भारत की अहमियत को अब खाड़ी देश भी समझने लगे हैं
प्रह्लाद सबनानी
ल ही में भारत ने संयुक्त अरब अमीरात के साथ व्यापक आर्थिक साझेदारी समझौते (सीईपीए) पर हस्ताक्षर किए हैं। यह एतिहासिक समझौता न केवल भारत और संयुक्त अरब अमीरात के द्विपक्षीय संबंधो को और भी मजबूती प्रदान करेगा बल्कि दोनों देशों के बीच विदेशी व्यापार को 100 अरब डॉलर के स्तर के ऊपर ले जाने में भी सहायक होगा। इस समय, अमेरिका एवं चीन के बाद, संयुक्त अरब अमीरात भारत का तीसरा सबसे बड़ा विदेशी व्यापार का भागीदार है। भारत का किसी भी अरब देश (मध्य पूर्व और उत्तरी अफ्रीका के देश) के साथ यह पहला व्यापक आर्थिक साझेदारी समझौता है और इस समझौते के अंतर्गत दोनों देशों के बीच विभिन्न उत्पादों एवं सेवाओं का विदेशी व्यापार बढ़ाने के साथ ही प्रत्यक्ष विदेशी निवेश बढ़ाने पर भी जोर दिया जाएगा। साथ ही, इस समझौते के अंतर्गत दोनों देश एक दूसरे के साथ की जाने वाली आयात एवं निर्यात की वस्तुओं पर आयात शुल्क एवं कस्टम शुल्क आदि को कम करेंगे एवं विदेशी व्यापार में आने वाली अन्य कठिनाईयों को भी दूर करने का प्रयास करेंगे।
वर्तमान में भारत एवं संयुक्त अरब अमीरात के साथ की जाने वाली आयात एवं निर्यात की वस्तुओं पर आयात शुल्क एवं कस्टम शुल्क आदि को कम करेंगे एवं विदेशी व्यापार में आने वाली अन्य कठिनाईयों को भी दूर करने का प्रयास करेंगे।
वर्तमान में भारत एवं संयुक्त अरब अमीरात के बीच प्रतिवर्ष 60 अरब डॉलर का विदेशी व्यापार होता है तथा सेवा क्षेत्र में भी प्रतिवर्ष 15 अरब डॉलर का व्यापार होता है। संयुक्त अरब अमीरात एक तरह से भारत के लिए दक्षिण अफ्रीका का प्रवेश द्वार है एवं अफ्रीका आज आर्थिक क्षेत्र की दृष्टि से बहुत बड़ा बाजार है। अतः उक्त समझौते के बाद भारतीय उत्पादों को संयुक्त अरब अमीरात के बाजारों में प्रदर्शित कर अरब के अन्य देशों के साथ ही दक्षिणी अफ़्रीकी देशों को भी निर्यात किया जा सकेगा। इससे भारत और संयुक्त अरब अमीरात के बीच आर्थिक साझेदारी और भी मजबूत होगी। वैसे भी संयुक्त अरब अमीरात किसी भी आर्थिक क्षेत्र में भारत का प्रतिद्वंदी नहीं है अतः भारत द्वारा किया गया यह एक पहिला ऐसा समझौता है जो कांप्लिमेंटरी अर्थव्यवस्था के साथ किया गया है अन्यथा भारत द्वारा अभी तक किए गए मुक्त व्यापार समझौते विनिर्माण क्षेत्र में मजबूत देशों के साथ किए गए हैं जैसे दक्षिण कोरिया, जापान या आसियान देशों के साथ हुआ है।
