ओ३म्
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वैदिक साधन आश्रम तपोवन, देहरादून में पांच दिनों से चल रहा गायत्री एवं चतुर्वेद शतकीय महायज्ञ आज दिनांक 13-3-2022 को सोल्लास सम्पन्न हुआ। यज्ञ की पूर्णाहुति के अवसर पर स्वामी चित्तेश्वरानन्द सरस्वती, पं. सूरतराम शर्मा, वैदिक विद्वान डा. वीरपाल जी, प्राकृतिक चिकित्सक स्वामी योगेश्वरानन्द सरस्वती, महाशय पं. रुवेल सिह आर्य, आश्रम के प्रधान श्री विजयकुमार आर्य तथा मंत्री श्री प्रेमप्रकाश शर्मा जी उपस्थित थे। केन्द्रीय आर्य युवक परिषद के अध्यक्ष डा. अनिल आर्य, दिल्ली भी इस अवसर पधारे थे। आज का यज्ञ चार वृहद यज्ञ वेदियों में सम्पन्न किया गया। यज्ञ में लगभग 50 यजमानों ने श्रद्धान्वत होकर घृत एवं साकल्य की आहुतियां दी। पूर्णाहुति के पश्चात यज्ञ प्रार्थना भी हुई।
यज्ञ की पूर्णाहुति के पश्चात यज्ञ के ब्रह्मा स्वामी चित्तेश्वरानन्द सरस्वती जी ने सामूहिक प्रार्थना कराई। उन्हांने कहा कि हमारा यह यज्ञ परमात्मा को समर्पित है। स्वामी जी ने कहा कि परमात्मा उदार हैं। वह हम सबको भी उदार बनायें। परमात्मा ने इस विशाल ब्रह्माण्ड को बनाया है। परमात्मा ने ही भूमि को भी बनाया है। सृष्टि में परमात्मा ने असंख्य सूर्य बनाये हैं। परमात्मा की कृपा से ही हम सबको मनुष्य योनि प्राप्त हुई है। परमात्मा की कृपा से हम वेदपथ पर चल रहे हैं। हम सब परमात्मा के ऋणी हैं। स्वामी जी ने कहा कि परमात्मा हमारा मंगल कीजिए। स्वामी जी ने कहा कि परमात्मा ने ही सृष्टि के आरम्भ में हमारे आदि पूर्वजों को वेदों का ज्ञान दिया था। काल व्यतीत होने के साथ हम वेदों से विहीन हो गये थे। वेदविहीन होने से हमारा पतन हुआ। पतन के समय हमारा, हमारी माताओं व बहिनों का तिरस्कार तथा अपमान हुआ। हम उनके जीवन तथा सम्मान की रक्षा नहीं कर सके। परमात्मा ने हमें ऋषि दयानन्द जी को दिया। ऋषि ने वेदों का ज्ञान कराकर हमें परमात्मा सहित अपने आप से सही अर्थों में परिचित कराया। हम सब वेद के अनुयायी बने। हमने मिलजुल कर चलना आरम्भ किया। स्वामी जी ने ईश्वर से प्रार्थना करते हुए कोरोना महामारी का उल्लेख किया और प्रार्थना की कि ईश्वर इस महामारी को समूल नष्ट कर दें। स्वामी जी ने प्रधानमंत्री मोदी जी तथा उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जी के देश और समाज हितकारी कार्यों की प्रशंसा की। उन्होंने कहा कि दोनों सच्चे सन्तों की तरह से कार्य कर रहे हैं। ईश्वर उन्हें बार बार विजय दिलायें। इन नेताओं के नेतृत्व में देश उन्नति कर रहा है। स्वामी जी ने प्रार्थना में कहा कि सबके घरों में सुख व शान्ति हो। जो मनुष्य रोग व अज्ञान आदि शत्रुओं से पीड़ित हैं, उनसे सभी दुःखों का निवारण हो। सबका कल्याण हो।
