उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड , मणिपुर, गोवा और पंजाब की 5 राज्यों की विधानसभाओं के चुनाव संपन्न हो गए हैं। भारतीय जनता पार्टी इन पांचों प्रदेशों में से चार प्रदेशों में अपने बलबूते पर सरकार बनाने में भी सफल हो गई है। जबकि पंजाब में आम आदमी पार्टी की सरकार बनी है।
इन पांचों प्रदेशों में से 4 प्रदेशों में जिस प्रकार हिंदू ने अपनी सांगठनिक एकता और एकजुटता का परिचय देते हुए राष्ट्रवादी शक्तियों का साथ दिया है, वह बहुत ही प्रशंसनीय है। अब हमें इन चुनावों के संदर्भ में कुछ समीक्षात्मक दृष्टिकोण अपनाते हुए वस्तु स्थिति पर विचार करना चाहिए।
यहां हम उत्तर प्रदेश और पंजाब का विशेष उल्लेख करना चाहेंगे। सबसे पहले उत्तर प्रदेश को लेते हैं। जहां समाजवादी पार्टी अपने दोगले चरित्र और दोगली देशभक्ति के आधार पर 124 सीट लेने में सफल हो गई है। हम पूर्ण विवेक का प्रयोग करते हुए समाजवादी पार्टी के बारे में इन दो शब्दों का प्रयोग कर रहे हैं। सबसे पहली बात तो यह है कि इस पार्टी के भीतर परिवारवाद के अतिरिक्त समाजवाद नाम की चिड़िया कहीं दूर-दूर तक दिखाई नहीं देती। पूर्णतया परिवारवादी संस्कृति के आधार पर खड़ा यह संगठन देश के भीतर जिहादी शक्तियों को खड़ा करने और तथाकथित उदार हिंदू (अर्थात ऐसा हिंदू जो जानबूझकर अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मारने का काम करता है और राष्ट्रवाद को कमजोर करता है) का संगठन है।
उदार हिंदू वह होता है जिसे अपनी संस्कृति, अपने धर्म, अपने इतिहास, अपने इतिहासनायकों, अपने राष्ट्र के मूल्यों और देश की एकता व अखंडता की कोई चिंता नहीं होती। आजकल आपको ये बाजार में गंगा जमुनी संस्कृति की बात करते मिल जाएंगे। भारत की वैदिक संस्कृति का संकीर्तन करने में इनको पसीना आता है और गंगा जमुनी संस्कृति के नाम पर तालियां बजाने में इन्हें प्रसन्नता अनुभव होती है । उदार हिंदू वह भी होता है जिसके सामने जब कोई शत्रु किसी सूफी के वेश में या किसी आतंकवादी के रूप में खड़ा होता है तो उसे भी वह एक नेक इंसान मानकर उसके साथ समझौता करके चलता रहता है। यह अलग बात है कि उदार हिंदू नाम की इस भेड़ को वह आतंकवादी किसी सही समय के आने पर अपना भोजन बना लेता है ।
उदार हिंदू वह भी है जो शत्रु को अपने कलेजा को खिलाता रहता है और कहता रहता है कि आप बहुत अच्छे हैं। ‘आप बहुत अच्छे हैं’ – की इसी संस्कृति ने देश के टुकड़े कराए हैं । दुर्भाग्य से समाजवादी पार्टी के भीतर ये सारे अवगुण उपस्थित हैं।
कलेजा खिलाते खिलाते भी ‘आप बहुत अच्छे हैं’ कहते रहना ही इस देश में धर्मनिरपेक्षता मन लिया गया है। इसी प्रकार दूसरे मजहबों को पनपने का एक ‘स्वर्णिम अवसर’ भी मान लिया गया है। समाजवादी पार्टी कबूतर की तरह आंख बंद करके बिल्ली को आने देने की अपसंस्कृति में विश्वास रखती है। इसे केवल सत्ता चाहिए, उसके लिए साधन जो भी हो सब चलेगा।