भारत ने उक्त व्यापक आर्थिक साझेदारी समझौते को मिलाकर अभी तक कुल 12 मुक्त व्यापार एवं क्षेत्रीय व्यापार समझौते विभिन्न देशों के साथ किए हुए हैं। यह मुक्त व्यापार समझौते भारत के विदेश व्यापार को रफ्तार देने में अहम भूमिका निभा रहे है। भारत ने पूर्व में श्रीलंका, नेपाल, दक्षिणी कोरिया, जापान, मलेशिया, मारिशस, अफगानिस्तान, चिली, मरकोसुर आदि देशों के साथ मुक्त व्यापार समझौते, व्यापक आर्थिक साझेदारी समझौते (सीईपीए) अथवा तरजीही व्यापार समझौते किए हैं इसी प्रकार भारत ने कुछ क्षेत्रीय व्यापार समझौते भी किए हैं जैसे दक्षिण एशिया मुक्त व्यापार क्षेत्र समझौता (एसएएफटीए), भारत एशिया एनएफटीए, एशिया पेसिफिक व्यापार समझौता, सार्क तरजीही व्यापार समझौता (एसएपीटीए), आदि। अब भारत द्वारा ब्रिटेन, अमेरिका एवं यूरोपीयन यूनियन देशों के साथ भी मुक्त व्यापार समझौते को शीघ्रता से सम्पन्न किए जाने के प्रयास किए जा रहे हैं, क्योंकि जिन अन्य देशों के साथ उक्त देशों के मुक्त व्यापार समझौते सम्पन्न किए जा चुके हैं उन देशों को उक्त देशों के साथ विदेशी व्यापार करने में वरीयता प्रदान की जाती है जिसके कारण भारतीय व्यापारियों को उक्त देशों के साथ विदेशी व्यापार करने में कई परेशानियों का सामना करना पड़ता है।
वर्ष 2015 के बाद से भारत एवं संयुक्त अरब अमीरात कई क्षेत्रों में मिलकर कार्य कर रहे हैं एवं इस दौरान इन दोनों देशों के बीच आपस में सामरिक भागीदारी भी बढ़ी है, चाहे वह सुरक्षा का क्षेत्र हो, चाहे वह समुद्रीय क्षेत्र हो एवं चाहे वह दोनों देशों के नागरिकों के आपसी रिश्ते का क्षेत्र हो। आज संयुक्त अरब अमीरात एक ऐसा अरब देश है जिससे भारत के बहुत मजबूत आर्थिक रिश्ते हैं। हाल ही के समय में आर्थिक रिश्तों के मजबूत होने के साथ ही भारत और संयुक्त अरब अमीरात की आपस में राजनैतिक निकटता एवं सूझबूझ भी बढ़ी है। संयुक्त अरब अमीरात के साथ भारत का निर्यात बहुत तेज गति से आगे बढ़ रहा है। वित्तीय वर्ष 2020-21 में संयुक्त अरब अमीरात को भारत से 17 अरब डॉलर का निर्यात किया गया वहीं भारत ने 26 अरब डॉलर का आयात किया है। इस प्रकार इस समय भारत के लिए 9 अरब डॉलर का व्यापार घाटा है। परंतु भारत एवं संयुक्त अरब अमीरात के बीच हाल ही में सम्पन किए गए व्यापक आर्थिक साझेदारी समझौते के बाद भारत से निर्यात को संयुक्त अरब अमीरात में जीरो ड्यूटी का लाभ मिलेगा इससे भारत से संयुक्त अरब अमीरात को निर्यात अधिक तेज गति से बढ़ेंगे इससे भारत को अपने व्यापार घाटे को कम करने में मदद मिलेगी।
भारत के सूचना प्रौद्योगिकी क्षेत्र एवं फार्मा उद्योग के लिए भी अब संयुक्त अरब अमीरात के द्वार खुल जाएंगे। विशेष रूप से फार्मा क्षेत्र को अपने उत्पाद संयुक्त अरब अमीरात को निर्यात करने में बहुत दिक्कत का सामना करना पड़ता था क्योंकि संयुक्त अरब अमीरात भारत से दवाईयों का आयात करने के पूर्व भारतीय फार्मा उत्पादक कम्पनियों का निरीक्षण करना चाहता था, परंतु अब संयुक्त अरब