आश्रम के मंत्री श्री प्रेमप्रकाश शर्मा जी ने कहा कि स्वामी चित्तेश्वरानन्द सरस्वती जी के आशीर्वाद से गायत्री महायज्ञ आज सफलतापूर्वक सम्पन्न हुआ है। उन्होंने बताया कि सन् 1945-1947 के मध्य आर्यजगत् के प्रसिद्ध विद्वान महात्मा आनन्द स्वामी जी ने इस आश्रम में रहकर तप किया था। महात्मा जी के आशीर्वाद से ही अमृतसर के बावा गुरमुख सिंह जी ने आश्रम के लिए 594 बीघा भूमि क्रय कर इस आश्रम का निर्माण कराया था। शर्मा जी ने कहा कि इस तपोभूमि में अनेक योगियों एवं महात्माओं ने तप किया है। अनेक तपस्वियों ने बताया है कि यहां कि भूमि उपासना व ध्यान की शीघ्र सफलता में सहायक है। शर्मा जी ने श्रोताओं को प्रेरणा की कि सब बन्धुओं को यहा साधना कर लाभ उठाना चाहिये। शर्मा जी ने कहा कि आप लोग अपनी सुविधानुसार समय निकाल कर यहां आकर साधना कर लाभान्वित हो सकते हैं। साधना व उपासना के लिए यह आदर्श स्थान है। यहां रहकर साधक यज्ञ, योगाभ्यास एवं मौन साधना कर सकते हैं। आश्रम के मंत्री श्री शर्मा जी ने आयोजन में उपस्थित स्वामी योगेश्वरानन्द सरस्वती जी की प्रशंसा करते हुए बताया कि वह देश भर में शिविर लगाकर प्राकृतिक चिकित्सा का प्रचार करते हैं जिससे लोगों के साध्य व असाध्य रोग ठीक होते हैं। शर्मा जी ने श्रोताओं को प्रेरणा की कि हमें स्वामी योगेश्वरानन्द जी के ज्ञान व अनुभवों का लाभ उठाना चाहिये। शर्मा जी ने सभी से आर्थिक सहयोग की अपील भी की। मंत्री जी ने आश्रम द्वारा प्रकाशित अपनी मासिक पत्रिका ‘पवमान’ की जानकारी भी श्रोताओं को दी और इसका सदस्य बनने की प्रेरणा की।
श्री प्रेमप्रकाश शर्मा जी के सम्बोधन के बाद कार्यक्रम में उपस्थित 79 वषीर्य महाशय रुवेल सिंह आर्य जी ने तीन भजन प्रस्तुत किये। उनका गाया हुआ पहला स्वरचित भजन था ‘आज से बस हम तुम्हारे हो गये। तुम से मिलकर हमारे वारे न्यारे हो गए।। कोई नजर अपना न आता था मुझे, सबसे ज्यादे आप हमें प्यारे हो गए।।” भजनों की प्रस्तुति के बाद धर्माचार्य पं. सूरतराम शर्मा जी ने अपने सम्बोधन में कहा कि अथर्ववेद के एक मन्त्र में बताया गया है कि हम भय, चन्ता एवं क्लेश से कैसे मुक्त हों? उन्होंने कहा कि मृत्यु का भय सबसे बड़ा क्लेश है। मृत्यु के भय से सामान्य व्यक्ति ही नहीं अपितु विद्वान भी चिन्तित रहते हैं। शर्मा जी ने अपने पिता की मृत्यु के समय के दृश्य को भी श्रोताओं के सम्मुख उपस्थित किया। उन्होंने मृत्यु के क्लेश से आहत हुए बिना अपने प्राण त्यागे थे। पंडित सूरतराम शर्मा जी ने आगे कहा कि मनुष्य आसक्ति के कारण मृत्यु के समय दुःखी होता है। मृत्यु किसी को तड़पाती या भयभीत नहीं करती अपितु आसक्ति के कारण ऐसा होता है। मृत्यु के भय से मुक्त होने के लिए हमें परम सत्ता परमात्मा को जानना होगा। जो मनुष्य परमात्मा को जान लेता है वह मृत्यु के दुःख से मुक्त हो जाता है। शर्मा जी ने बताया कि सृष्टि की रचना परमात्मा ने अपने किसी प्रयोजन के लिए नहीं अपितु जीवों के हित के लिए की है। आसक्ति हमें दुःख देती है। हमें भी अकाम परमात्मा की तरह कामनाओं से रहित होना होेगा। पंडित जी ने कहा कि परमात्मा धैर्यवान है। धैर्यवान मनुष्य बड़े से बड़े कष्टों को सहन कर लेता है। परमात्मा के समान जीवात्मा भी अमृत अर्थात् अविनाशी हैं। परमात्मा को यदि हम जान लेंगे तो हम भी भयभीत नहीं होंगे। शर्मा जी ने यह भी कहा कि परमात्मा स्वयंभू है। परमात्मा सृष्टि में सर्वत्र अपनी निज सत्ता से विराजमान है। सभी भयों व क्लेशों से मुक्त होने के लिए हमें वेदों का अध्ययन करने सहित परमात्मा के गुणों को भी जानना होगा। शर्मा जी के इस व्याख्यान के बाद माता नीलम शर्मा जी का एक भजन हुआ। उनके भजन के बोल थे ‘शुद्ध प्रकाश दो स्वच्छ दृष्टि दो हे जगत के अन्तर्यामी।’