यह पार्टी 35 मुस्लिम विधायकों को उत्तर प्रदेश की विधानसभा में पहुंचाने में सफल रही है। निश्चित रूप से उन विधायकों का उत्तर प्रदेश विधानसभा में पहुंचने का अधिकार है। हमें इस पर कोई आपत्ति नहीं कि वे उत्तर प्रदेश विधानसभा में क्यों पहुंच गए ? हम यहां केवल यह इंगित करना चाहते हैं कि जिन उदार हिंदुओं ने उन्हें देशभक्त मान कर वोट दिया है वे उदार हिंदू इस देश के शत्रु हैं। वे नहीं जानते कि उत्तर प्रदेश के मुसलमानों के पूर्वज 1947 से पहले संपन्न हुए राष्ट्रीय असेंबली के चुनावों में नया देश पाकिस्तान लेने के नाम पर मुस्लिम लीग को समर्थन दे रहे थे। उस समय मुस्लिम लीग को समर्थन देने वाले उत्तर प्रदेश के मुसलमानों की संख्या 93% थी । उनके उत्तराधिकारी आज यदि किसी घातक सोच के वशीभूत होकर वोट दे रहे हैं तो उस इरादे को समझने की आवश्यकता है। निश्चित रूप से यह उदार हिंदू उस इरादे की ओर देखना भी नहीं चाहता।
इस उदार हिंदू नाम की चिड़िया को यह भी पता नहीं है कि 1301 में राजा सहदेव के समय में कश्मीर में केवल एक सूफी मुसलमान शाहमीर आया था, अगले कुछ वर्षों में ही उसने वह हालात पैदा कर दिए कि कश्मीर में सबसे पहला मुस्लिम शासक सदरूद्दीन बन गया। उस समय राजा हर्ष और उसके पश्चात कोटा रानी ने मुस्लिम तुष्टिकरण करते हुए उन्हें अपने मंत्रिमंडल और प्रशासन में उच्च पदों पर स्थान दिया था । उसका परिणाम यह हुआ कि शाहमीर के लोग शीघ्र ही कुर्सी पर विराजमान हुए।
उस समय भी आज के जैसे कुछ उदार हिंदू थे, जिनकी उदारता अर्थात राष्ट्र धर्म के प्रति तटस्थता के अपराध पूर्ण पाप के चलते कश्मीर की वीरांगना कोटा रानी को अपने ही खंजर से अपना कत्ल करना पड़ा था।
1340 के दशक में घटित इस घटना के पश्चात कश्मीर कभी फिर शांति की ओर लौट नहीं पाया। उदार हिंदुओं की उदारता देश के लिए पाप बन गई। आज हम देख रहे हैं कि कश्मीर के हालात क्या हो चुके हैं ?
इसी प्रकार आज के बंगाल में कालापहाड़ नाम का पहला धर्म परिवर्तित हिंदू था जिसने शासक बनकर पूरे बंगाल का इस्लामीकरण किया था। आज बांग्लादेश के साथ साथ पश्चिम बंगाल की भी स्थिति क्या हो चुकी है ? इसे हम भली प्रकार जानते हैं। इस्लाम के नाम पर देश का एक बार नहीं कई बार विभाजन कराने वाले लोग यदि आज भी ‘गजवा ए हिंद’ का सपना देख रहे हैं तो उनके इरादों को पहचानने की आवश्यकता है।
— उदारता का अभिप्राय हर ऐरे गैरे नत्थू खैरे को वोट देना नहीं है,
— उदारता का अभिप्राय अपने पैरों पर अपने आप कुल्हाड़ी मारना भी नहीं है,
—- उदारता का अभिप्राय इतिहास को भूल जाना भी नहीं है — उदारता का अभिप्राय भविष्य की ओर ध्यान ना देना भी नहीं है।
— और उदारता का अभिप्राय किसी वर्ग विशेष के लोगों से अनावश्यक ईर्ष्या या घृणा करना भी नहीं है
उदारता का अभिप्राय है सब को समान दृष्टिकोण से देखना और साथ ही साथ दूसरे के लिए इस अपेक्षा को उससे अनिवार्य रूप से मनवाना कि वह भी हमें समान दृष्टिकोण से देखे।
