Categories
बिखरे मोती

जीवन का सार,मन-वाणी की साधना

मन-वाणी की साधना,
दो ऐसी पतवार।
जीवन – नैया को करें,
भवसागर से पार॥1662॥

भावार्थ :- प्रायः मनुष्य तीन तरह से पाप करता है – मन ,वाणी और शरीर पाप के माध्यम है। इसके अतिरिक्त इन तीनों से शुभ – कर्म भी होते हैं, जो इस प्रकार हैं:-
तन से होने वाले पाप:-
अशुभ कर्म- चोरी, व्यांभचार,हिंसा
शुभ – कर्म – दान, सेवा/ संयम, रक्षा
मन से होने वाले पाप:-
अशुभ- कर्म – द्रोह, स्पृद्वा ,नास्तिकता
शुभ -कर्म – दया,निष्पृद्वता,आस्तिकता

वाणी से होने वाले पाप :-
अशुभ-कर्म :- कटु बोलना, असत्य बोलना,निन्दा, चुगली करना, व्यर्थ वार्ता

शुभ-कर्म:- मधुर बोलना, सत्य बोलना, प्रशंसा ,स्वाध्याय प्रसंगवश यहॉ उल्लेखित करना चाहता हूं कि एक बार एक आदमी मनु महाराज के आश्रम में पहुंचा और बोला, महाराज ! आपने मनुस्मृति नाम का बहुत बड़ा ग्रंथ लिखा है किन्तु मैं तो अनपढ़ हूं मैं उसे पढ़ नहीं सकता कृपया करके मुझे बताएं कि मेरे जीवन का उद्धार कैसे हो ? मनु महाराज, थोड़ा मुस्कुराए और कहा भोले भाई तुम मन,वाणी का तप करो ,अर्थात इन पर संयम रखो, तो तुम्हारे जीवन का कल्याण हो जाएगा।मन,वाणी का तप कोई खाला जी का घर नहीं है, यह तो बड़ी टेढ़ी खीर है। यह दोनों तप वास्तव में जीवन नैया को संसार रूपी सागर से पार करने वाली पतवार हैं। जो व्यक्ति वाणी और मन पर संयम रखते हैं,वे विभिन्न प्रकार के दु:खों से बच जाते हैं। अतः मन,वाणी का संयम भी बहुत बड़ा तप है।

योगी -योद्धा की तरह मुखिया रहे सतर्क

योगी – योध्दा ध्यये में,
जितना रहे सतर्क।
मुखिया को भी चाहिए,
इतना रहे सतर्क॥1663॥

भावार्थ:- भक्ति के मार्ग पर चलने वाला योगी अथवा साधक दुर्भाव, दूरी अथवा पाप के प्रति हर पल सतर्क रहता है, वह उनसे मन ही मन कहता मेरे चित्त में प्रवेश की कामना से आए दुर्भाबो दुरीतो अथवा पाप तुम मुझे गिराने आए हो,मेरा पदस्खलन करना चाहते हो, मेरे चित्त में घुसकर मेरा पतन करना चाहते हो, दूर हो जाओ, दूर रहो जहां से आए हो वही चले जाओ! मैं तुम्हें अपनी चित्त में क्षण भर के लिए भी प्रवेश नहीं दूंगा। इतना सतर्क रहकर साधक अथवा योगी अपनी साधना के ध्येय को प्राप्त होता है।इसके अतिरिक्त राष्ट्र की सीमा को सुरक्षित रखने वाला सैनिक, हर पल चौकन्ना और मुस्तैद रहता है। ताकि शत्रु राष्ट्र की सीमा का अतिक्रमण न कर सके।
उसकी यह कर्तव्यपरायणता और राष्ट्र के प्रति अटूट निष्ठा ही पूरे राष्ट्र को सुरक्षित रखती है। ठीक इसी प्रकार परिवार ,समाज अथवा राष्ट्र को मुखिया को भी चाहिए कि वे क्षण -प्रतिक्षण परिवार, समाज और राष्ट्र में नित नूतन होने वाली समस्याओं के प्रति सर्वदा सावधान रहे।न्यायोचित समाधान करें ताकि सुख, शांति अक्षण्ण रहे। ऐसा व्यक्ति ही संकल्प सिद्ध होता है, दूसरों के लिए प्रेरणापुंज होता है। क्रमशः

Comment:Cancel reply

Exit mobile version