स्वामी योगेश्वरानन्द सरस्वती जीने अपने सम्बोधन में कहा कि परमात्मा असीम है। सृष्टि में असंख्य सूर्य हैं। सृष्टि के आरम्भ से मनुष्य वेदानुसार एवं वेदानुकूल जीवन जीते आये हैं। जब तक लोग कच्चे घरों में रहते थे वे पक्के होते थे। वर्तमान समय में हमारा प्राचीन व प्राकृतिक जीवन हमसे दूर हो गया है। पहले लोग प्राकृतिक जीवन जिया करते थे। स्वामी जी ने कहा कि यदि हम प्राकृतिक जीवन की ओर नहीं लौटे तो हमारा मस्तिष्क में बहुत कुछ बदल जायेगा अर्थात् यह विकृत हो जायेगां जहां से लौटने में हमें वर्षों लगेंगे। स्वामी जी ने कहा कि युवा पीढ़ी का पालन पोषण वैदिक नियमों के अनुसार नहीं हो रहा है। बच्चे रात्रि को जागते हैं और प्रातः 5.00 बजे सोते हैं और फिर दिन के 12.00 बजे जागते हैं। मां बाप को डर रहता है कि डांटने पर बच्चे कहीं आत्महत्या न कर लें। उन्होंने कहा कि छोटे छोटे बच्चे असाध्य रोगों तथा डिप्रेशन से ग्रस्त हैं। हमें बच्चों के निर्माण का कार्य करना होगा। स्वामी जी ने मोदी जी के गुणों व कार्यों का उल्लेख कर उन्हें भी एक संन्यासी व सन्त की संज्ञा दी। स्वामी जी ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जी के कार्यों की भी प्रशंसा की। स्वामी जी ने युवा पीढ़ी में आये अनेक दोषों की चर्चा की और इस पर दुःख व्यक्त किया तथा उसके उपाय भी लोगों को बतायें। स्वामी जी ने हिन्दुओं की घट रही जन्मदर पर भी चिन्ता व्यक्त की। स्वामी योगेश्वरानन्द सरस्वती जी ने कहा कि हमें देश के साधुओं को संगठित करना है। उन्होंने स्वयं 500 साधुओं को संगठित कर उनसे देश व समाज के हित का कार्य कराने का संकल्प लिया। उन्होंने कहा कि माता पिताओं को अपने बच्चों को वेदों और उनके सिद्धान्तों से परिचित करना चाहिये। स्वामीजी के बाद दिल्ली से पधारी ऋषिभक्त बहिन प्रणीण आर्या जी ने एक भजन प्रस्तुत किया जिसके बोल थे ‘मेरे दाता के दरबार में सब लोगों का खाता, जो कोई जैसी करनी करता वैसा ही फल पाता’। भजन अत्यन्त मधुर एवं प्रेरक था।
केन्द्रीय आर्य युवा परिषद, दिल्ली के अध्यक्ष डा. अनिल आर्य जी ने कहा कि देश व समाज जाग जाता है जब देश के युवाओं की जवानी जाग जाती है। श्री अनिल आर्य जी ने आश्रम के पूर्वप्रधान श्री दर्शनकुमार अग्निहोत्री जी को स्मरण किया और उनके कार्यों की प्रशंसा की। उन्होंने कहा कि आज यहां पहुंच उन्हें उनकी कमी याद आ रही है। डा. अनिल आर्य जी ने परिषद के आगामी युवा चरित्र निर्माण शिविरों की विस्तार से जानकारी दी। उन्होंने कहा कि आगामी शिविर कोटद्वार के कण्वाश्रम में आयोजित किया जा रहा है। इस शिविर में 150 युवक भाग लेंगे जिसमें इन 6-12 कक्षाओं के युवकों को चरित्र निर्माण सहित लाठी, तलवार तथा आत्म रक्षा की शिक्षा भी दी जायेगी। डा. अनिल आर्य जी ने श्रोताओं को कहा कि आप अपने बच्चों को हमारे शिविरों