उदारता का अभिप्राय है प्रत्येक के लिए विकास के अवसरों को को स्वेच्छा से छोड़ना और इसी बात के लिए दूसरे को अनिवार्य रूप से बाध्य करना कि वह भी हमारे लिए विकास करने के अवसरों को छोड़े, उनका हनन ना करे।
उदारता का अभिप्राय है अपने देश के प्रति स्वाभाविक रूप से समर्पित रहना और दूसरे को भी इस बात के लिए बाध्य करना कि वह भी अपने देश से वैसे ही प्यार करें जैसे हम करते हैं। उदारता का अभिप्राय है अपने देश की एकता और अखंडता के प्रति समर्पित रहना और जो लोग देश की एकता और अखंडता के प्रति समर्पित नहीं हैं या जो देश के मौलिक स्वरूप को बिगाड़ने की गतिविधियों में संलिप्त हैं उनका समर्थन नहीं करना और अपने पूर्ण विवेक और साहस के साथ उनका विरोध करना।
उत्तर प्रदेश में जिस प्रकार 35 विधायक विधानसभा में पहुंचने में सफल हुए हैं उनका आचरण यदि इसी उदारवादी हिंदू संस्कृति के प्रति समर्पित रहा तो हम उनका बार-बार अभिनंदन करेंगे और यदि उन्होंने वहां जाकर इन राष्ट्रीय भावनाओं के विरुद्ध आचरण किया तो निश्चय ही माना जाएगा कि उदार हिंदू ने अपनी मूर्खता का परिचय देते हुए जिन जनप्रतिनिधियों को उत्तर प्रदेश विधानसभा में भेजा वह उनका राष्ट्र के प्रति किया गया एक पाप था ।
समाजवादी पार्टी परिवारवादी तो है ही साथ ही वह विघटनकारी शक्तियों को बढ़ावा देने वाली पार्टी भी है जो ‘गजवा ए हिंद’ और मुगलिस्तान का सपना देखने वाले लोगों के विरुद्ध ना तो कार्यवाही करने में विश्वास रखती है और ना ही उनका विरोध करती है। इसलिए जिन तथाकथित उदार हिंदुओं ने इस समय समाजवादी पार्टी को पूरे प्रदेश में कहीं भी वोट दिया है समझ लो कि उन्होंने गजवा ए हिंद और मुगलिस्तान का सपना लेने वाले लोगों को अर्थात आजम खान जैसे उन लोगों को जो भारत माता को डायन कहते हैं, अपना समर्थन दिया है।
हमारा मानना है कि इन विधानसभा चुनावों का सबसे पहला संकेत यही है कि उदार हिंदू अभी भी अपनी जड़ों पर अपने आप कुल्हाड़ी मार रहा है और राष्ट्रघाती कार्यों में लिप्त है। उसने इतिहास के गद्दार जयचंदों और छल छंदों से कोई शिक्षा नहीं ली है। जो लोग राष्ट्र से पहले जाति को रखकर काम कर रहे हैं वे हिंदुत्व की जड़ों में मट्ठा डाल रहे हैं। क्योंकि उनके ऐसे आचरण से आजम खान जैसे लोगों को बल मिल रहा है।
इसी प्रकार खालिस्तानी शक्तियों को समर्थन देने के आरोपों के लगने के उपरांत भी आम आदमी पार्टी प्रचंड बहुमत के साथ पंजाब में सत्तासीन हो गई है। वैसे तो लोकतंत्र में प्रत्येक पार्टी को चुनाव में उतरने और लोगों का विश्वास जीतकर सरकार बनाने का अधिकार होता है , परंतु उसकी सोच, उसका चिंतन , उसकी विचारधारा और उसकी कार्यशैली को देखकर निष्पक्ष आकलन किया जाना भी बहुत आवश्यक है। लोकतंत्र का अभिप्राय हर ऐरे गैरे नत्थू खैरे को चुनाव लड़ने और चुनाव जीत कर सरकार बनाने का अवसर देना नहीं है ।
