प्रशस्त करे पथ पिता ….
अनुपम छाया है पिता, रहे हमारे साथ ।
रक्षा करता है सदा सिर पर रखकर हाथ ।।1।।
आसमान से उच्च है जो भी मिले आशीष ।
हम सबका इसमें भला, नित्य झुकावें शीश।।2।।
जब तक तन में प्राण है, जिव्हा मुख के बीच।
करो पिता का कीर्तन, समझो निज जगदीश ।।3।।
बाती में ज्यों तेल है , सुगंध फूल के बीच ।
पिता का ऐसा आसरा, ना समझे कोई नीचे।।4।।
जीवन ज्योति जल रही, पिता बना है तेल ।
जीवन गाड़ी बढ़ रही, समझो सारा खेल ।।5।।
अपनी इच्छा त्याग कर, रखता सबका ध्यान।
इसीलिए भगवान सम, पिता होय महान ।।6।।
ऊंची रखता सोच है और ऊंचे रखता भाव।
हमको बढ़ता देखकर पिता का बढ़ता चाव।।7।।
प्रशस्त करे पथ पिता, और कांटे करता दूर।
आहुति दे मौन हो, कोई समझे बिरला शूर।।8।।
विधाता का ही रूप है , हृदय रखे विशाल ।
विष पीकर भी खुश रहे, करता नहीं मलाल।।9।।
बढ़ते रहो – चढ़ते रहो, पिता का यह संदेश ।
आयु, विद्या ,यश मिले, बल का भी उपदेश ।।10।।
माता हमारी वेद है और पिता धर्म का रूप।
अनुव्रती रहे बाप का, जो सच्चा है पूत।।।11।।
जब तक हैं संसार में, रखें पिता को याद ।
‘राकेश’ पिता आधार है, रखता वही बुनियाद।।12।।