अमीरात द्वारा अमेरिका के यूएसएफडीए द्वारा प्रदान की गई अनुमति के आधार पर भारतीय फार्मा उत्पादक कम्पनियों को संयुक्त अरब अमीरात में दवाईयों के निर्यात की अनुमति प्रदान कर दी जाएगी। साथ ही भारत से रत्नों, रक्षा उत्पादों, ग्रीन इनर्जी उत्पादों, मशीनरी आदि का निर्यात भी बहुत तेजी से आगे बढ़ेगा। एक अनुमान के अनुसार संयुक्त अरब अमीरात के साथ किए गए व्यापक आर्थिक साझेदारी समझौते के बाद आने वाले समय में भारत में 10 लाख रोजगार के नए अवसर निर्मित होंगे।
उक्त वर्णित व्यापक आर्थिक साझेदारी समझौते के सम्पन्न होने के बाद भारत के लिए संयुक्त अरब अमीरात के साथ ही अब अरब खाड़ी के अन्य देशों यथा बहरीन, कुवैत, ओमान, कतर, सऊदी अरब एवं ईराक के साथ भी विदेशी व्यापार बढ़ाने में मदद मिलेगी एवं इन देशों के साथ भी मुक्त व्यापार समझौते किए जा सकेंगे। वैसे भी अब अरब खाड़ी के देश भारत के साथ न केवल अपने विदेशी व्यापार को आगे बढ़ाना चाहते हैं बल्कि भारत में भारी मात्रा में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश भी करना चाहते हैं। क्योंकि, ये देश भी अब समझने लगे हैं कि आगे आने वाले समय में भारत अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एक मजबूत आर्थिक शक्ति के रूप में उभर रहा है अतः अब भारत से ये देश भी आर्थिक सम्बंध मजबूत करना चाहते हैं। अभी हाल ही में सऊदी अरब द्वारा भारतीय कम्पनी रिलायंस के साथ ही अन्य भारतीय कम्पनियों में भी भारी मात्रा में विदेशी निवेश करने की इच्छा व्यक्त की गई है। अरब खाड़ी के देशों में लगभग 130 लाख भारतीय निवास कर रहे हैं और इन समस्त देशों के नागरिकों तथा भारतीय नागरिकों का आपस में पहिले से ही बहुत अच्छा समन्वय है।
अरब खाड़ी के देशों की आय का मुख्य स्त्रोत पेट्रोलीयम पदार्थों से है परंतु संयुक्त अरब अमीरात ने अपनी निर्भरता पेट्रोलीयम पदार्थों पर कम करते हुए अन्य आर्थिक क्षेत्रों पर ध्यान देना शुरू किया है जिसका परिणाम यह हुआ है कि आज संयुक्त अरब अमीरात के सकल घरेलू उत्पाद में पेट्रोलीयम पदार्थों का योगदान केवल 21 प्रतिशत रह गया है अर्थात 79 प्रतिशत सकल घरेलू उत्पाद अन्य आर्थिक क्षेत्रों से प्राप्त हो रहा है, जो कि अपने आप में बहुत बड़ा परिवर्तन है। अरब खाड़ी के ही एक अन्य देश बहरीन ने अपनी निर्भरता पेट्रोलीयम पदार्थों पर बहुत कम कर ली है एवं इसी प्रकार के प्रयास सऊदी अरब द्वारा भी किए जा रहे हैं। इस प्रकार के परिवर्तनों के चलते खाड़ी के देश अब भारत से अपने व्यापार को बढ़ाना चाहते हैं एवं इन देशों के बड़े बड़े फण्ड एवं घराने अपने निवेश को भारत की मोड़ने का प्रयास कर रहे हैं।
लेखक भारतीय स्टेट बैंक से सेवा निवर्त उप-महाप्रबंधक हैं।