‘अवसर’ तो किसी छल प्रपंच के आधार पर भी प्राप्त किया जा सकता है ।यदि ऐसा छल प्रपंच किसी राजनीतिक दल द्वारा किसी राजनीतिक दल के विरुद्ध किया गया है तब तो कोई आपत्ति नहीं है । परंतु यदि ऐसा छल- प्रपंच राष्ट्रीयता, राष्ट्रवाद और देश की एकता और अखंडता के विरुद्ध रचा गया है या रचा जा रहा है या रचे जाने की संभावना है तो निश्चय ही ऐसे जनादेश को भी संवैधानिक और लोकतांत्रिक नहीं कहा जा सकता।
ऐसे दृष्टिकोण को अपनाकर यदि हम समीक्षात्मक बुद्धि का प्रयोग करते हुए कहें तो पंजाब को हड़पने के पीछे एक बड़ा षड्यंत्र कार्य कर रहा था। जिसे कुमार विश्वास ने ही स्पष्ट नहीं किया बल्कि परिस्थितियों ने भी स्पष्ट किया। किसानों के रूप में जिस प्रकार खालिस्तानियों ने आकर दिल्ली को घेरा और दिल्ली के लाल किले पर एक पंथ विशेष का झंडा चढ़ाया और उस समय जिस प्रकार उन तथाकथित किसानों को केजरीवाल ने अपना पूरा समर्थन दिया वह सब कुछ पंजाब को इसी प्रकार हड़पने की नीति का एक अंग था । जिसमें सभी आतंकवादी संगठन और खालिस्तानी शक्तियां केजरीवाल के पीछे आकर खड़ी हो गई थीं। देश के अधिकांश लोग उस समय इस छल प्रपंच को नहीं समझ रहे थे। वह नहीं समझ रहे थे कि तैयारी किस बात को लेकर हो रही है ? कांग्रेस के राहुल गांधी भी अपना उल्लू बनवाने में लगे रहे। वे सोचते रहे कि केजरीवाल की घातक नीतियों का समर्थन करने से ही उनकी पार्टी सत्ता में रह सकती है। वह नहीं समझ पाए कि केजरीवाल उनकी ही कब्र खोद रहे हैं। आज जब राहुल गांधी की कांग्रेस को पंजाब में केजरीवाल ने कब्र में नीचे दफन कर दिया है तब वह केजरीवाल , किसान और किसानों के तथाकथित मसीहाओं को निश्चय ही मन ही मन कोस रहे होंगे।
राहुल गांधी सोच रहे थे कि पंजाब का फूल अर्थात पंजाब की सत्ता उनके हाथों में आएगी। परंतु फूल तो केजरीवाल के हाथों में चला गया। क्योंकि केजरीवाल ही वह व्यक्ति थे जिनसे तथाकथित खालिस्तानी शक्तियों का सीधा संपर्क था और जो इधर-उधर अपने उचित माध्यमों के द्वारा केजरीवाल के साथ इस प्रकार की वार्ता में लगे हुए थे कि पंजाब को किस प्रकार उनके हाथों में सौंप दिया जाए ?
जो लोग यह मान रहे हैं कि किसान आंदोलन असफल हो गया है उन्हें पंजाब विधानसभा के चुनावों के आने से समझ लेना चाहिए कि किसान आंदोलन अपनी सफलता के पहले पड़ाव को प्राप्त कर चुका है ।अब अगले पड़ाव की तैयारी आरम्भ हो चुकी है। उसके लिए केंद्र सरकार को और देश की सुरक्षा एजेंसियों को समय रहते चौकस हो जाना चाहिए। इन चुनावों का सबसे खतरनाक संकेत यही है कि पंजाब में लोगों ने उस पार्टी को अपना समर्थन दे दिया है जिस पर खालिस्तान समर्थक होने का आरोप लगा है।
अतः पंजाब विधानसभा में आम आदमी पार्टी के प्रचंड बहुमत से आगाज कुछ खतरनाक संकेत दे रहे हैं। जिसे देश के उदार हिंदू को भी समझना चाहिए। देश की अलगाववादी शक्तियों ने अनेक बार हिंदू का इसी प्रकार मूर्ख बनाया है। यद्यपि बाद में वह सिर पकड़कर रोया है ,परंतु उस रोने से कोई लाभ नहीं। समय रहते सचेत होने में ही लाभ है।
डॉ राकेश कुमार आर्य
संपादक ; उगता भारत
मुख्य संपादक, उगता भारत