में भेंजे। उन्होंने कहा कि यदि देश के युवा जाग जायेंगे तो देश जाग जायेगा। उन्होंने बताया कि परिषद का एक शिविर जम्मू में 12 जून से लगेगा। आश्रम के मंत्री श्री प्रेमप्रकाश शर्मा जी ने डा. अनिल आर्य की कर्मठता की प्रशंसा की और कहा कि आप तन, मन व धन से सहयोग कर डा. अनलि आर्य जी के काय्रक्रमों को सफल बनायेे। इसके पश्चात एक श्रोता माता स्नेहलता जी ने भक्ति भाव में भरकर एक भजन गाया जिसके बोल थे ‘केवल एक ओ३म् नाम सबका सहारा है, ओ३म् नाम प्यारा है जी ओ३म् नाम प्यारा है।।’ कार्यक्रम को देहरादून जनपदीय सभा के प्रधान तथा प्रदेश की प्रतिनिधि सभा के मंत्री श्री शत्रुघ्न मौर्य जी ने भी सम्बोधित किया।
स्वामी चित्तेश्वरानन्द सरस्वती जी ने आपने आशीर्वचनों में कहा कि मनुष्य का मन ही बन्धन=दुःखों और मोक्ष का कारण है। परमात्मा मनुष्य को उसके कर्मों के अनुसार एक योनि के शरीर से निकाल कर दूसरी योनि के शरीर में प्रविष्ट करा देता है। हमारी सृष्टि प्रवाह से अनादि है। हम पर परमात्मा सदा से इस संसार वा ब्रह्माण्ड में हैं। हमारा आत्मा किसी भौतिक पदार्थ से बना हुआ नहीं है। यह चेतन एवं अपरिणामी पदार्थ है। यह सदा से है और अविनाशी है। परमात्मा में आकार व रूप-रंग नहीं है। परमात्मा सर्वज्ञ है और जीव अल्पज्ञ है। स्वामी जी ने कहा कि वैज्ञानिकों के अनुसार हमारी आकाश गंगा में 100 खरब से भी अधिक सूरज हैं। वैज्ञानिकों ने कहा है कि इससे अधिक सूर्यों को हमारे यन्त्र देखने में असमर्थ हैं। स्वामी जी ने बताया कि परमात्मा को अपने लिये सृष्टि की रचना करने के लिए आवश्यकता नहीं थी। हमारी आत्मा का कभी जन्म नहीं हुआ और न इसकी कभी मृत्यु होगी। परमात्मा हमारे साथ हर क्षण रहता है। हमें याद रखना चाहिये कि कुछ समय बाद हमें संसार से जाना होगा। संसार की वस्तुएं सदा के लिए हमारे साथ रहने वाली नहीं है। हमें ध्यान रखना चाहिये कि हमसे कोई पाप व भूल न हो। हम अन्याय न करें अपितु सत्य का आचरण करे। सत्य का आचरण ही सत्य धर्म है। हमें क्लेशों वा दुःखों से छूटना है। हम आत्मा हैं शरीर नहीं है। शरीर के लिए हम अपनी आत्मा की उपेक्षा न करें। हमें यह ध्यान रखना चाहिये कि परमात्मा हमारे सभी कर्मों को देख रहा है और हमारे सभी अशुभ कर्मों का हमें अवश्यमेव दण्ड देगा। हम अशुभ कर्म करना तत्काल छोड़ दें। हमें प्रातः व सायं परमात्मा से सम्बन्ध जोड़ना है। हमें परमात्मा का ध्यान करना है। हम परमात्मा से प्रार्थना करते हैं कि परमात्मा हमें उपासना के पथ पर ले चलें और हमें अपने सत्यस्वरूप के दर्शन करायें।
स्वामी जी के सम्बोधन के पश्चात शिविर में पधारी एक माता जी ने शिविर में हुए अपने लाभों का वर्णन श्रोताओं को सुनाया। वैदिक साधन आश्रम तपोवन, देहरादून के प्रधान श्री विजय कुमार आर्य जी ने स्वामी चित्तेश्वरानन्द सरस्वती जी सहित सभी यजमानों एवं यज्ञ में सहयोग करने वाले बन्धुओं, आयोजन में उपस्थित सभी बन्धुओं का धन्यवाद किया। शान्तिपाठ के साथ कार्यक्रम सम्पन्न हुआ। इसके बाद सभी बन्धुओं ने भूमि पर नीचे बैठकर परस्पर मिलकर भोजन किया। ओ३म् शम्।
-मनमोहन कुमार आर्य