दसवें पुत्र को सबसे अधिक प्रेम और प्रतिष्ठा प्रदान की है उसी तरह हमें भी उन लोगों आदर देना चाहिए जिन्हे हम अज्ञानवश निम्न वर्ण मानते हैं , याद रखिये यह हमारे आर्य भाई हैं
नॉट -यह लेख अवेस्ता भाषा से हिंदी में हमने किया है , चूँकि अवेस्ता में कुछ ऐसे अक्षर हैं जिन्हें हिंदी में करना मुश्किल है फिरभी हमने प्रयास किया है एक दो अक्षर गलत हो सकता है ,लेकिन हिंदी अनुवाद सही है ।
बृजनन्दन शर्मा
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