कविता — 47
आबोहवा में जिसके जीवन हमारा गुजरा ।
बाजुओं को जिसकी हमने अपना बनाया झूला ।।
गोदी में लोट जिसकी हमने पिया है अमृत ।
वह देश हमको प्यारा बतलाया नाम भारत ।।
मेरा वतन है भारत
मेरा वतन है भारत ……
बलिदान देना जिसको हमने है समझा गौरव ।
जिसके हितार्थ हमने जीवन किया समर्पण ।।
सर ऊंचा करके जिसकी गायी है हमने गाथा ।
हर काल में लहू से सींची है धरती माता ।।
मेरा वतन है भारत
मेरा वतन भारत ……
जीवन का साज जिसने हमको है सिखाया।
संगीत को सुना कर चलना हमें सिखाया ।।
जिसकी पवित्र नदियां करती हैं नाद प्यारा।
सभ्यता को सीखता है जिससे जहान सारा।।
मेरा वतन है भारत
मेरा वतन है भारत ……
सारे जहां को जिसने रस्ता बताया हरपल ।
सर आंख पे बिठा कर पूजा है जिसको हरक्षण।।
जिसकी बुलंदियों को समझा निज बुलंदी ।
रस्ते से वे हटाए बनते थे जो स्वच्छन्दी ।।
मेरा वतन है भारत
मेरा वतन है भारत ……
विश्व को चाह है जिसकी सरताज है जहां का।
मेरा हिन्द प्यारा नेता है सदियों से जहां का ।।
‘राकेश’ यहाँ जन्मना सौभाग्य है हमारा ।
नहीं कायनात में है कोई देश इससे प्यारा।।
मेरा वतन है भारत
मेरा वतन है भारत में ……
यह कविता मेरी अपनी पुस्तक ‘मेरी इक्यावन कविताएं’- से ली गई है जो कि अभी हाल ही में साहित्यागार जयपुर से प्रकाशित हुई है। इसका मूल्य ₹250 है)
डॉ राकेश कुमार आर्य
संपादक : उगता भारत
मुख्य संपादक, उगता भारत