संघ लोकसेवा आयोग की ‘सीसेट’ परीक्षा के विरुद्ध युवकों ने जबर्दस्त आंदोलन खड़ा कर दिया है। कुछ युवक अनशन पर बैठे हैं, सैकड़ों प्रदर्शन कर रहे हैं और एक ने आत्मदाह करने की भी कोशिश की है। इस आंदोलन की अनुगूंज संसद में भी हुई है। केंद्र सरकार ने एक समिति बनाकर उसे हफ्ते भर में रपट देने के लिए कहा है।भला यह ‘सीसेट’ क्या बला है?
दरअसल हमारी सरकार अब भी अंग्रेजी की गुलाम है। इसका पूरा नाम है- ‘सिविल सर्विसेज़ एप्टीट्यूट टेस्ट’! एप्टीट्यूड टेस्ट याने क्या? सरकारी नौकरी की भर्ती-परीक्षाओं में जो लोग बैठते हैं उनका बौद्धिक रुझान कैसा है, उनका मानसिक स्तर कैसा है, उनका सामान्य ज्ञान कैसा है– इसी की जांच करना इस परीक्षा का उद्देश्य है। यह उद्देश्य बहुत अच्छा है लेकिन आयोग से कोई पूछे कि आप छात्रों की बौद्धिक क्षमता की जांच करना चाहते हैं या उनके अंग्रेजीज्ञान की?
इस परीक्षा की दो सबसे बड़ी खामियां यह है कि एक तो अंग्रेजी के कई सवाल अनिवार्य है। दूसरा, जो सवाल हिंदी तथा अन्य भारतीय भाषाओं में पूछे जाते हैं, वे भी अंग्रेजी से अनुवाद किए हुए होते हैं। वे कभी-कभी इतने अटपटे होते हैं कि वे समझ में ही नहीं आते। इसके अलावा ज्यादातर सवाल इंजीनियरी और अन्य व्यावसायिक विषयों
से संबंधित होते हैं। कला-विषयों के छात्रों से उनका कोई संबंध नहीं होता।
इसका नतीजा क्या होता है? भारतीय भाषाओं के माध्यम से परीक्षा देने वाले छात्र बड़ी संख्या में फेल हो जाते हैं। 2014 में 1122 लोग चुने गए लेकिन उनमें से भारतीय भाषाओं वाले सिर्फ 53 थे और हिंदीवाले सिर्फ 26। पिछले तीन साल में भारतीय भाषाओं वालों की संख्या एक-चौथाई रह गई। यदि यही सिलसिला चलता रहा तो कुछ साल बाद भारतीय भाषाओं के माध्यम से पढ़ने वाले छात्रों के लिए सरकारी नौकरियों के दरवाजे बंद हो जाएंगे। याने देश के गरीब, ग्रामीण, वंचित पिछड़े और अल्पसंख्यक वर्गों के करोड़ों बच्चे इस परीक्षा से अपने आप बाहर हो जाएंगे। सिर्फ शहरी, मालदार और ऊंची जातियों के मुट्ठीभर बच्चे सरकारी नौकरियों पर कब्जा कर लेंगे। अंग्रेजी माध्यम के मंहगे स्कूलों में इन्हीं वर्गों के बच्चे पढ़ सकते हैं। यह लोकतंत्र का हनन है, समान अधिकार के सिद्धांत का उल्लंघन है, हमारे संविधान का अपमान है।
मुझे आश्चर्य है कि इस हिंदीप्रेमी सरकार ने इस बारे में सही निर्णय करने में इतनी देर कैसे कर रही हैं?